प्रयोग:गोविन्द 4: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
(पृष्ठ को खाली किया)
 
(3 intermediate revisions by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
{| style="background:transparent; width:100%"
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"| <font color="#003366">एक आलेख</font>
|-
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
<div style="padding:3px">[[चित्र:Rgb-mix.jpg|right|100px|link=रंग|border]]</div>
<poem>
        '''[[रंग]]''' [शुद्ध: '''रङ्‌ग'''] अथवा '''वर्ण''' का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। रंग हज़ारों वर्षों से हमारे जीवन में अपनी जगह बनाए हुए हैं। प्राचीनकाल से ही रंग कला में [[भारत]] का विशेष योगदान रहा है। [[मुग़ल काल]] में भारत में रंग कला को अत्यधिक महत्त्व मिला। रंगों से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। हम अपने चारों तरफ़ अनेक प्रकार के रंगों से प्रभावित होते हैं। रंग, मानवी [[आँख|आँखों]] के [[वर्णक्रम]] से मिलने पर छाया सम्बंधी गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं। मूल रूप से [[इंद्रधनुष]] के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग [[लाल रंग|लाल]], [[नारंगी रंग|नारंगी]], [[पीला रंग|पीला]], [[हरा रंग|हरा]], [[आसमानी रंग|आसमानी]], [[नीला रंग|नीला]] तथा [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] हैं। रंग से विभिन्न प्रकार की श्रेणियाँ एवं भौतिक विनिर्देश वस्तु, [[प्रकाश]] स्रोत इत्यादि के भौतिक गुणधर्म जैसे प्रकाश विलयन, समावेशन, परावर्तन जुड़े होते हैं।। [[रंग|... और पढ़ें]]
</poem>


<center>
{| style="margin:0; background:transparent" cellspacing="3"
|-
| [[चयनित लेख|पिछले आलेख]] →
| [[सिंधु घाटी सभ्यता]]
| [[दीपावली]]
| [[रामलीला]]
| [[श्राद्ध]]
|}</center>
|}<noinclude>[[Category:विशेष आलेख के साँचे]]</noinclude>
----
{| style="background:transparent; width:100%"
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">एक व्यक्तित्व</font>
|-
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
[[चित्र:Nazeer-Akbarabadi.jpg|right|80px|नज़ीर अकबराबादी|link=नज़ीर अकबराबादी|border]]
<poem>
        '''[[नज़ीर अकबराबादी]]''' [[उर्दू]] में नज़्म लिखने वाले पहले कवि माने जाते हैं। समाज की हर छोटी-बड़ी ख़ूबी को नज़ीर साहब ने कविता में तब्दील कर दिया। ककड़ी, [[जलेबी]] और तिल के लड्डू जैसी वस्तुओं पर लिखी गई कविताओं को आलोचक कविता मानने से इनकार करते रहे। बाद में नज़ीर साहब की 'उत्कृष्ट शायरी' को पहचाना गया और आज वे [[उर्दू साहित्य]] के शिखर पर विराजमान चन्द नामों के साथ बाइज़्ज़त गिने जाते हैं। लगभग सौ वर्ष की आयु पाने पर भी इस शायर को जीते जी उतनी ख्याति नहीं प्राप्त हुई जितनी कि उन्हें आज मिल रही है। नज़ीर की शायरी से पता चलता है कि उन्होंने जीवन-रूपी पुस्तक का अध्ययन बहुत अच्छी तरह किया है। भाषा के क्षेत्र में भी वे उदार हैं, उन्होंने अपनी शायरी में जन-संस्कृति का, जिसमें हिन्दू संस्कृति भी शामिल है, दिग्दर्शन कराया है और हिन्दी के शब्दों से परहेज़ नहीं किया है। उनकी शैली सीधी असर डालने वाली है और [[अलंकार|अलंकारों]] से मुक्त है। शायद इसीलिए वे बहुत लोकप्रिय भी हुए। [[नज़ीर अकबराबादी|... और पढ़ें]]
</poem>
<center>
{| style="margin:0; background:transparent" cellspacing="3"
|-
| [[एक व्यक्तित्व|पिछले लेख]] →
| [[पांडुरंग वामन काणे]]
| [[बिस्मिल्लाह ख़ाँ]]
| [[लाला लाजपत राय]]
|}</center>
|}<noinclude>[[Category:एक व्यक्तित्व के साँचे]]</noinclude>
{| style="background:transparent; width:100%"
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">एक रचना</font>
|-
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
<div style="padding:3px">[[चित्र:Prathvirajrasoo.jpg|right|80px|link=पृथ्वीराज रासो|border]]</div>
<poem>
        '''[[पृथ्वीराज रासो]]''' [[हिन्दी]] भाषा में लिखा गया एक [[महाकाव्य]] है, जिसमें [[पृथ्वीराज चौहान]] के जीवन-चरित्र का वर्णन किया गया है। यह महाकवि [[चंदबरदाई]] की रचना है, जो पृथ्वीराज के अभिन्न मित्र तथा राजकवि थे। इसमें दिल्लीश्वर पृथ्वीराज के जीवन की घटनाओं का विशद वर्णन है। यह तेरहवीं शती की रचना है। डॉ. माताप्रसाद गुप्त इसे 1400 विक्रमी संवत के लगभग की रचना मानते हैं। इसमें पृथ्वीराज व उनकी प्रेमिका [[संयोगिता]] के परिणय का सुन्दर वर्णन है। यह ग्रंथ ऐतिहासिक कम काल्पनिक अधिक है। [[रामचन्द्र शुक्ल|आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]] ने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में लिखा है- 'पृथ्वीराज रासो ढाई हज़ार पृष्ठों का बहुत बड़ा ग्रंथ है जिसमें 69 समय (सर्ग या अध्याय) हैं। प्राचीन समय में प्रचलित प्राय: सभी छंदों का व्यवहार हुआ है। मुख्य छंद हैं कवित्त (छप्पय), दूहा, तोमर, त्रोटक, गाहा और आर्या। [[पृथ्वीराज रासो|...और पढ़ें]]</poem>
<center>
{| style="margin:0; background:transparent" cellspacing="3"
|-
| [[एक रचना|पिछले लेख]] →
| [[रामचरितमानस]]
| [[वंदे मातरम्]]
| [[ पद्मावत]]
|}</center>
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>
{| style="background:transparent; width:100%"
|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">एक त्योहार</font>
|-
{{मुखपृष्ठ-{{CURRENTHOUR}}}}
<div style="padding:3px">[[चित्र:Kolaz-Holi.jpg|होली के विभिन्न दृश्य|right|100px|link=होली|border]]</div>
<poem>
        '''[[होली]]''' [[भारत]] का प्रमुख त्योहार है। [[पुराण|पुराणों]] में वर्णित है कि [[हिरण्यकशिपु]] की बहन [[होलिका]] वरदान के प्रभाव से नित्य अग्नि स्नान करती थी। हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका से [[प्रह्लाद]] को गोद में लेकर अग्निस्नान करने को कहा। उसने समझा कि ऐसा करने से प्रह्लाद अग्नि में जल जाएगा तथा होलिका बच जाएगी। होलिका ने ऐसा ही किया, किंतु होलिका जल गयी, प्रह्लाद बच गये। इस पर्व को 'नवान्नेष्टि यज्ञपर्व' भी कहा जाता है, क्योंकि खेत से आये नवीन अन्न को इस दिन [[यज्ञ]] में हवन करके प्रसाद लेने की परम्परा भी है। उस अन्न को 'होला' कहते है। इसी से इसका नाम 'होलिकोत्सव' पड़ा। सभी लोग आपसी भेदभाव को भुलाकर इसे हर्ष व उल्लास के साथ मनाते हैं। होली पारस्परिक सौमनस्य एकता और समानता को बल देती है। [[लिंग पुराण]] में आया है- 'फाल्गुन पूर्णिमा को 'फाल्गुनिका' कहा जाता है, यह बाल-क्रीड़ाओं से पूर्ण है और लोगों को विभूति, ऐश्वर्य देने वाली है।' [[वराह पुराण]] में आया है कि यह 'पटवास-विलासिनी' है। [[होली|... और पढ़ें]]
</poem>
|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude>

Latest revision as of 07:10, 23 March 2016