प्रयोग:माधवी 2: Difference between revisions

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'''सारंगधर दास''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Sarangadhar Das'' जन्म- [[19 अक्टूबर]], [[1887]], ज़िला ढेंकनाल रियासत ब्रिटिश भारत; मृत्यु- [[18 सितंबर]], [[1957]]) एक स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्होंने चीनी उड़ीसा में उद्योग स्थापित किया था। सारंगधर दास ने 'भारत छोड़ों आंदोलन' में वे गिरफ्तार हुए थे और [[1946]] तक जेल में बंद रहे।  [[उड़ीसा]] असेम्बली के सदस्य चुने गए थे। [[1948]] में वे [[समाजवादी पार्टी]] में सम्मिलित हो गए और [[लोकसभा]] के सदस्य रहे थे।। उन्होंने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संघ की अध्यक्षता भी की।
 
==जन्म एवं शिक्षा==
सारंगधर दास का उड़ीसा की देशी रियासत धेनकनाल में 19 अक्टूबर, 1887 को जन्म हुआ था। इनका जीवन शिक्षा, उद्योग और राजनीति तीनों क्षेत्रों में बड़ा संघर्ष पूर्ण थहै। [[कटक]] से बी.ए. पास करन के के बाद आगे के अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति लेकर वे [[जापान]] गए। वे वर्ष भर टोकियो के टेकनिकल इंस्टीट्यूट में रह कर [[अमरीका]] पहुँचे और कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी से रसायन और [[कृषि]] में उच्च डिग्री प्राप्त की। कुछ वर्षों तक अमेरिका और बर्मा की चीनी मिलों में काम करने के बाद वे भारत वापस आ गए।
==चीनी मिल की स्थापना==
भारत आकर सारंगधर दास ने अपने गाँव हरिकृष्णपुर के निकट एक चीनी मिल की स्थापना की थी। उस आदिवासी क्षेत्र की उन्नति के लिए यह वरदान सिद्ध हुई। इससे आदिवासियों की आर्थिक सुधरी और उसके बीच सारंगधर दास का प्रभाव भी बढ़ा था। उनके बढ़ते प्रभाव से रियासत धेनकलाल का शासक संकित हो उठा था।
==ब्रिटिश अत्याचारों के खिलाफ आवाज==
[[1928]] में जब सारंगधर दास इलाज के लिए [[कोलकाता]] गए थे, रियासर के शासक ने झूठे अभियोग लगाकर उनकी चीनी मिल के गन्ने के खेतों को जब्त करके नीलाम करा दिया। लौटने पर इस अन्याय की शिकायत जन उन्होंने रियासत के ब्रिटिश पोलिटिकल एजेंट और [[बिहार]]-[[उड़ीसा]] के गवर्नर से की तो वहाँ भी कोई सुनबाई नहीं हुई थी। इस पर सारंगधर दास ने जनता को संगठित करके रियासत के अत्याचारों का सामना करने का निश्चय किया। उन्होंने '[[उड़ीसा]] राज्य प्रजामंडक' बनाया जिसका पहला सम्मेलन [[1931]] ई. में पट्टाभि सीतारामय्या की अध्यक्षता में हुआ। इसके बाद प्रांत की अन्य रियासतों पर भी इसका प्रभाव पड़ा और लोग  अपने अधिकारों के लिए संगठित होने लगे। कई जगह खुला संघर्ष हुआ और लोगों को पुलिस की गोलियाँ झेलनी पड़ीं। इस प्रकार सारंगधर दास जिन्होंने उड़ीसा में उद्योग स्थापित करने का काम आरंभ किया था, विदेशी सरकार और उसके समर्थक देशी रजवाड़ों के विरुद्ध [[स्वतंत्रता संग्राम]] में सम्मिलित हो गए। 'भारत छोड़ों आंदोलन' में वे गिरफ्तार हुए और 1946 तक जेल में बंद रहे। जेल से छूटने पर उड़ीसा असेम्बली के सदस्य चुने गए। 1948 में वे समाजवादी पार्टी में सम्मिलित हो गए और लोकसभा के लिए चुन कर वहाँ अपने पार्टी के नेता रहे। उन्होंने केंद्र सरकार के कर्मचारियों के संघ की अध्यक्षता भी की। 18 सितंबर, 1957 को उनका देहांत हो गया।

Latest revision as of 12:41, 20 April 2017