Difference between revisions of "कटरा केशवदेव मन्दिर मथुरा"

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[[चित्र:Katra-Keshav-Dev-Mathura.jpg|thumb|250px|कटरा केशवदेव मन्दिर, [[मथुरा]]<br /> Katra Keshdev Temple, Mathura]]
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#REDIRECT [[कटरा केशवदेव मन्दिर, मथुरा]]
यह मंदिर  [[कृष्ण जन्मभूमि]] आवासीय द्वार के निकट मल्लपुरा, [[मथुरा]] में स्थित है। इसका निर्माण ई. 1600 में हुआ था। इसकी लम्बाई-चौड़ाई 75'X55' है, लखोरी ईंट चूना और लाल पत्थर की यह दो मंज़िला इमारत है।
 
====इतिहास====
 
*भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी इहलौकिक लीला संवरण की। उधर [[युधिष्ठर]] महाराज ने [[परीक्षित]] को [[हस्तिनापुर]] का राज्य सौंपकर श्री[[कृष्ण]] के प्रपौत्र वज्रनाभ को [[मथुरा]] मंडल के राज्य सिंहासन पर प्रतिष्ठित किया। चारों भाइयों सहित युधिष्ठिर स्वयं महाप्रस्थान कर गये। महाराज वज्रनाभ ने महाराज परीक्षित और महर्षि शांडिल्य के सहयोग से मथुरा मंडल की पुन: स्थापना करके उसकी सांस्कृतिक छवि का पुनरूद्वार किया। वज्रनाभ द्वारा जहाँ अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया गया, बहीं भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की जन्मस्थली का भी महत्त्व स्थापित किया। यह [[कंस]] का कारागार था, जहाँ वासुदेव ने भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की आधी रात अवतार ग्रहण किया था। '''आज यह कटरा केशवदेव नाम से प्रसिद्व है।''' यह कारागार केशवदेव के मन्दिर के रूप में परिणत हुआ। इसी के आसपास मथुरा पुरी सुशोभित हुई। यहाँ कालक्रम में अनेकानेक गगनचुम्बी भव्य मन्दिरों का निर्माण हुआ। इनमें से कुछ तो समय के साथ नष्ट हो गये और कुछ को विधर्मियों ने नष्ट कर दिया ।
 
*[[वराह पुराण|आदिवाराह पुराण]] में इसका उल्लेख है। यह मथुरा के पवित्र एवं प्राचीन धार्मिक स्थलों में से एक है। मूल मन्दिर का विध्वंस [[औरंगजेब]] द्वारा कर दिया गया था और इस स्थल पर प्राचीन मन्दिर के अवशेषों को प्रतिष्ठित कर दिया गया था। कहाँ जाता है कि मूल मन्दिर की मूर्ति को [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के पोते [[वज्रनाभ]] द्वारा प्रतिष्ठित कराया गया था। कुछ लोगों के अनुसार, मन्दिर जीवाज़ीराव सिंधिया द्वारा निर्मित करवाया गया था। अब इस मन्दिर की मूल मूर्ति नाथद्वारा मन्दिर में है।<br />
 
* इसकी भव्यता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि इसके संबंध में फ़्रांसीसी यात्री [[जीन बैप्टिस्ट टॅवरनियर|तॅवरनियर]] (Jean-Baptiste Tavernier) ने लिखा है कि “यह मंदिर [[भारत]] की सबसे भव्य और सुन्दर इमारतों में से एक है, जो 5 से 6 कोस की दूरी से भी दिखाई देती है”। एक कोस (क्रोश) में लगभग 3 किलोमीटर होते हैं तो यह दूरी लगभग 16 किलोमीटर होती है।<ref>{{cite web |url=http://www.archive.org/stream/travelsinindia00tavegoog#page/n271/mode/2up |title=Travels in India |accessmonthday=8 दिसम्बर |accessyear=2011 |last=टॅवरनियर|first=जीन बैप्टिस्ट |authorlink= |format=P.D.F.|publisher= |language=अंग्रेज़ी }}</ref>
 
'''प्रथम मन्दिर'''<br />
 
ईसवी सन् से पूर्ववर्ती 80-57 के [[महाक्षत्रप]] सौदास के समय के एक शिला लेख से ज्ञात होता है कि किसी वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक मंदिर तोरण द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था। यह शिलालेख [[ब्राह्मी लिपि]] में है। [[चित्र:Katra Keshav Dev Mathura-2.jpg|thumb|250px|कटरा केशवदेव मन्दिर, [[मथुरा]]<br /> Katra Keshdev Temple, Mathura|left]]<br />
 
'''द्वितीय मन्दिर'''<br />
 
दूसरा मन्दिर [[विक्रमादित्य]] के काल में सन् 800 ई. के लगभग बनवाया गया था। संस्कृति और कला की दृष्टि से उस समय मथुरा नगरी बड़े उत्कर्ष पर थी। हिन्दू धर्म के साथ [[बौद्ध]] और [[जैन]] धर्म भी उन्नति पर थे। श्रीकृष्ण जन्मस्थान के संमीप ही जैनियों और बौद्धों के विहार और मन्दिर बने थे। यह मन्दिर सन 1017-18 ई. में [[महमूद ग़ज़नवी]] के कोप का भाजन बना। इस भव्य सांस्कृतिक नगरी की सुरक्षा की कोई उचित व्यवस्था न होने से महमूद ने इसे ख़ूब लूटा। '''भगवान केशवदेव का मन्दिर भी तोड़ डाला गया।'''<br />
 
'''तृतीय मन्दिर'''<br />
 
[[संस्कृत]] के एक शिला लेख से ज्ञात होता है कि महाराजा विजयपाल देव जब मथुरा के शासक थे, तब सन 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक नया मन्दिर बनवाया था। यह विशाल एवं भव्य बताया जाता हैं। इसे भी 16 वी शताब्दी के आरम्भ में [[सिकन्दर लोदी]] के शासन काल में नष्ट कर डाला गया था।<br />
 
'''चतुर्थ मन्दिर'''<br />
 
[[जहाँगीर]] के शासन काल में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर पुन: एक नया विशाल मन्दिर निर्माण कराया ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जू देव बुन्देला ने इसकी ऊँचाई 250 फीट रखी गई थी। यह [[आगरा]] से दिखाई देता बताया जाता है। उस समय इस निर्माण की लागत 33 लाख रुपये आई थी। इस मन्दिर के चारों ओर एक ऊँची दीवार का परकोटा बनवाया गया था, जिसके अवशेष अब तक विद्यमान हैं। दक्षिण पश्चिम के एक कोने में कुआ भी बनवाया गया था इस का पानी 60 फीट ऊँचा उठाकर मन्दिर के प्रागण में फव्वारे चलाने के काम आता था। यह [[कुआँ]] और उसका बुर्ज आज तक विद्यमान है। सन 1669 ई. में पुन: यह मन्दिर नष्ट कर दिया गया और इसकी भवन सामग्री से ईदगाह बनवा दी गई जो आज विद्यमान है।
 
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==संबंधित लेख==
 
{{ब्रज के दर्शनीय स्थल}}
 
[[Category:हिन्दू मन्दिर]]
 
[[Category:हिन्दू धर्म]] [[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
 
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Latest revision as of 10:31, 14 April 2016