प्रयोग:कविता बघेल 7: Difference between revisions

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{{सूचना बक्सा कलाकार
|चित्र=Siddheshwari-Devi.jpg
|चित्र का नाम=सिद्धेश्वरी देवी
|पूरा नाम=सिद्धेश्वरी देवी
|प्रसिद्ध नाम=
|अन्य नाम=गोनो
|जन्म=[[8 अगस्त]], [[1908]]
|जन्म भूमि=[[वाराणसी]]
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|संतान=सविता देवी
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|प्रसिद्धि=गायिका
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|अन्य जानकारी=सिद्धेश्वरी देवी ने उषा मूवीटोन की कुछ फ़िल्मों में अभिनय भी किया पर शीघ्र ही वे समझ गयीं कि उनका क्षेत्र केवल गायन ही है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''सिद्धेश्वरी देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Siddheshwari Devi'', जन्म: [[8 अगस्त]], [[1908]], [[वाराणसी]]; मृत्यु: [[17 मार्च]], [[1977]]) प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत गायिका थीं। उस काल में गाने व नाचने वालों को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता था और महिला कलाकारों को तो वेश्या ही मान लिया जाता था। ऐसे समय में सिद्धेश्वरी देवी ने अपनी कला के माध्यम से भरपूर मान और सम्मान अर्जित किया। उन्हें निर्विवाद रूप से ठुमरी गायन की साम्राज्ञी मान लिया गया।<ref>{{cite web |url=https://www.facebook.com/GeneralKnowledgeandIndianHistory/posts/831936316908485 |title=सुरों की सिद्धेश्वरी |accessmonthday=18 जून |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=www.facebook.com |language=हिंदी}}</ref>


==परिचय==
सिद्धेश्वरी देवी का जन्म 8 अगस्त, 1908 को वाराणसी ([[उत्तर प्रदेश]]]) में हुआ था। अपने जीवन काल में निर्विवाद रूप से उन्हें ठुमरी गायन की साम्राज्ञी मान लिया गया । इनके पिता श्री श्याम तथा माता श्रीमती चंदा उर्फ श्यामा थीं। जब ये डेढ़ वर्ष की ही थीं, तब इनकी माता का निधन हो गया। अतः इनका पालन इनकी नानी मैनाबाई ने किया, जो एक लोकप्रिय गायिका व नर्तकी थीं। सिद्धेश्वरी देवी का बचपन का नाम गोनो था। उन्हें सिद्धेश्वरी देवी नाम प्रख्यात विद्वान व ज्योतिषी पंडित महादेव प्रसाद मिश्र (बच्चा पंडित) ने दिया।
====संगीत की शिक्षा====
सिद्धेश्वरी देवी ने संगीत की शिक्षा पंडित सिया जी मिश्र, पंडित बड़े रामदास जी, उस्ताद रज्जब अली खां और इनायत खां आदि से ली। ईश्वर प्रदत्त जन्मजात प्रतिभा के बाद ऐसे श्रेष्ठ गुरुओं का सान्निध्य पाकर सिद्धेश्वरी देवी गीत-संगीत के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध हस्ती बन गयीं।
==कॅरियर की शुरुआत==
सिद्धेश्वरी देवी को पहली बार 17 साल की अवस्था में सरगुजा के युवराज के विवाहोत्सव में गाने का अवसर मिला। उनके पास अच्छे वस्त्र नहीं थे। ऐसे में विद्याधरी देवी ने इन्हें वस्त्र दिये। वहां से सिद्धेश्वरी देवी का नाम सब ओर फैल गया। एक बार तो [[मुंबई]] के एक समारोह में वरिष्ठ गायिका केसरबाई इनके साथ ही उपस्थित थीं। जब उनसे ठुमरी गाने को कहा गया, तो उन्होंने कहा कि जहां ठुमरी साम्राज्ञी सिद्धेश्वरी देवी हों वहां मैं कैसे गा सकती हूं। अधिकांश बड़े संगीतकारों का भी यही मत था कि मलका और गौहर के बाद ठुमरी के सिंहासन पर बैठने की अधिकार सिद्धेश्वरी देवी ही हैं। उन्होंने [[पाकिस्तान]], [[अफ़ग़ानिस्तान]], [[नेपाल]] तथा अनेक यूरोपीय देशों में जाकर भारतीय ठुमरी की धाक जमाई। उन्होंने राजाओं और जमीदारों के दरबारों से अपने प्रदर्शन प्रारम्भ किये और बढ़ते हुए आकाशवाणी और दूरदर्शन तक पहुंचीं। जैसे-जैसे समय और श्रोता बदले, उन्होंने अपने संगीत में परिवर्तन किया, यही उनका सफलता का रहस्य था। सिद्धेश्वरी देवी ने श्रीराम भारतीय कला केन्द्र, [[दिल्ली]] और कथक केन्द्र में नये कलाकारों को ठुमरी सिखाई।
सिद्धेश्वरी देवी ने उषा मूवीटोन की कुछ फ़िल्मों में अभिनय भी किया पर शीघ्र ही वे समझ गयीं कि उनका क्षेत्र केवल गायन है। उन्होंने स्वतंत्रता के आंदोलन में खुलकर तो भाग नहीं लिया पर उसके लिए वे आर्थिक सहायता करती रहती थीं। उन दिनों वे अपने कार्यक्रमों में यह भजन अवश्य गाती थीं।
:::'''मथुरा न सही गोकुल न सही, रहो वंशी बजाते कहीं न कहीं।'''
:::'''दीन भारत का दुख अब दूर करो, रहो झलक दिखाते कहीं न कहीं।।'''
==सम्मान एवं पुरस्कार==
सिद्धेश्वरी देवी को अपने जीवन काल बहुत-से पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं, जो इस प्रकार है-
*[[भारत सरकार]] द्वारा [[पद्मश्री]] पुरस्कार
*साहित्य कला परिषद सम्मान ([[उत्तर प्रदेश]])
*संगीत नाटक अकादमी सम्मान
*केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी सम्मान
==निधन==
सिद्धेश्वरी देवी पर [[26 जून]], [[1976]] को उन पर पक्षाघात का आक्रमण हुआ और [[17 मार्च]], [[1977]] की प्रातः वे ब्रह्मलीन हो गयीं। उनकी पुत्री सविता देवी भी प्रख्यात गायिका हैं। उन्होंने अपनी मां की स्मृति में 'सिद्धेश्वरी देवी एकेडेमी ऑफ़ म्यूजिक' की स्थापना की है। इसके माध्यम से वे प्रतिवर्ष संगीत समारोह आयोजित कर वरिष्ठ संगीत साधकों को सम्मानित करती हैं।

Latest revision as of 12:09, 29 September 2017