युगांत -सुमित्रानन्दन पंत: Difference between revisions

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'ताज' शीर्षक रचना में कवि ताजमहल के अपार्थिव सौन्दर्य में बह नहीं जाता क्योंकि ताज उसके लिए गत युग के मृत आदर्शों का प्रतीक बन गया है, जो मानव के मोहान्ध हृदय में घर किये हुए हैं। तात्पर्य यह है कि 'युगांत' की यह रचना प्रकृति और सौन्दर्य के प्रति कवि की नयी मानववादी दृष्टि की देन है।
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Latest revision as of 10:31, 13 September 2013

युगांत -सुमित्रानन्दन पंत
कवि सुमित्रानन्दन पंत
प्रकाशन तिथि 1936 ई.
देश भारत
भाषा हिन्दी
विषय एक प्रकार से इसे सन्धिकालीन रचना कहा जा सकता है, जिसमें गाँधीवादी विचारधारा को स्पष्ट रूप से आधार बनाया गया है।
प्रकार काव्य संकलन
विशेष इस संकलन की अधिकांश रचनाएँ कवि के मानव-प्रेम से ओतप्रोत हैं और स्वयं गांधीजी में वह मानव की परिपूर्णता के ही दर्शन करता है।

सुमित्रानन्दन पंत के काव्य संकलन युगांत का प्रकाशन 1936 में हुआ। यह सुमित्रानन्दन पंत का चौथा काव्य-संकलन है, जिसमें 1934 ई. से लेकर 1936 ई. तक की उनकी तैंतीस छोटी-बड़ी रचनाएँ संकलित हैं। इस रचना की भूमिका में पंत ने अपनी काव्यकला के नये मोड़ की अपने शब्दों में ही सूचना दी है। वे कहते हैं-

"'युगांत' में 'पल्लव' की कोमलकांत कला का अभाव है। इसमें मैंने जिस नवीन क्षेत्र को अपनाने की चेष्टा की है, मुझे विश्वास है, भविष्य में उस मैं अधिक परिपूर्ण रूप में ग्रहण एवं प्रदान कर सकूँगा।"

गान्धीवादी विचारधारा

एक प्रकार से हम इसे सन्धिकालीन रचना कह सकते हैं, जिसमें गान्धीवादी विचार धारा को स्पष्ट रूप से आधार बनाया गया है। बाद में यह रचना 'युगपथ' (1948) के प्रथम भाग के रूप में प्रकाशित हुई। इस नये संस्करण में 'युगांत' वाले अंश में कुछ नवीन कविताएँ भी सम्मिलित कर दी गयीं।

सर्वश्रेष्ठ रचना 'बापू के प्रति'

1934-1966 ई. का यह सन्धि-काल पंत के लिए हृदय मंथन का समय है। इसमें गांधी जी के नेतृत्व में देश ने निर्माण-क्षेत्र में नये प्रयोग किये। स्वयं गांधीजी देश की जन-शक्ति के प्रतीक बने। सत्याग्रह-संग्राम की विफलता ने भी उनके महामानवीय व्यक्तित्व को नयी तेजस्विता दी। इसीलिए इस संकलन की सर्वश्रेष्ठ रचना 'बापू के प्रति' में कवि ने उन्हें अपनी शतश: प्रणीत दी। यह रचना गांधी-दर्शन की जाज्वल्यमान मणि है। संकलन की अधिकांश रचनाएँ कवि के मानव-प्रेम से ओतप्रोत हैं और स्वयं गांधीजी में वह मानव की परिपूर्णता के ही दर्शन करता है।

प्रकृति

संकलन में प्रकृति सम्बन्धी अनेक रचनाएँ हैं, जो कवि के ऐश्वर्यशील कल्पनापूर्ण मनोयोग की उपज हैं परंतु उनमें अभिव्यंजना का नया स्वरूप दिखलाई देता है। इन रचनाओं में हम 'गुंजन' की प्रकृति-चेतना का ही प्रसार देखते हैं, परंतु यह स्पष्ट है कि कवि पर चिंतन की छाया बढ़ती जा रही है और उसकी सौन्दर्य-सृष्टि मानव के प्रति करुणा से संचालित तथा मंगल-भावना से निष्पन्न है।

'ताज' शीर्षक रचना

'ताज' शीर्षक रचना में कवि ताजमहल के अपार्थिव सौन्दर्य में बह नहीं जाता क्योंकि ताज उसके लिए गत युग के मृत आदर्शों का प्रतीक बन गया है, जो मानव के मोहान्ध हृदय में घर किये हुए हैं। तात्पर्य यह है कि 'युगांत' की यह रचना प्रकृति और सौन्दर्य के प्रति कवि की नयी मानववादी दृष्टि की देन है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 465-466।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख