आज़ादी के लिए -राजेंद्र प्रसाद: Difference between revisions
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उन दिनों | उन दिनों महान् स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश के नामी वकीलों में गिने जाते थे। उनके पास मान-सम्मान और पैसे की कोई कमी नहीं थी। लेकिन जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो राजेन्द्र बाबू ने वकालत छोड़ दी और अपना पूरा समय मातृभूमि की सेवा में लगाने लगे। हालांकि अपने एक पुराने मित्र रायबहादुर हरिहर प्रसाद सिंह को दिए वचन के कारण उनके मुकदमों की पैरवी के लिए उन्हें इंग्लैण्ड जाना पड़ा। | ||
सीनियर बैरिस्टर अपजौन इंग्लैण्ड में हरि जी का केस लड़ रहे थे, जिनके साथ राजेन्द्र बाबू को काम करना था। अपजौन देखते कि राजेन्द्र बाबू सुबह से शाम तक अपना काम बिना कुछ बोले, पूरी निष्ठा और लगन के साथ करते रहते हैं। वह उनकी सादगी और विनम्रता से बेहद प्रभावित हुए। एक दिन किसी ने अपजौन को राजेंद्र बाबू के बारे में बताया कि वह एक सफल वकील रहे हैं पर अपने देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने वकालत छोड़ दी और अब गांधीजी के निकटतम सहयोगी हैं। | सीनियर बैरिस्टर अपजौन इंग्लैण्ड में हरि जी का केस लड़ रहे थे, जिनके साथ राजेन्द्र बाबू को काम करना था। अपजौन देखते कि राजेन्द्र बाबू सुबह से शाम तक अपना काम बिना कुछ बोले, पूरी निष्ठा और लगन के साथ करते रहते हैं। वह उनकी सादगी और विनम्रता से बेहद प्रभावित हुए। एक दिन किसी ने अपजौन को राजेंद्र बाबू के बारे में बताया कि वह एक सफल वकील रहे हैं पर अपने देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने वकालत छोड़ दी और अब गांधीजी के निकटतम सहयोगी हैं। | ||
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Latest revision as of 14:03, 30 June 2017
आज़ादी के लिए -राजेंद्र प्रसाद
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विवरण | राजेंद्र प्रसाद |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | राजेंद्र प्रसाद के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
उन दिनों महान् स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश के नामी वकीलों में गिने जाते थे। उनके पास मान-सम्मान और पैसे की कोई कमी नहीं थी। लेकिन जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो राजेन्द्र बाबू ने वकालत छोड़ दी और अपना पूरा समय मातृभूमि की सेवा में लगाने लगे। हालांकि अपने एक पुराने मित्र रायबहादुर हरिहर प्रसाद सिंह को दिए वचन के कारण उनके मुकदमों की पैरवी के लिए उन्हें इंग्लैण्ड जाना पड़ा।
सीनियर बैरिस्टर अपजौन इंग्लैण्ड में हरि जी का केस लड़ रहे थे, जिनके साथ राजेन्द्र बाबू को काम करना था। अपजौन देखते कि राजेन्द्र बाबू सुबह से शाम तक अपना काम बिना कुछ बोले, पूरी निष्ठा और लगन के साथ करते रहते हैं। वह उनकी सादगी और विनम्रता से बेहद प्रभावित हुए। एक दिन किसी ने अपजौन को राजेंद्र बाबू के बारे में बताया कि वह एक सफल वकील रहे हैं पर अपने देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने वकालत छोड़ दी और अब गांधीजी के निकटतम सहयोगी हैं।
अपजौन को आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगे कि ये इतने दिनों से मेरे साथ काम कर रहे है पर अपने मुंह से आज तक अपने बारे में कुछ नहीं बताया। अपजौन एक दिन राजेन्द्र बाबू से बोले- लोग सफलता, पद और पैसे के पीछे भागते हैं और आप हैं कि इतनी चलती हुई वकालत को ठोकर मार दी। आपने गलत किया। राजेन्द्र बाबू ने जवाब दिया- एक सच्चे हिंदुस्तानी को अपने देश को आजाद कराने के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। वकालत छोड़ना तो एक छोटी सी बात है। अपजौन अवाक रह गए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भबाहरी कड़ियाँसंबंधित लेख |
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