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| *भूपति राज गुरुदत्त सिंह [[अमेठी]] के राजा थे। ये [[रीति काल]] के कवि भी थे।
| | #REDIRECT [[भूपति राजा गुरुदत्त सिंह]] |
| *भूपति ने संवत 1791 में शृंगार के दोहों की एक 'सतसई' बनाई।
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| *[[कवींद्र|उदयनाथ कवींद्र]] इनके यहाँ बहुत दिनों तक रहे।
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| *भूपति जितने सहृदय और काव्य मर्मज्ञ थे उतने ही कवियों का आदर सम्मान करने वाले भी थे।
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| *क्षत्रियों की वीरता भी इनमें पूरी थी। कहा जाता है कि एक बार [[अवध]] के नवाब '[[सआदत खाँ]]' से ये नाराज़ हो हुए। सआदत खाँ ने जब इनकी गढ़ी घेरी तब ये बाहर सआदत खाँ के सामने ही बहुतों को मार-काट कर गिराते हुए जंगल की ओर निकल गए। इनका उल्लेख कवींद्र ने इस प्रकार किया है,
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| <blockquote><poem>समर अमेठी के सरेष गुरुदत्तसिंह,
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| सादत की सेना समरसेन सों भानी है।
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| भनत कवींद्र काली हुलसी असीसन को,
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| सीसन को ईस की जमाति सरसानी है
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| तहाँ एक जोगिनी सुभट खोपरी लै उड़ी,
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| सोनित पियत ताकी उपमा बखानी है।
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| प्यालो लै चिनी को नीके जोबन तरंग मानो,
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| रंग हेतु पीवत मजीठ मुग़लानी है</poem></blockquote>
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| *'सतसई' के अतिरिक्त भूपति ने 'कंठाभूषण' और 'रसरत्नाकर' नाम के दो रीति ग्रंथ भी लिखे जो अनुपलब्ध हैं।
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| *सतसई के दोहे दिए जाते हैं -
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| <blockquote><poem>घूँघट पट की आड़ दै हँसति जबै वह दार।
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| ससिमंडल ते कढ़ति छनि जनु पियूष की धार
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| भए रसाल रसाल हैं भरे पुहुप मकरंद।
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| मानसान तोरत तुरत भ्रमत भ्रमर मदमंद</poem></blockquote>
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| {{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==सम्बंधित लेख==
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| {{भारत के कवि}}
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| [[Category:रीति काल]][[Category:रीतिकालीन कवि]][[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]]
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