सिंहासन बत्तीसी चौबीस: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
[[सिंहासन बत्तीसी]] एक [[लोककथा]] संग्रह है। [[विक्रमादित्य|महाराजा विक्रमादित्य]] भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर [[प्रकाश]] डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।  
[[सिंहासन बत्तीसी]] एक [[लोककथा]] संग्रह है। [[विक्रमादित्य|महाराजा विक्रमादित्य]] भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर [[प्रकाश]] डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।  
==सिंहासन बत्तीसी सत्रह==
==सिंहासन बत्तीसी चौबीस==
<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px">
<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px">
एक बार राजा विक्रमादित्य [[गंगा|गंगाजी]] नहाने गया। वहां देखता क्या है कि एक बनिये की सुंदर स्त्री नदी के किनारे खड़ी एक साहूकार के लड़के से इशारों में बात कर रही है। थोड़ी देर में जब वे दोनो जाने लगे तो राजा ने अपना एक आदमी उनके पीछे कर दिया। उसने लौटकर बताया कि उस स्त्री ने घर पर पहुंचने पर अपना सिर खोलकर दिखाया, फिर छाती पर हाथ रक्खा, और अंदर चली गई। राजा ने पूछा कि इसका क्या मतलब है तो उसने कहा, "स्त्री ने बताया कि जब अंधेरी रात होगी तब मैं आऊंगी। साहूकार के लड़के ने भी वैसा ही इशारा करके कहा कि अच्छा।"
एक बार राजा विक्रमादित्य [[गंगा|गंगाजी]] नहाने गया। वहां देखता क्या है कि एक बनिये की सुंदर स्त्री नदी के किनारे खड़ी एक साहूकार के लड़के से इशारों में बात कर रही है। थोड़ी देर में जब वे दोनो जाने लगे तो राजा ने अपना एक आदमी उनके पीछे कर दिया। उसने लौटकर बताया कि उस स्त्री ने घर पर पहुंचने पर अपना सिर खोलकर दिखाया, फिर छाती पर हाथ रक्खा, और अंदर चली गई। राजा ने पूछा कि इसका क्या मतलब है तो उसने कहा, "स्त्री ने बताया कि जब अंधेरी रात होगी तब मैं आऊंगी। साहूकार के लड़के ने भी वैसा ही इशारा करके कहा कि अच्छा।"
इसके बाद रात को राजा वहां गया। जब रात अंधेरी हो गई तो राजा ने खिड़की पर कंकड़ी मारी। स्त्री समझ गई कि साहूकार का लड़का आ गया। वह माल-मत्ता लेकर आयी।  
इसके बाद रात को राजा वहां गया। जब रात अंधेरी हो गई तो राजा ने खिड़की पर कंकड़ी मारी। स्त्री समझ गई कि साहूकार का लड़का आ गया। वह माल-मत्ता लेकर आयी।  
''राजा ने कहा'': तुम्हारा आदमी जीता है। वह राजा से शिकायत कर देगा तो मुसीबत हो जायगी। इससे पहले उसे मार आओ।
राजा ने कहा: तुम्हारा आदमी जीता है। वह राजा से शिकायत कर देगा तो मुसीबत हो जायगी। इससे पहले उसे मार आओ।
स्त्री गई और कटारी से अपने आदमी को मारकर लौट आयी। राजा ने सोचा कि जब यह अपने आदमी की सगी नहीं हुई तो और किसकी होगी। सो वह उसे बहकाकर नदी के इस किनारे पर छोड़ उधर चला गया। स्त्री ने राह देखी। राजा न लौटा तो वह घर जाकर चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगी कि मेरे आदमी को चोरों ने मार डाला।
स्त्री गई और कटारी से अपने आदमी को मारकर लौट आयी। राजा ने सोचा कि जब यह अपने आदमी की सगी नहीं हुई तो और किसकी होगी। सो वह उसे बहकाकर नदी के इस किनारे पर छोड़ उधर चला गया। स्त्री ने राह देखी। राजा न लौटा तो वह घर जाकर चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगी कि मेरे आदमी को चोरों ने मार डाला।
अगले दिन वह अपने आदमी के साथ सती होने को तैयार हो गई। आधी जल चुकी तो सहा न गया। कूदकर बाहर निकल आयी और नदी में कूद पड़ी।  
अगले दिन वह अपने आदमी के साथ सती होने को तैयार हो गई। आधी जल चुकी तो सहा न गया। कूदकर बाहर निकल आयी और नदी में कूद पड़ी।  
''राजा ने कहा'': यह क्या?  
राजा ने कहा: यह क्या?  
''वह बोली'': इसका भेद तुम अपने घर जाकर देखो। हम सात सखियां इस नगर में हैं। एक मैं हूं, छ: तुम्हारे घर में है।
वह बोली: इसका भेद तुम अपने घर जाकर देखो। हम सात सखियां इस नगर में हैं। एक मैं हूं, छ: तुम्हारे घर में है।
इतना कहकर वह पानी में डूब मरी। राजा घर लौटकर गया और सब हाल देखने लगा। आधी रात गये छहों रानियां सोने के थाल मिठाई से भरकर महल के पिछवाड़े गईं। वहां एक योगी ध्यान लगाये बैठा था। उसे उन्होंने भोजन कराया। इसके बाद योग-विद्या से छ: देह करके छहों रानियों को अपने पास रक्खा। थोड़ी देर बाद रानियां लौट गईं।
इतना कहकर वह पानी में डूब मरी। राजा घर लौटकर गया और सब हाल देखने लगा। आधी रात गये छहों रानियां सोने के थाल मिठाई से भरकर महल के पिछवाड़े गईं। वहां एक योगी ध्यान लगाये बैठा था। उसे उन्होंने भोजन कराया। इसके बाद योग-विद्या से छ: देह करके छहों रानियों को अपने पास रक्खा। थोड़ी देर बाद रानियां लौट गईं।
राजा ने सब बातें अपनी आंखों से देखीं। रानियों के चले जाने पर राजा योगी के पास गया।  
राजा ने सब बातें अपनी आंखों से देखीं। रानियों के चले जाने पर राजा योगी के पास गया।  
''योगी के कहा'': तुम्हारी जो कामना हो सो बताओ।  
योगी के कहा: तुम्हारी जो कामना हो सो बताओ।  
''राजा बोला'': हे स्वामी! मुझे वह विद्या दे दो, जिससे एक देह की छ: देहें हो जाती हैं।  
राजा बोला: हे स्वामी! मुझे वह विद्या दे दो, जिससे एक देह की छ: देहें हो जाती हैं।  
योगी ने वह विद्या दे दी। इसके बाद राजा ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। फिर वह रानियों को लेकर गुफा में आया और उनके सिर काटकर उसमें बंद करके चला आया। उनका धन उसने शहर के ब्राह्मणों में बांट दिया।
योगी ने वह विद्या दे दी। इसके बाद राजा ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। फिर वह रानियों को लेकर गुफा में आया और उनके सिर काटकर उसमें बंद करके चला आया। उनका धन उसने शहर के ब्राह्मणों में बांट दिया।


''पुतली बोली'': हे राजा! हो तुम ऐसे, तो सिंहासन पर बैठो?
पुतली बोली: हे राजा! हो तुम ऐसे, तो सिंहासन पर बैठो?
उस दिन भी मुहूर्त निकल गया। अगले दिन पच्चीसवीं पुतली जयलक्ष्मी ने उसे रोककर कहानी सुनायी।
उस दिन भी मुहूर्त निकल गया। अगले दिन पच्चीसवीं पुतली जयलक्ष्मी ने उसे रोककर कहानी सुनायी।



Latest revision as of 11:11, 26 February 2013

सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।

सिंहासन बत्तीसी चौबीस

एक बार राजा विक्रमादित्य गंगाजी नहाने गया। वहां देखता क्या है कि एक बनिये की सुंदर स्त्री नदी के किनारे खड़ी एक साहूकार के लड़के से इशारों में बात कर रही है। थोड़ी देर में जब वे दोनो जाने लगे तो राजा ने अपना एक आदमी उनके पीछे कर दिया। उसने लौटकर बताया कि उस स्त्री ने घर पर पहुंचने पर अपना सिर खोलकर दिखाया, फिर छाती पर हाथ रक्खा, और अंदर चली गई। राजा ने पूछा कि इसका क्या मतलब है तो उसने कहा, "स्त्री ने बताया कि जब अंधेरी रात होगी तब मैं आऊंगी। साहूकार के लड़के ने भी वैसा ही इशारा करके कहा कि अच्छा।"
इसके बाद रात को राजा वहां गया। जब रात अंधेरी हो गई तो राजा ने खिड़की पर कंकड़ी मारी। स्त्री समझ गई कि साहूकार का लड़का आ गया। वह माल-मत्ता लेकर आयी।
राजा ने कहा: तुम्हारा आदमी जीता है। वह राजा से शिकायत कर देगा तो मुसीबत हो जायगी। इससे पहले उसे मार आओ।
स्त्री गई और कटारी से अपने आदमी को मारकर लौट आयी। राजा ने सोचा कि जब यह अपने आदमी की सगी नहीं हुई तो और किसकी होगी। सो वह उसे बहकाकर नदी के इस किनारे पर छोड़ उधर चला गया। स्त्री ने राह देखी। राजा न लौटा तो वह घर जाकर चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगी कि मेरे आदमी को चोरों ने मार डाला।
अगले दिन वह अपने आदमी के साथ सती होने को तैयार हो गई। आधी जल चुकी तो सहा न गया। कूदकर बाहर निकल आयी और नदी में कूद पड़ी।
राजा ने कहा: यह क्या?
वह बोली: इसका भेद तुम अपने घर जाकर देखो। हम सात सखियां इस नगर में हैं। एक मैं हूं, छ: तुम्हारे घर में है।
इतना कहकर वह पानी में डूब मरी। राजा घर लौटकर गया और सब हाल देखने लगा। आधी रात गये छहों रानियां सोने के थाल मिठाई से भरकर महल के पिछवाड़े गईं। वहां एक योगी ध्यान लगाये बैठा था। उसे उन्होंने भोजन कराया। इसके बाद योग-विद्या से छ: देह करके छहों रानियों को अपने पास रक्खा। थोड़ी देर बाद रानियां लौट गईं।
राजा ने सब बातें अपनी आंखों से देखीं। रानियों के चले जाने पर राजा योगी के पास गया।
योगी के कहा: तुम्हारी जो कामना हो सो बताओ।
राजा बोला: हे स्वामी! मुझे वह विद्या दे दो, जिससे एक देह की छ: देहें हो जाती हैं।
योगी ने वह विद्या दे दी। इसके बाद राजा ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। फिर वह रानियों को लेकर गुफा में आया और उनके सिर काटकर उसमें बंद करके चला आया। उनका धन उसने शहर के ब्राह्मणों में बांट दिया।

पुतली बोली: हे राजा! हो तुम ऐसे, तो सिंहासन पर बैठो?
उस दिन भी मुहूर्त निकल गया। अगले दिन पच्चीसवीं पुतली जयलक्ष्मी ने उसे रोककर कहानी सुनायी।

आगे पढ़ने के लिए सिंहासन बत्तीसी पच्चीस पर जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख