प्रयोग:माधवी 3: Difference between revisions

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'''प्रभाशंकर पाटनी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Prabha Shankar Patni'', जन्म- [[14 अप्रैल]] [[1862]], सौराष्ट्र मोख ज़िला; मृत्यु- [[16 अक्टूबर]],[[1938]]) [[गुजरात]] के प्रमुख सार्वजनिक कार्यकर्त्ता थे। [[गांधी जी]] से उनकी निकटता थी और [[भावनगर]] में प्रभाशंकर पाटनी ने हरिजन उद्धार, महिला जागरण आदि के रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाया। प्रभाशंकर पाटनी [[मुंबई]] के गवर्नर ई एक्जिक्यूटिव के सदस्य और [[दिल्ली]] में वाइसराय की एक्जिक्यूटिव के सदस्य थे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=492|url=}}</ref>
==परिचय==
प्रभाशंकर पाटनी का जन्म 14 अप्रैल, 1862 ई. को सौराष्ट्र के मोख कस्बे में एक गरीब परिवार में हुआ था। उन्होंने दो वर्ष तक [[मुंबई]] के मेडिकल कॉलेज़ में शिक्षा पाई। पाटनी संस्कृत के विद्वान और नरम विचारों के व्यक्ति थे। पर वे राष्ट्रवादी थे। इस बीच [[1891]] में [[भावनगर]] रियासत में पहले प्रभाशंकर राजकुमार के सहयोगी, फिर राजा के निजी सचिव और बाद में [[दीवान]] बन गए। [[गांधी जी]] से उनकी निकटता थी और भावनगर में उन्होंने हरिजन उद्धार, महिला जागरण आदि के रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाया।
==भारत का प्रतिनिधित्व==
भावनगर रियासत की सेवा के बाद प्रभाशंकर पाटनी मुंबई के गवर्नर ई एक्जिक्यूटिव के सदस्य और [[दिल्ली]] में वाइसराय की एक्जिक्यूटिव के सदस्य मनोनीत हुए थे। [[1917]] में उन्हें भारत मंत्री की कौंसिल के सदस्य के रूप में दो वर्ष के लिए [[लंदन]] बुला लिया। [[भारत]] वापस आने पर प्रभाशंकर पाटनी भावनगर रियासत के प्रशासक बने। लंदन के [[द्वितीय गोलमेज सम्मेलन]] में भाग लेने के लिए वे और [[गांधी जी]] एक एक जहाज़ से गए थे। आटनी ने राष्ट्र संघ में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया। प्रभाशंकर पाटनी की जानकारी में लाहौर पड्यंत्र केस के अभियुक्त सरदार पृथ्वी सिंह बहुत समय तक भावनगर में रहे थे। ब्रिटिश अधिकारी, रियासत के राजा और गांधी जी सभी उनका विश्वास करते थे।
==निधन==
[[16 अक्टूबर]], [[1938]] को प्रभाशंकर पाटनी का निधन हो गया।
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=माध्यमिक1 |पूर्णता= |शोध= }}


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
[[Category:प्रसिद्ध_व्यक्तित्व]][[Category:जीवनी_साहित्य]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]
__INDEX__
__NOTOC__
'''प्रेमनाथ डोगरा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Prem Nath Dogra'', जन्म- [[24 अक्टूबर]] [[1884]], समाइलपुर ज़िला [[जम्मू]]; मृत्यु- [[20 मार्च]], [[1972]]) जम्मू-कश्मीर से एक नेता थे। जिन्होंने [[भारत]] के साथ राज्य की कुल एकीकरण के लिए काम किया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन=भारतकोश पुस्तकालय |संपादन=|पृष्ठ संख्या=494|url=}}</ref>
==जन्म एवं परिचय==
प्रेमनाथ डोगरा का जन्म जम्मू के निकट समाइलपुर में अक्टूबर, 1884 ई. में हुआ था। उनके [[पिता]] पंडित अनंतराम लाहौर में [[कश्मीर]] राज्य की संपत्ति के प्रबंधक
थे। प्रेमनाथ की शिक्षा वहीं हुई। शिक्षा पूरी करने पर वे राज्य की सेवा में तहसीलदार नियुक्त हुए और फिर डिप्टी कमिश्नर बन गए। लेकिन [[1931]] में मुजफ्फराबाद में [[मुस्लिम]] आंदोलनकारियों को दबाने में ढिलाई का आरोप लगा कर उन्हें सेवा से हटा दिया गया।
==समाज सेवक==
राज्य की सेवा से हटने के बाद प्रेमनाथ ने अपना ध्यान समाज सेवा की ओर लगाया। वे 'ब्राह्मण मंडल' और 'सनातन धर्म सभा' के अध्यक्ष बन गए। प्रेमनाथ ने अपने पिता के साथ मिल कर उस कानून को पास कराने में महत्वपूर्ण योग दिया जिसके अनुसार कोई गैर-कश्मीरी न तो [[कश्मीर]] में सरकारी नौकरी पा सकता है और न वहां कोई संपत्ति खरीद सकता है। प्रेमनाथ ने कश्मीर के महाराजा का साथ दिया और वे इस 'हिंदो रियासत' को उसके पूर्व रूप में बनाए रखना चाहते थे। किन्तु बाद की परिस्थितियों में राजा को ठीक समय पर भारतीय संघ में सम्मिलित होने के लिए अधिकृत कर दिया।
प्रेमनाथ डोगरा जम्मू कश्मीर राज्य में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संघचालक थे। उन्हें 948 में नजरबंद किया गया। 1949 और 1950 में फिर गिरफ्तार हुए। अंतिम गिरफ्तारी के समय केंद्रीय मंत्री गोपाला स्वामी आयंगार के हस्तक्षेप से रिहा हुए थे। यह समय था जब शेख अब्दुल्ला धीरे-धीरे राज्य को केंद्रीय सरकार से अलग करने के प्रयत्नों में लगे हुए थे। ऐसी स्थिति में कश्मीर के हिंदुओं का नेतृव्य प्रेमनाथ डोगरा के हाथों में आ गया। उन्होंने केंद्र के साथ निकटता बनाए रखने के लिए प्रजा परिषद् की सथापना की और आंदोलन चलाया। फलत: 1953 में शेख अब्दुला की सरकार भंग कर दी गई और उन्हें जेल में डाल दिया गया। अब तक प्रेमनाथ पर्याप्त लोकप्रिय हो चुके थे। 1955-1956 में उन्हें भारतीय जन संघ का अध्यक्ष चुना गया। वे अनेक वर्षों तक राज्य की विधान सभा में जम्मू नगर के प्रतिनिधि भी रहे। वे बड़े मृदुभाषी और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। 20 मार्च, 1972 ई. को उनका देहांत हो गया।

Latest revision as of 12:40, 20 April 2017