User:गोविन्द राम/sandbox4: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
 
(20 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
==कलिंग शिलाअभिलेख==
==कालसी==
*कालसी<ref>इस अभिलेख की केवल आरम्भिक पंक्तियाँ ही सभी संस्करणों में पायी जाती हैं।</ref>
{| class="bharattable-purple"
{| class="bharattable-purple"
|+ जौगड़
|+ कालसी शिलालेख
|-
|-
! क्रमांक  
! क्रमांक  
Line 7: Line 8:
! अनुवाद
! अनुवाद
|-
|-
| 1.  
| 1.
| देवानं हेवं आ [ ] [ । ] समापायं महमता लाजवचनिक वतविया [ । ] अं किछि दखामि हकं [ किं ] ति कं कमन 
| देवानंपिये पियदसि लाजा आहा [] जने उचावुचं मंगलं कलेति [।] आबाधसि अवाहसि विवाहसि पजोपदाये पवाससि एताये अंनाये चा एदिसाये जने मंगलं कलेति [।] हेतु चु अबकजनियों बहु चा बहुविधं चा खुदा चा निलथिया चा मंगलं कलंति []
| देवों का प्रिय इस प्रकार कहता है- समापा में महामात्र (तोसली संस्करण में- कुमार और महामात्र) राजवचन द्वारा (यों) कहे जायँ- जो कुछ मैं देखता हूँ, उसे मैं चाहता हूँ कि किस प्रकार कर्म द्वारा
|  
|-
|-
| 2.
| से कटवि चेव खो मंगले [।] अपफले वु खो एसे [।] इयं चु खो महाफले ये धंममगले [।] हेता इयं दासभटकसि सम्यापटिपाति गुलुना अपचिति पानानं समये समनबंभनान दाने एसे अंने चा हेडिसे तं धंममगले नामा [।] से वतलिये पितिना पि पुतेन पि भातिना पि सुवामिकेना पि मितसंथुनेता आय पटिवेसियेना पि
|  
|  
|-
| 3.
| इयं साधु इयं कटविये मगले आव तसा अथसा निवुतिया [।] इमं कथमिति [।]<ref>इसके आगे गिरनार, धौली और जौगड़ में सर्वथा भिन्न पंक्तिया हैं।</ref>
|  
|  
|
|}
=====
{| class="bharattable-purple"
|+ शाहबाजगढ़ी
|-
! क्रमांक
! शिलालेख
! अनुवाद
|-
| 1.
| अयं ध्रमदिपि देवन प्रिअस रञे लिखापितु [।] हिद नो किचि जिवे अर [भि] तु प्रयुहोतवे [नो पि च समज कटव [।] बहुक हि दोषं सम [ज] स देवन प्रियो प्रिअद्रशि रय देखति [।]
| यह धर्मलिपि देवों के प्रिय प्रियदर्शी राजा द्वारा लिखवायी गयी। यहाँ कोई जीव मार कर होम न करना चाहिए।
|-
|-
| 2.
| अस्ति पि च एकतिए समये सधुमति देवन प्रिअस प्रिअद्रशिस रञे [।] पुर महनसिस देवनं प्रिअस प्रिअद्रशिस रञों अनुदिवसों बहुनि प्रणशतसहस्त्रनि अरभियिसु सुपठये [।] सो इदिन यद अयं 
| किंतु देवों के प्रिय प्रियदर्शी राजा से अच्छे (श्रेष्ठ) माने गये कतिपय समाज भी है। पहले देवों के प्रिय प्रियदर्शी राजा के महानस (पाकशाला में प्रतिदिन बहुत लाख प्राणी सूप (शोरवे, भोजन) के लिए मारे जाते थे। आज जब 
|-
| 3.
| ध्रमदिपि लिखित तद त्रयो वो प्रण हञंति मजुर दुवि 2 म्रुगो 1 [।] सो पि म्रगो नो ध्रुवं [।] एत पि प्रण त्रयो पच न अरभिशंति [।]
| यह धर्मलिपि लिखी गयी, तब तीन ही प्राणी सूप (शोरवे, भजन) के लिए मारे जाते हैं-दो मोर (और) एक मृग और वह मृग भी ध्रुव (नियत, निश्चित) नहीं है। और ये तीन प्राणी भी पीछे न मारे जाएँगे।
|
|}
|}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
__NOTOC__

Latest revision as of 12:00, 22 January 2012

कालसी

  • कालसी[1]
कालसी शिलालेख
क्रमांक शिलालेख अनुवाद
1. देवानंपिये पियदसि लाजा आहा [।] जने उचावुचं मंगलं कलेति [।] आबाधसि अवाहसि विवाहसि पजोपदाये पवाससि एताये अंनाये चा एदिसाये जने मंगलं कलेति [।] हेतु चु अबकजनियों बहु चा बहुविधं चा खुदा चा निलथिया चा मंगलं कलंति [।]
2. से कटवि चेव खो मंगले [।] अपफले वु खो एसे [।] इयं चु खो महाफले ये धंममगले [।] हेता इयं दासभटकसि सम्यापटिपाति गुलुना अपचिति पानानं समये समनबंभनान दाने एसे अंने चा हेडिसे तं धंममगले नामा [।] से वतलिये पितिना पि पुतेन पि भातिना पि सुवामिकेना पि मितसंथुनेता आय पटिवेसियेना पि
3. इयं साधु इयं कटविये मगले आव तसा अथसा निवुतिया [।] इमं कथमिति [।][2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इस अभिलेख की केवल आरम्भिक पंक्तियाँ ही सभी संस्करणों में पायी जाती हैं।
  2. इसके आगे गिरनार, धौली और जौगड़ में सर्वथा भिन्न पंक्तिया हैं।