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'''राजगृह / राजगीर'''<br />


राजगीर बिहार प्रांत में नालंदा ज़िले में स्थित एक शहर एवं अधिसूचित क्षेत्र है। यह कभी [[मगध]] साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी, जिससे बाद में [[मौर्य काल|मौर्य]] साम्राज्य का उदय हुआ। राजगीर जिस समय मगध की राजधानी थी उस समय इसे राजगृह के नाम से जाना जाता था। [[मथुरा]] से लेकर राजगृह तक महाजनपथ का सुन्दर वर्णन [[बौद्ध]] ग्रंथों में प्राप्त होता है।  मथुरा से यह रास्ता वेरंजा, सोरेय्य, संकिस्सा, कान्यकुब्ज होते हुए [[प्रयाग]] प्रतिष्ठान जाता था जहां पर [[गंगा नदी|गंगा]] पार करके [[वाराणसी]] पहुंचा जाता था। यहां प्रथम विश्‍व [[बौद्ध]] संगीति का आयोजन हुआ था। यहां [[जैन]] व [[हिन्दु|हिन्दुओं]] के अनेक पवित्र धार्मिक स्थल हैं।<br/>
==राजगीर की पहाड़ियाँ==
राजगीर की पहाड़ियाँ विश्व प्रसिद्ध है। पहाड़ी, 388 मीटर, मध्य बिहार राज्य, यह दक्षिण गंगा के मैदान के विस्तार को भंग करती है और जलोढ़ मिट्टी के समुद्र में द्वीप की तरह प्रकट होती है। स्फटिक, क्वार्टज शैल खंडों से बनी यह पहाड़ी दक्षिण-पश्चिमी दिशा में मगरमच्छ के मुँह की तरह और अलियानी घाटी उसकी जीभ की तरह निकली हुई है।
==पर्यटन==
राजगीर गर्म झरनों के लिए जाना जाता है।  यह वनाच्छादित भी है और इसके गर्म पानी के सोते आसपास के खुशनुमा क्षेत्रों का आनन्द उठाने वाले पर्यटकों के लिए मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। शीतकाल में भ्रमण और स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। यह हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों के लिए ऐतिहासिक और धार्मिक केन्द्र भी है।
==विशेषता==
*पहाड़ी पर समानान्तर कटक मिलते हैं, राजगीर गाँव के दक्षिण में कटकों के बीच स्थित घाटी में राजगृह (राजकीय आवास) स्थित है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह महाभारत में वर्णित मगध के पौराणिक राजा जरासंध का आवास था।
*पहाड़ियों की चोटी पर 40 किमी. के दायरे में बाहरी प्राचीरें देखी जा सकती हैं। ये लगभग पाँच मीटर मोटे और बिना तराशे विशाल पत्थरों से बनी है। ये भग्नावशेष दीवारें सामान्यतः छठी शताब्दी ई. पू. की हैं। एक महत्वपूर्ण बौद्ध और जैन तीर्थस्थल के रूप में राजगीर की पहाड़ियाँ गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित हैं। जिन्होंने कई बार यहाँ उपदेश दिए।
*भूतपूर्व गिरधरकूट या गिद्ध शिखर, जो अब छतगिरि कहलाती है, बुद्ध की प्रिय विश्रामस्थली थी। बैभर पहाड़ी जिसका मूल नाम वैभवगिरि है, की मीनारों में से एक की पहचान पिप्पला के पाषाणगृह के रूप में की गई है। जिसमें गौतम बुद्ध रहे थे। बैभर पहाड़ी के अनेक स्थलों के साथ पहचानी गई सत्तपन्नी गुफ़ा और पहाड़ी तलहटी में स्थित सोनभंडार गुफ़ा में बौद्ध मत की 543 ई. पू. में आयोजित धर्मसभा में सभी धार्मिक सिद्धांतों को अभिलिखित किया गया था।
*तीसरी और चौथी शताब्दी में जैनों द्वारा सोनभंडार गुफ़ा में उत्खनन कार्य किया गया था,
*घाटी के मध्य में हुए उत्खनन से एक गोलाकार देवालय का पता चला, जो पाँचवीं शताब्दी की विष्णु और नटराज शिव समेत अनेक देवताओं की महीन चूना-पत्थर से बनी विलक्षण मूर्तियों से अलंकृत हैं।
*घाटी के आसपास की पहाड़ियों में अनेक आधुनिक जैन मन्दिर हैं, हिन्दू देवालयों से घिरी घाटी में गर्म पानी के सोते भी हैं।
[[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]]
[[Category:पर्यटन कोश]] [[Category:ऐतिहासिक स्थल]]
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Latest revision as of 06:32, 26 June 2011