धूल पर धूल डालना: Difference between revisions

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'''धूल पर धूल डालना''' एक शिक्षाप्रद कहानी है।  
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*राँका-बाँका पति-पत्नी थे। बड़े [[भक्त|प्रभु भक्त]] और विश्वासी थे। सर्वदा नि:स्पृह थे, भगवान ने एक दिन उनकी परीक्षा करने की ठानी।  
राँका-बाँका पति-पत्नी थे। वे दोनों बड़े [[भक्त|प्रभु भक्त]] और विश्वासी थे। भगवान ने एक दिन राँका-बाँका की परीक्षा लेने की ठानी। एक दिन राँका-बाँका लकड़ी लाने जंगल को जा रहे थे। राँका आगे-आगे चल रहा था। बाँका पीछे आ रही थी। राह में किसी चीज़ की राँका को ठोकर लगी। उसने [[सोना|सोने]] की मोहरों से भरी हुई एक थैली देखी। राँका उसे देखकर जल्दी-जल्दी उस पर धूल डालने लगा। इतने में बाँका आ पहुँची। उसने राँका से पूछा क्या कर रहे हो? राँका ने पहले तो नहीं बताया, पर बाँका के विशेष आग्रह करने पर राँका ने उससे कहा मुझें एक सोने की मोहरों से भरी थैली मिली जिस पर तुम्हें देखकर धूल डाल रहा था। मैंने समझा इन पर कहीं तुम्हारा मन न जाय। इसलिये इन्हें धूल डालकर ढक रहा था। बाँका ने हँसकर कहा वाह 'धूल पर धूल डालने से क्या लाभ है? सोने में और धूल में भेद ही क्या है, जो आप इन्हें ढक रहे हैं।'  
*एक दिन राँका-बाँका लकड़ी लाने जंगल को जा रहे थे। पति आगे-आगे चल रहे थे। पत्नी पीछे आ रही थी।  
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*राह में किसी चीज की राँका जी को ठोकर लगी। उन्होंने देखा, [[सोना|सोने]] की मोहरों से भरी थैली खुली पड़ी है। वे उसे देखकर जल्दी-जल्दी धूल डालकर उसे ढकने लगे। इतने में बाँका जी आ पहुँची। उन्होंने पति से पूछा- 'क्या कर रहे हो ? राँका जी ने पहले तो नहीं बताया, पर विशेष आग्रह करने पर कहा- सोने की मोहरें थीं ।
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Latest revision as of 07:39, 15 May 2014

धूल पर धूल डालना एक शिक्षाप्रद कहानी है।

राँका-बाँका पति-पत्नी थे। वे दोनों बड़े प्रभु भक्त और विश्वासी थे। भगवान ने एक दिन राँका-बाँका की परीक्षा लेने की ठानी। एक दिन राँका-बाँका लकड़ी लाने जंगल को जा रहे थे। राँका आगे-आगे चल रहा था। बाँका पीछे आ रही थी। राह में किसी चीज़ की राँका को ठोकर लगी। उसने सोने की मोहरों से भरी हुई एक थैली देखी। राँका उसे देखकर जल्दी-जल्दी उस पर धूल डालने लगा। इतने में बाँका आ पहुँची। उसने राँका से पूछा क्या कर रहे हो? राँका ने पहले तो नहीं बताया, पर बाँका के विशेष आग्रह करने पर राँका ने उससे कहा मुझें एक सोने की मोहरों से भरी थैली मिली जिस पर तुम्हें देखकर धूल डाल रहा था। मैंने समझा इन पर कहीं तुम्हारा मन न आ जाय। इसलिये इन्हें धूल डालकर ढक रहा था। बाँका ने हँसकर कहा वाह 'धूल पर धूल डालने से क्या लाभ है? सोने में और धूल में भेद ही क्या है, जो आप इन्हें ढक रहे हैं।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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