पी सतशिवम: Difference between revisions

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'''पी. सतशिवम''' अथवा ''पी. सदाशिवम'' ([[अंग्रेज़ी]]:P. Sathasivam) [[भारत]] के [[उच्चतम न्यायालय|सर्वोच्च न्यायालय]] के न्यायाधीश हैं। [[राष्ट्रपति]] [[प्रणब मुखर्जी]] ने [[19 जुलाई]] [[2013]] [[शुक्रवार]] को न्यायमूर्ति पी. सतशिवम को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई। न्यायमूर्ति सतशिवम अब भारत के 40वें और [[तमिलनाडु]] से पहले मुख्य न्यायाधीश हैं। वह [[26 अप्रैल]], [[2014]] तक इस पद पर बने रहेंगे। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश [[अल्तमस कबीर]] का स्थान लिया है जो [[गुरुवार]] [[18 जुलाई]] [[2013]] को पदभार से मुक्त हुए।
#REDIRECT [[पी. सतशिवम]]
==जीवन परिचय==
पी. सतशिवम का जन्म [[27 अप्रैल]], [[1949]] को हुआ था। उन्होंने [[जुलाई]], [[1973]] में मद्रास में बतौर वकील पंजीकरण करवाया और [[जनवरी]], [[1996]] में मद्रास उच्च न्यायालय के स्थाई न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए। इसके बाद अप्रैल, 2007 में उनका तबादला पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में कर दिया गया।
==विशेष बिंदु==
पी सदाशिवम द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद धारण किए बिना ही सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश का पद ग्रहण किया गया। आमतौर पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ही सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति पाते हैं।
* सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश का पद इस न्यायालय के सबसे वरिष्ठतम न्यायाधीश को मिलता है। आपातकाल के बाद इस तरह की परम्परा कायम की गई। सर्वोच्च न्यायालय ने इस संबंध में निर्णय भी दिए हैं और वरिष्ठता सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्ति की तिथि से गिनी जाती है।
* [[अप्रैल]] [[2007]] में वह स्थानांतरित होकर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में नियुक्त किए गए.
*  64 वर्षीय पी सदाशिवम को वर्ष 1996 में मद्रास उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश के रूप में शामिल किया गया था।
* वह भारत के प्रधान न्यायाधीश के पद पर नियुक्ति पाने वाले [[तमिलनाडु]] से ताल्लुक़ रखने वाले पहले न्यायाधीश हैं। विदित हो कि [[भारत का संविधान|भारत के संविधान]] के अनुच्छेद 124 के तहत भारत के प्रधान न्यायाधीश की नियुक्ति का प्रावधान है। भारत के प्रथम प्रधान न्यायाधीश [[एच. जे. कनिया|एच. जे. कानिया]] थे। एच. जे. कनिया को [[26 जनवरी]] [[1950]] को भारत का प्रथम न्यायाधीश नियुक्त किया गया  और वह इस पद पर [[6 नवंबर]] [[1951]] तक रहे।
* न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की तरह न्यायमूर्ति सदाशिवम भी उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए मौजूदा कोलेजियम व्यवस्था को खत्म करने के विरोध में हैं। इसके साथ ही उन्होंने स्वीकार किया है कि कोलेजियम व्यवस्था में कमियां हैं और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जा सकते हैं।
* सदाशिवम ने कई बड़े फैसले दिए हैं, जिनमें मुंबई विस्फोटों का मामला और पाकिस्तानी वैज्ञानिक मोहम्मद खलील चिश्ती का मामला भी शामिल है।
* न्यायमूर्ति सदाशिवम और न्यायमूर्ति बीसी चौहान ने मुंबई विस्फोटों के मामले में अभिनेता संजय दत्त और कई दूसरे अभियुक्तों की सजा को बरकरार रखा था।
* इनकी पीठ ने [[1993]] के विस्फोटों के मामले में [[पाकिस्तान]] की इस बात के लिए भर्त्सना की थी कि उसकी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ने इन विस्फोटों को अंजाम देने वालों को प्रशिक्षण मुहैया कराया और वह अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपनी सरजमीं से होने वाले आतंकवादी हमलों को रोकने में नाकाम रही है।
* पाकिस्तानी वैज्ञानिक चिश्ती की सजा को रद्द करने वाला फैसला भी न्यायमूर्ति सदाशिवम की अध्यक्षता वाली पीठ ने दिया था।
* न्यायमूर्ति सदाशिवम ने ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस से जुड़े तिहरे हत्याकांड के मामले में भी फैसला सुनाया था। उन्होंने इस मामले में दारा सिंह की सजा को बरकरार रखा था।
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
 
[[Category:न्यायाधीश]][[Category:भारत के मुख्य न्यायाधीश]][[Category:लेखक]][[Category:चरित कोश]]
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Latest revision as of 09:14, 30 November 2013