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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {निम्नलिखित कलाकारों में स्वच्छंदतावाद से किसका संबंध है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-114,प्रश्न-7
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| -पिकासो
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| -बेरनिनी
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| -वरमीयर
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| +देलाक्रा
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| ||'स्वच्छंदतावाद' (Romanticism) से देलाक्रा का संबंध है। स्वच्छंदतावाद की शुरुआत यद्यपि जरिको (थियोडोर जेरिकॉल्ट) ने की परंतु उसमें अधिक संवेदना और चेतना डालकर उसे सामर्थ्यशाली बनाने का काम ओजेन देलाक्रा ने किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) देलाक्रा ने ऑटोमॅन सेना द्वारा किओस में बसे लोगों पर हमले की भीषण घटना को विषय बनाते हुए अपना बहुविख्यात चित्र 'किओस में नरसंहार' (The Massacre of chios) बनाया। (2) देलाक्रा के विषय-चयन के साहस, स्फोटक रंगांकन और वस्तु-विन्यास ने एक नए कला-विचार का सूत्रपात्र किया।
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| {पिकासो किसके समय में पैदा हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-125,प्रश्न-6
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| -फासिज्म
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| -रिनेसांस
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| +घनचित्रण शैली (Cubism)
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| -आभास चित्रण (Imprissionism)
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| ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय ([[1907]] ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई.) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) पिकासो का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' ([[1912]]) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। (2) आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर [[भूरा रंग|भूरे रंगों]] का प्रयोग किया। (3) पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। (4) मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, बिल्ली, बकरी तथा भेड़ वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति शिल्प हैं। (5) पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि।
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| {[[भारत]] में समीक्षावाद किसने स्थापित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-6
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| -आर. एस. बिष्ट
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| -एम. एच. अंसारी
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| -जी. बी. लाल
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| +आ. सी. शुक्ल
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| ||रामचंद्र शुक्ल एक प्रख्यात [[कला]] समीक्षक थे। इसके साथ ही शुक्ल जी एक चित्रकार और कला लेखक भी थे। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) रामचंद्र शुक्ल [[फ़्राँस]] द्वारा 'जीवन ऑनर फ्रैगानार्ड' सम्मान पाने वाले पहले भारतीय चित्रकार हैं। रामचंद्र शुल्क ने [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] के चित्रकला विभाग में अध्यापन का कार्य किया तथा आगे चलकर इस विभाग के विभागाध्यक्ष भी हुए। (2) प्रो. रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक कला-समीक्षावाद, भारतीय चित्रकला शिक्षण पद्धति, रेखावली, कला दर्शन, कला-प्रसंग और पश्चिमी आधुनिक चित्रकार आदि पुस्तकों की भी रचना की। (3) काग़ज़ की नाव, आपात काल, अंतिम भोज, चंद्र यात्रा, बैलेट बॉक्स आदि रामचंद्र शुक्ल की प्रमुख चित्र कृतियां हैं।
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| {"कला सहजानुभूति है", किस महान दार्शनिक ने इस तथ्य को स्पष्ट किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-6
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| -हीगल
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| -कांट
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| +क्रोचे
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| -[[प्लेटो]]
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| ||पाश्चात्य सौन्दर्यशास्त्र 'सहजानुभूति' (Intuition) का सिद्धांत क्रोचे ने प्रतिपादित किया। क्रोचे ने [[कला]] को सहजानुभूति माना है। क्रोचे को आधुनिक काल के महान सौन्दर्यशास्त्रियों में गिना जाता है। 'What is Beauty' की विवेचना करते हुए उसने 'एस्थेटिक' ग्रंथ की रचना की। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) क्रोचे ने कला को तत्त्वत: भाषा माना है और भाषा को तत्त्वत: अभिव्यक्ति। (2) क्रोचे ने अभिव्यक्त के दो विभेद किए हैं- एस्थेटिक सेंस और नेचुरोलिस्टक सेंस। (3) क्रोचे ने अभिव्यक्त एवं सौन्दर्य को एक माना है। उन्हीं के शब्दों में- अभिव्यक्त एवं सौन्दर्य दो अवधारणाएं नहीं हैं बल्कि एक ही अवधारणा है (Expression and beauty are not two concapts but a Single concapt)। (4) 'एक्सप्रेशनिस्ट थ्योरी' का सबसे प्रमुख प्रवर्तक क्रोचे था। (5) हीगल की भांति ही क्रोचे ने भी कलाकृति को बौद्धिक माना है। क्रोचे माइकेल एंजेलो के कथन का उल्लेख करता है- "मैं अपने दिमाग से चित्र बनाता हूं, हाथ से नहीं"।
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| {[[नाट्यशास्त्र]] के प्रणेता कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| -[[कालिदास]]
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| -[[वात्स्यायन]]
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| +[[भरत मुनि]]
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| -[[अरस्तु]]
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| ||[[भरत मुनि]] (2-3 शती ई.) ने [[काव्य]] के आवश्यक तत्त्व के रूप में [[रस]] की प्रतिष्ठा करते हुए [[श्रृंगार रस|श्रृंगार]], [[हास्य रस|हास्य]], [[रौद्र रस|रौद्र]], [[करुण रस|करुण]], [[वीर रस|वीर]], [[अद्भुत रस|अद्भुत]], [[वीभत्स रस|वीभत्स]] तथा [[भयानक रस|भयानक]] नाम से उसके आठ भेदों का स्पष्ट उल्लेख किया है। उन्होंने अपनी कृति [[नाट्यशास्त्र]] में इसका विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। कतिपय विद्वानों की कल्पना है कि उन्होंने [[शांत रस|शांत]] नामक नवें रस को भी स्वीकृति दी है।
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| {किन दो [[रंग|रंगों]] को मिलाकर [[काला रंग]] बनता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| +[[लाल रंग|लाल]]+[[नीला रंग|नीला]]
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| -[[हरा रंग|हरा]]+लाल
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| -[[कत्थई रंग|कत्थई]]+[[नीला रंग|नीला]]
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| -कत्थई+[[हरा रंग|हरा]]
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| ||चित्रकार के लिए [[नीला रंग]], [[लाल रंग]] एवं [[पीला रंग]] [[प्राथमिक रंग]] होते हैं। [[बैंगनी रंग]], [[हरा रंग]] और [[नारंगी रंग]] [[द्वितीयक रंग]] होते हैं। प्राथमिक और द्वितीयक रंगों के संयोजन से ही अन्य रंगों को प्राप्त किया जाता है। [[काला रंग|काले रंग]] को प्राप्त करने के लिए प्राथमिक रंगों (नीला, लाल एवं पीला रंग) को एक साथ मिलाना पड़ेगा।
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| {जल रंगीय चित्रों (Wash Painting) को [[जल]] में कितनी बार डुबाना चाहिए? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-6
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| -8 बार
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| -10 बार
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| +आवश्यकतानुसार
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| -11 बार
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| ||जल रंगीय चित्रों (Wash Painting) को [[जल]] में आवश्यकतानुसार डुबाया जाता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) जलरंगीय पेंटिंग बंगाल शैली और जापान शैली के चित्रकारों के सहयोग से विकसित हुई। (2) जलरंगीय शैली के चित्रण के लिए सबसे उपयुक्त काग़ज़ सफ़ेद कैंट पेपर व हैंडमेड पेपर होता है।
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| {भारतीय चित्रकला के षडंग में अनुपात को किस शब्द से परिभाषित किया गया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| -सादृश्य
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| -लावण्ययोजना
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| -वर्णिका भंग
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| +प्रमाण
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| ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं।
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| {एल. सी. डी. मॉनिटर में एल. सी. डी. का क्या अर्थ है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-6
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| |type="()"}
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| +लिक्विड क्रिस्टल डिस्पले
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| -लो कॉस्ट डिजिट
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| -लिक्विड कैडमियम डिस्पले
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| -लो कंजाम्पशन डिस्पले
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| ||लिक्विड क्रिस्टल डिस्पले (एल. सी. डी.) का विस्तार रूप है। यह तरल क्रिस्टल मिश्रण के साथ ध्रुवीय धात्विक दो चद्दर होता है जिसके बीच में [[विद्युत धारा]] प्रवाहित होती है।
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| {[[अंग्रेज़ी भाषा]] के लगभग सभी अक्षर किस अक्षर [[लिपि]] से आए हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-37
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| |type="()"}
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| +लैटिन
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| -[[रोमन लिपि]]
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| -फ़्रेच
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| -स्वीडिश
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| ||[[अंग्रेज़ी भाषा]] के लगभग सभी अक्षर 'लैटिन' अक्षर [[लिपि]] से आए हैं। 750 ई. पू. के आस-पास [[स्वर (व्याकरण)|स्वरों]] को जोड़कर (फोनिशियाई वर्णमाला) के आधार पर ग्रीक अक्षर बना। बाद में यह लैटिन वर्णमाला से विनियोगित किया गया जो आगे चलकर [[रोमन लिपि]] बना।
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| {स्वच्छंदतावाद का वह कौन-सा चित्रकार था, जो चित्रण के लिए घर में लाशें रखा करता था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-115,प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| -देलाक्रा
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| -इन्जर्स
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| +थियोडोर जेरीकॉल्ट
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| -माने
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| ||थियोडोर जेरीकॉल्ट स्वच्छंदतावाद (रोमांसवाद) का चित्रकार था। वह चित्रण के लिए घर में लाशें रखा करता था।
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| {ब्राक और पिकासो ने जिस शैली को जन्म दिया उसे किस नाम से पुकारा जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -फन्तासी
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| -अति यथार्थवाद
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| +घनवाद
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| -प्रभाववाद
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| ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय ([[1907]] ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) ([[1907]] ई.) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) पिकासो का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' ([[1912]]) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। (2) आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर [[भूरा रंग|भूरे रंगों]] का प्रयोग किया। (3) पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। (4) मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, बिल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति शिल्प हैं। (5) पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि।
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| {[[भारत]] में प्रोफेसर रामचंद्र शुक्ल किस भारतीय समकालीन कला से संबंधित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -[[मुग़लकालीन चित्रकला|मुग़ल शैली]]
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| -अजंता शैली
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| +बंगाल शैली
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| -समीक्षावादी शैली
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| ||रामचंद्र शुक्ल एक प्रख्यात [[कला]] समीक्षक थे। इसके साथ ही शुक्ल जी एक चित्रकार और कला लेखक भी थे। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) रामचंद्र शुक्ल [[फ़्राँस]] द्वारा 'जीवन ऑनर फ्रैगानार्ड' सम्मान पाने वाले पहले भारतीय चित्रकार हैं। रामचंद्र शुल्क ने [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] के चित्रकला विभाग में अध्यापन का कार्य किया तथा आगे चलकर इस विभाग के विभागाध्यक्ष भी हुए। (2) प्रो. रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक कला-समीक्षावाद, भारतीय चित्रकला शिक्षण पद्धति, रेखावली, कला दर्शन, कला-प्रसंग और पश्चिमी आधुनिक चित्रकार आदि पुस्तकों की भी रचना की। (3) काग़ज़ की नाव, आपात काल, अंतिम भोज, चंद्र यात्रा, बैलेट बॉक्स आदि रामचंद्र शुक्ल की प्रमुख चित्र कृतियां हैं।
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| {पाश्चात्य सौन्दर्यशास्त्र के 'अनुकृति सिद्धांत' (Mimesis Theory) के प्रणेता कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न- 7
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| |type="()"}
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| -कांट
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| -हीगेल
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| -[[प्लेटो]]
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| +अरिस्टॉटल
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| ||अरिस्टॉटल ([[अरस्तू]]) के अनुसार, अनुकृति करना [[कला]] का परम पावन [[धर्म]] है। मानव में बाल्यकाल से ही अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी सब कुछ नकल करके सीखता है। नकल में उसे आनंद आता है। उसने स्पष्ट लिखा है कि 'कला प्रकृति की अनुकृति करती है'। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्लेटो ने भी अपनी पुस्तक The Republic में 'अनुकृति' सिद्धांत का वर्णन किया है। (2) [[होमी भाभा]] ने भी 'अनुकृति' सिद्धांत पर लिखा है।
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| {[[नाट्यशास्त्र]] में [[भरत मुनि]] ने कितने भावों का विवेचन किया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -42
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| -36
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| +49
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| -45
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| ||[[भरत मुनि]] ने [[नाट्यशास्त्र]] में कुल 49 भावों को प्रस्तुत किया है, जिनमें 8 स्थायी भाव, 33 संचारी भाव तथा 8 सात्विक भाव शामिल हैं।
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| {कौन-से [[रंग|रंगों]] में अधिक भार होता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| -ठंडे रंग
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| -जल रंग
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| -तेल रंग
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| +गर्म रग
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| ||रेखा तथा रूप के समान [[रंग|वर्णों]] में भी भार होता है। गहरे वर्णों में अधिक तथा हल्के वर्णों में कम भार होता है। इसी प्रकार उष्ण (गर्म) वर्णों में अधिक तथा शीतल वर्णों में कम भार होता है।
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| {निम्न में से कौन रूपप्रद कला का तत्त्व नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -रेखा
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| +कोलाज
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| -[[रंग|वर्ण]]
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| -अंतराल
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| ||काग़ज़ या कपड़ों के टुकड़ों को चित्र-तल पर चिपका कर तैयार की गई चित्र कृतियां, 'कोलॉज कृतियां' कहलाती हैं।
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| {षडंग सिद्धान्त किस ग्रंथ में है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -कामसूत्र
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| -विष्णुधर्मोत्तर
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| -अपराजितपृच्छा
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| +[[जयमंगला]]
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| ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं।
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| {लेजर प्रिंटिंग में रिजोल्यूशन की इकाई को क्या कहते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-7
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| |type="()"}
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| -आई. पी. टी.
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| +डी. पी. आई.
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| -टी. पी. आई.
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| -एल. पी. आई.
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| ||लेजर प्रिंटिंग में रिजोल्यूशन की इकाई को डी. पी. आई. (Dost Per Inch) से प्रदर्शित करते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) IPT-Internet Packet Time (इंटरनेट पैकेट टाइम) (2) TPI- Tracks Per Inch (ट्रैक्स पर इंच) (3) LPI- Line Printer Interface (लाइन प्रिंटर इंटरफेस)
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| {किसने कहा था "मैं यह जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता"? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-38
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| |type="()"}
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| +[[सुकरात]]
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| -[[प्लेटो]]
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| -[[अरस्तू]]
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| -आगस्टाइन
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| ||महान विचारक [[सुकरात]] का जन्म 470 ई. पू. में एथेंस (ग्रीस) में हुआ था। एथेंस के नवयुवकों को गुमराह करने का आरोप लगाकर 399 ई. पू. में सुकरात को ज़हर देकर मृत्युदंड की सजा दी गई। उसने कहा था- "मैं यह जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता"।
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| {'मेडुसा का बेड़ा' चित्र किसने चित्रित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-115,प्रश्न-9
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| +थियोडोर जेरिकॉल्ट
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| -जांक दावि
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| -मोने
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| -सिसली
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| ||जीन-लुइस आंद्रे थियोडोर जेरिकॉल्ट फ़्राँसीसी चित्रकार एवं लिथोग्राफर थे। वे 'समुद्री जहाज' की दुर्घटना पर बनी पेंटिग 'मेडुसा का बेड़ा' (The Raft of the Medusa) नामक चित्रण के लिए जाने जाते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) 'मेडुसा का बेड़ा' रोमांसवाद का सर्वप्रथम चित्र माना गया। (2) अपने चित्रों की [[रंग]] योजना पर जेरिकॉल्ट ने इटालियन चित्रकार काराद्ज्यो का अनुसरण किया है।
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| {'मुर्गा' किस कलाकार की मूर्ति है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| -वान गॉग
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| -[[एम.एफ. हुसैन]]
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| -सेजां
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| +पिकासो
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| ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय ([[1907]] ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) ([[1907]] ई.) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) पिकासो का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' ([[1912]]) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। (2) आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर [[भूरा रंग|भूरे रंगों]] का प्रयोग किया। (3) पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। (4) मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, बिल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति शिल्प हैं। (5) पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि।
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| {ऑप आर्ट (Op) कला की शुरुआत किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| -एंडी वारहोल
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| -कीथ क्लुजनर
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| +विक्टर वासरली
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| -रूबेन्स
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| ||आधुनिक कला में Op (ऑप आर्ट) की शुरुआत वर्ष [[1904]] में विक्टर वासरली ने की। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) ऑप आर्ट में ज्यामितीय आकार के कुछ छोटे टुकड़ों की पच्चीकारी करके चित्र बनाया जाता है जो हिलता हुआ प्रतीत होता है। इसे 'ऑप आर्ट' कहते हैं। ऑप आर्ट (Op) को 'नेत्रीय कला' भी कहा जाता है।
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| {[[अरस्तू]] के अनुसार कला क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| +अनुकृति
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| -प्रमाण
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| -अभिव्यक्ति
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| -[[प्रकृति]]
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| ||अरिस्टॉटल ([[अरस्तू]]) के अनुसार, अनुकृति करना [[कला]] का परम पावन [[धर्म]] है। मानव में बाल्यकाल से ही अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी सब कुछ नकल करके सीखता है। नकल में उसे आनंद आता है। उसने स्पष्ट लिखा है कि 'कला प्रकृति की अनुकृति करती है'। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्लेटो ने भी अपनी पुस्तक The Republic में 'अनुकृति' सिद्धांत का वर्णन किया है। (2) [[होमी भाभा]] ने भी 'अनुकृति' सिद्धांत पर लिखा है।
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| {'[[रस]]' उत्पत्ति को सबसे पहले किसने परिभाषित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| -[[अरस्तु]]
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| -[[अभिनवगुप्त]]
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| +[[भरत मुनि]]
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| -ब्रडले
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| ||'[[रस]]' उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय [[भरत मुनि]] को जाता है। उन्होंने अपने '[[नाट्यशास्त्र]]' में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है। रस की व्याख्या करते हुए भरत मुनि कहते हैं कि सब नाट्य उपकरणों द्वारा प्रस्तुत एक भाव मूलक कलात्मक अनुभूति है। रस का केंद्र रंगमंच है। भाव रस नहीं, उसका आधार है किंतु भरत ने स्थायी भाव को ही रस माना है। भरत मुनि ने लिखा है- 'विभावानुभावव्यभिचारी- संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। अत: भरत मुनि के 'रस तत्त्व' का आधारभूत विषय नाट्य में रस की निष्पत्ति है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वानों ने [[काव्य]] की आत्मा को ही रस माना है। (2) आचार्य धनंजय के अनुसार, 'विभाव, अनुभाव, सात्त्विक, साहित्य भाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से आस्वाद्यमान स्थायी भाव ही रस है। (3) साहित्य दर्पणकार [[आचार्य विश्वनाथ]] ने रस की परिभाषा इस प्रकार दी है- "विभावेनानुभावेन व्यक्त: सच्चारिणा तथा। रसतामेति रत्यादि: स्थायिभाव: सचेतसाम्॥ (3) डॉ. विश्वम्भर नाथ कहते हैं, "भावों के छंदात्मक समन्वय का नाम ही रस है।" (4) [[श्यामसुंदर दास|आचार्य श्याम सुंदर दास]] के अनुसार, "स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव एवं संचारी भावों के योग से आस्वादन करने योग्य हो जाता है, तब सहृदय प्रेक्षक के हृदय में रस रूप में उसका आस्वादन होता है। (5) आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है। उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है।"
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| {निम्नलिखित में से गरम रंग कौन-सा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-9
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| -[[बैंगनी रंग]]
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| -[[हरा रंग]]
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| +[[लाल रंग]]
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| -[[भूरा रंग]]
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| ||प्रकाशयुक्तता एवं अक्ष-पटल की उत्तेजना के विचार से कुछ [[रंग|वर्ण]] गरम और शीतल माने जाते हैं। [[लाल रंग|लाल]] और [[नारंगी]] वर्ण उष्ण (गरम) हैं, [[नीला रंग|नीला]] एवं [[हरा रंग|हरा]] वर्ष शीतल (ठंडा)। [[पीला रंग|पीला]] एवं [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] न उष्ण हैं, न शीतल। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) लाल रंग सर्वाधिक उत्तेजक एवं आकर्षक है। यह सक्रिय और आक्रामकता का प्रतीक है। इस रंग से वीरता (पराक्रम), साहस, शृंगारिक, तीव्र और कामुक भावनाओं का अभिव्यक्तिकरण संभव हो जाता है। (2) नीला रंग, शांत, मधुर, निष्क्रिय, ईमानदारी, आशा लगन आदि का प्रतीक है और हरा रंग, विकास, प्रजनन और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। (3) अफ्रीका में लाल रंग शोक का प्रतीक है। (4) पश्चिमी संस्कृति में लाल रंग घातक पापों के क्रोध का प्रतीक है। (5) पीला रंग प्रसन्नता, दिव्यता तथा यश आदि का प्रतीक है। (6) [[श्वेत रंग]] प्रकाशयुक्त हल्का व कोमल होता है। स्वच्छता, पवित्रता एवं सत्य का प्रतीक है।
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| {[[भारत]] के वह [[राज्य]] कौन सा है, जहां बड़े आकार में कपड़े पर 'पबूजी का फड़' नामक चित्रकारी चित्रित की जाती है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-167,प्रश्न-8
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| -[[बिहार]]
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| -[[उड़ीसा]]
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| +[[राजस्थान]]
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| -[[हिमाचल प्रदेश]]
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| ||[[राजस्थान|राजस्थान राज्य]] में बड़े आकार में कपड़े पर 'पबूजी का फड़' नामक चित्रकारी चित्रित की जाती है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) पबूजी का फड़ एक प्राचीन पारंपरिक लोक कला है, जिसे गायन के साथ प्रयोग किया जाता है। (2) राजस्थान के राबरी आदिवासियों द्वारा 'पबूजी का फड़' नामक चित्रकारी का प्रयोग देवी-देवताओं की छवियों का चित्रण करने में किया जाता है। (3) पबूजी की कथा को फड़ पर [[लाल रंग|लाल]] व [[हरा रंग|हरे रंगों]] में चित्रित किया जाता है और भोप लोग उस कथा को लोकवाद्य '[[रावणहत्था]]' पर गाकर वर्णन करते हैं।
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| {भारतीय चित्रकला के षडंग में अनुपात को किस शब्द से परिभाषित किया गया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| +यशोधर कृत [[जयमंगला]] में
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| -नारायण मुनि कृत चित्र सूत्र में
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| -[[राजा भोज]] कृत समरांगण सूत्र में
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| -[[बाणभट्ट]] कृत कादंबरी में
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| ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं।
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| {एच.टी.एम.एल. इंगित करता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-8
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| |type="()"}
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| +हाइपर टेक्स्ट मार्क-अप लैंग्विज
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| -हाइपर टेक्स्ट मैनिपुलेशन लैंग्विज
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| -हाइपर टेक्स्ट मैनेजिंग लिंक्स
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| -हाइपर टेक्स्ट मैन्यूपुलेटिंग लिंक्स
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| ||हाइपर टेक्स्ट मार्क-अप लैंग्विज एच.टी.एम.एल. का विस्तार रूप है। इसका प्रयोग वेब ब्राउजर पर सूचना डिसप्ले करने के लिए किया जाता है। इसकी खोज वर्ष [[1990]] में टिम बर्नर्स-ली ने की थी।
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| {[[कश्मीर]] का [[शालीमार बाग़ श्रीनगर|शालीमार बाग़]] किसने बनवाया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-39
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| |type="()"}
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| -[[बाबर]]
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| -[[हुमायूं]]
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| +[[जहांगीर]]
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| -[[शाहजहां]]
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| ||[[कश्मीर]] का [[शालीमार बाग़ श्रीनगर|शालीमार बाग़]] [[जहांगीर]] ने बनवाया था। कश्मीर के शासक प्रवरसेन द्वितीय ने कश्मीर के उत्तर-पूर्व के कोने पर एक झील का निर्माण करवाया था। इसी स्थान पर 1619 ई. में मुग़ल बादशाह जहांगीर द्वारा शालीमार बाग़ लगवाया गया। कश्मीर की स्थापना प्रवरमेन द्वितीय ने किया जबकि [[कल्हण]] की [[राजतरंगिणी]] के अनुसार इसकी स्थापना [[अशोक]] ने किया था। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ने अपने प्रारंभिक उत्तर-कुंजी में इस प्रश्न का उत्तर (a)माना था किंतु परिवर्तित उत्तर-कुंजी में इस प्रश्न का उत्तर विकल्प(c) माना है।
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| {'समुद्री जहाज' की दुर्घटना पर बनी पेंटिंग 'मेडुसा का बेड़ा' के कलाकार का क्या नाम था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-115,प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| +जेरिकॉल्ट
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| -एलग्रेको
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| -अॅग्र
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| -गोया
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| ||जीन-लुइस आंद्रे थियोडोर जेरिकॉल्ट फ़्राँसीसी चित्रकार एवं लिथोग्राफर थे। वे 'समुद्री जहाज' की दुर्घटना पर बनी पेंटिग 'मेडुसा का बेड़ा' (The Raft of the Medusa) नामक चित्रण के लिए जाने जाते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) 'मेडुसा का बेड़ा' रोमांसवाद का सर्वप्रथम चित्र माना गया। (2) अपने चित्रों की [[रंग]] योजना पर जेरिकॉल्ट ने इटालियन चित्रकार काराद्ज्यो का अनुसरण किया है।
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| {'एविगनन सुंदरियां' चित्र किसने चित्रित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-9
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| -मोदिग्लियानी
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| +पिकासो
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| -लोत्रेक
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| -ज्वां ग्रीस
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| ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय ([[1907]] ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) ([[1907]] ई.) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) पिकासो का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' ([[1912]]) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। (2) आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर [[भूरा रंग|भूरे रंगों]] का प्रयोग किया। (3) पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। (4) मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, बिल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति शिल्प हैं। (5) पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि।
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| {किस कलाकार ने अपने चित्रों में [[बाइबिल]] के विषयों को मानवतावादी दृष्टि से अनूदित किया था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-9
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| -रेम्ब्रां
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| +रूबेन्स
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| -वान आइक
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| -पिकासो
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| ||पीटर पॉल रूबेन्स ने [[बाइबिल]] के विषयों को मानवतावादी दृष्टि से अनूदित किया। रूबेन्स ने बाइबिल की कथाओं, घटनाओं और प्राकृतिक जीवन का चित्रण किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) पीटर पॉल रूबेन्स का जन्म सन् 1577 में [[जर्मनी]] में हुआ था। (2) रूबेन्स ने 1612 ई. में 'ईसा का सूली से उतारा जाना' नामक चित्र बनाया जिसे उनकी सर्वोत्तम कृति मानी जाती है। (3) इन्होंने 1609-10 ई. में 'क्रांस का खड़ा किया जाना' नामक चित्र बनाया यह भी इनकी अद्वितीय कृति थी। (4) रूबेन्स ने एण्टवर्प के टाउन हाल हेतु 'मैजाइ की वंदना' नामक चित्र बनाया जिसमें मानवाकार की 28 आकृतियां हैं। (5) रूबेंस एक बैरोक चित्रकार (Flemish Baroque Painter) था। (6) पेरिस का निर्णय (The Judgement of paris) रूबेन्स की पेंटिंग है।
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| {[[अरस्तू]] ने [[कला]] को क्या कहा था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-9
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| +[[प्रकृति]] की नकल
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| -सत्य की अनुकृति
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| -अंत:ज्ञान
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| -भावों की अभिव्यक्ति
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| ||अरिस्टॉटल ([[अरस्तू]]) के अनुसार, अनुकृति करना [[कला]] का परम पावन [[धर्म]] है। मानव में बाल्यकाल से ही अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी सब कुछ नकल करके सीखता है। नकल में उसे आनंद आता है। उसने स्पष्ट लिखा है कि 'कला प्रकृति की अनुकृति करती है'। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) प्लेटो ने भी अपनी पुस्तक The Republic में 'अनुकृति' सिद्धांत का वर्णन किया है। (2) [[होमी भाभा]] ने भी 'अनुकृति' सिद्धांत पर लिखा है।
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| {[[भरत मुनि]] के 'रस तत्त्व' के आधारभूत विषय क्या हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-155,प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| -रस-कोटि
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| -रस-चेतना
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| -रस-चिंतन
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| +नाट्य में [[रस]] की निष्पत्ति
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| ||'[[रस]]' उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय [[भरत मुनि]] को जाता है। उन्होंने अपने '[[नाट्यशास्त्र]]' में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है। रस की व्याख्या करते हुए भरत मुनि कहते हैं कि सब नाट्य उपकरणों द्वारा प्रस्तुत एक भाव मूलक कलात्मक अनुभूति है। रस का केंद्र रंगमंच है। भाव रस नहीं, उसका आधार है किंतु भरत ने स्थायी भाव को ही रस माना है। भरत मुनि ने लिखा है- 'विभावानुभावव्यभिचारी- संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। अत: भरत मुनि के 'रस तत्त्व' का आधारभूत विषय नाट्य में रस की निष्पत्ति है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वानों ने [[काव्य]] की आत्मा को ही रस माना है। (2) आचार्य धनंजय के अनुसार, 'विभाव, अनुभाव, सात्त्विक, साहित्य भाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से आस्वाद्यमान स्थायी भाव ही रस है। (3) साहित्य दर्पणकार [[आचार्य विश्वनाथ]] ने रस की परिभाषा इस प्रकार दी है-"विभावेनानुभावेन व्यक्त: सच्चारिणा तथा। रसतामेति रत्यादि: स्थायिभाव: सचेतसाम्॥ (3) डॉ. विश्वम्भर नाथ कहते हैं, "भावों के छंदात्मक समन्वय का नाम ही रस है।" (4) [[श्यामसुंदर दास|आचार्य श्याम सुंदर दास]] के अनुसार, "स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव एवं संचारी भावों के योग से आस्वादन करने योग्य हो जाता है, तब सहृदय प्रेक्षक के हृदय में रस रूप में उसका आस्वादन होता है। (5) आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है। उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है।"
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| {[[लाल रंग]] किसका प्रतीक है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| -घृणा
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| -प्रेम
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| -शांतु
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| +पराक्रम
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| ||प्रकाशयुक्तता एवं अक्ष-पटल की उत्तेजना के विचार से कुछ [[रंग|वर्ण]] गरम और शीतल माने जाते हैं। [[लाल रंग|लाल]] और [[नारंगी]] वर्ण उष्ण (गरम) हैं, [[नीला रंग|नीला]] एवं [[हरा रंग|हरा]] वर्ष शीतल (ठंडा)। [[पीला रंग|पीला]] एवं [[बैंगनी रंग|बैंगनी]] न उष्ण हैं, न शीतल। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) लाल रंग सर्वाधिक उत्तेजक एवं आकर्षक है। यह सक्रिय और आक्रामकता का प्रतीक है। इस रंग से वीरता (पराक्रम), साहस, शृंगारिक, तीव्र और कामुक भावनाओं का अभिव्यक्तिकरण संभव हो जाता है। (2) नीला रंग, शांत, मधुर, निष्क्रिय, ईमानदारी, आशा लगन आदि का प्रतीक है और हरा रंग, विकास, प्रजनन और समृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है। (3) अफ्रीका में लाल रंग शोक का प्रतीक है। (4) पश्चिमी संस्कृति में लाल रंग घातक पापों के क्रोध का प्रतीक है। (5) पीला रंग प्रसन्नता, दिव्यता तथा यश आदि का प्रतीक है। (6) [[श्वेत रंग]] प्रकाशयुक्त हल्का व कोमल होता है। स्वच्छता, पवित्रता एवं सत्य का प्रतीक है।
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| {किसी संरचना के प्रमुख दो तत्त्व क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-167,प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| +रूप और स्थान
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| -वर्ण एवं बनावट
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| -रेखा एवं आकृति
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| -छाया एवं प्रकाश
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| ||किसी संरचना के प्रमुख दो तत्त्व हैं रूप और स्थान। किसी संरचना से उसके बाह्य रूप और स्थान की प्रकृति का ज्ञान होता है जबकि [[रंग|वर्ण]] एवं बनावट, रेखा एवं आकृति तथा छाया एवं [[प्रकाश]] से कलाकृतियों की अनुभूति होती है।
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| {वात्स्यायन रचित कामशास्त्र की व्याख्या या टीका में [[कला]] के षडंग का उल्लेख किसने किया है?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-178,प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| -[[कालिदास]]
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| -[[बाणभट्ट]]
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| +यशोधर
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| -[[शूद्रक]]
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| ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं।
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| {'फ़ादर ऑफ़ कंम्यूटर' कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-9
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| |type="()"}
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| -हर्मन हालरिथ
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| -बिल गेट्स
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| -मार्क जुकरबर्ग
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| +चार्ल्स बैबेज
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| ||चार्ल्स बैबेज को फ़ादर ऑफ़ कंम्यूटर कहा जाता है। इनका जन्म [[26 दिसंबर]], 1791 को [[लंदन]] में तथा मृत्यु [[18 अक्टूबर]], 1871 को हुई।
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| {'[[संत रैदास]]' के गुरु का क्या नाम था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-40
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| |type="()"}
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| +[[रामचंद्र]]
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| -[[कबीर दास]]
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| -[[शंकर देव]]
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| -इनमें से कोई नहीं
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| ||[[संत रैदास]] को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। उन्हें [[रविदास]] भी कहा जाता है। इनका जन्म [[काशी]] (वाराणसी) के पास एक [[गांव]] में माना जाता है। इनके जन्म के समय का विभिन्न विद्वानों में मतभेद है। [[रविवार]] के दिन जन्म होने के कारण इनका नाम 'रविदास' रखा गया। रविदास को [[रामानंद]] का शिष्य माना जाता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) रविदास का जन्म चर्मकार (चमार) कुल में हुआ था। (2) इनके पिता का नाम 'रग्घू' तथा माता का नाम 'घुरविनिया' था। (3) रविदास, [[राम]] और [[कृष्ण]] भक्त परंपरा के कवि और संत माने जाते हैं। (4) रविदास, [[कबीर]] के समकालीन थे। (5) [[हिंदी साहित्य]] में मध्यकाल, भक्तिकाल के नाम से प्रख्यात हैं। वे इसी काल के कवि माने जाते हैं।
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| {घनवाद का प्रथम चित्र किसका था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| -एडवर्ड मंच
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| -जॉर्ज रूओल
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| +पाब्लो पिकासो
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| -मातिस
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| ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय ([[1907]] ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) ([[1907]] ई.) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) पिकासो का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' ([[1912]]) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। (2) आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर [[भूरा रंग|भूरे रंगों]] का प्रयोग किया। (3) पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। (4) मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, बिल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति शिल्प हैं। (5) पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि।
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| {'पेरिस का निर्णय' का कलाकार कौन था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| +रूबेन्स
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| -रेम्ब्रां
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| -डेविड
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| -कुर्बे
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| ||पीटर पॉल रूबेन्स ने [[बाइबिल]] के विषयों को मानवतावादी दृष्टि से अनूदित किया। रूबेन्स ने बाइबिल की कथाओं, घटनाओं और प्राकृतिक जीवन का चित्रण किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) पीटर पॉल रूबेन्स का जन्म सन् 1577 में [[जर्मनी]] में हुआ था। (2) रूबेन्स ने 1612 ई. में 'ईसा का सूली से उतारा जाना' नामक चित्र बनाया जिसे उनकी सर्वोत्तम कृति मानी जाती है। (3) इन्होंने 1609-10 ई. में 'क्रांस का खड़ा किया जाना' नामक चित्र बनाया यह भी इनकी अद्वितीय कृति थी। (4) रूबेन्स ने एण्टवर्प के टाउन हाल हेतु 'मैजाइ की वंदना' नामक चित्र बनाया जिसमें मानवाकार की 28 आकृतियां हैं। (5) रूबेंस एक बैरोक चित्रकार (Flemish Baroque Painter) था। (6) पेरिस का निर्णय (The Judgement of paris) रूबेन्स की पेंटिंग है।
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| {भारतीय सौंदर्यशास्त्र के प्रथम दार्शनिक कौन थे? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| -भट्टलोल्लट
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| -[[अभिनवगुप्त]]
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| +[[भरत मुनि]]
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| -[[आनन्दवर्धन]]
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| ||भारतीय सौन्दर्य के प्रथम दार्शनिक [[भरत मुनि]] थे। इन्होंने '[[नाट्यशास्त्र]]' नामक ग्रंथ का प्रतिपादन किया जो सर्वाधिक प्राचीनतम ग्रंथ है। इस ग्रंथ में रंग-मंच एवं अभिनय के माध्यम से [[रस]] के स्वरूप, उनकी निष्पत्ति एवं अनुभूति के विषय में सविस्तार वर्णन किया गया है।
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| {'[[शांत रस]]' पहली बार किसने प्रस्तुत किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-155,प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| -[[भरत मुनि]]
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| -[[वात्स्यायन]]
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| -[[मार्कण्डेय|मार्कण्डेय मुनि]]
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| +[[अभिनवगुप्त]]
| |
| ||[[भरत मुनि]] ने आठ प्रकर के [[रस|रसों]] का वर्णन किया है। [[अभिनवगुप्त|अभिनव गुप्त]] ने '[[शांत रस]]' को नवां रस माना है। अत: अभिनव गुप्त ने 'शान्त रस' को पहली बार प्रस्तुत किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) सुनीति शतक में आचार्य विद्यासागर ने लिखा है, "जिस प्रकार तिलक के बिना चंद्रमुखी, उद्यम के बिना देश, सम्यक दृष्टि के बिना मुनि का चरित्र सुशोभित नहीं होता, उसी प्रकार 'शांत रस' के बिना कवि सुशोभित नहीं होता।"
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| {A4 काग़ज़ का वास्तविक माप क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| +201x297 मिमी.
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| -297x420 मिमी.
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| -210x287 मिमी.
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| -228x287 मिमी.
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| ||A4 काग़ज़ का प्रयोग ऑफ़िस तथा स्टेशनरी आदि कार्यों के लिए किया जाता है। A4 काग़ज़ का वास्तविक माप 201x297 मिमी. है। अन्य माप के काग़ज़ों का वास्तविक माप इस प्रकार है-
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| A0 काग़ज़ का वास्तविक माप 841x1189 मिमी. है।
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| A1 काग़ज़ का वास्तविक माप 594x841 मिमी. है।
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| A2 काग़ज़ का वास्तविक माप 420x594 मिमी. है।
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| A3 काग़ज़ का वास्तविक माप 297x420 मिमी. है।
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| A5 काग़ज़ का वास्तविक माप 148x210 मिमी. है।
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| A0 सबसे बड़े माप का होता है जबकि A5 नोट पैड के लिए तथा A6 पोस्टकार्ड की माप होती है।
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| {भारतीय चित्र षडंग के सूत्रधार कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-178,प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| +पंडित यशोधर
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| -[[बाणभट्ट]]
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| -[[भास]]
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| -[[शुक्राचार्य]]
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| ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्। यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं।
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| {विश्व फोटोग्राफी दिवस कब मनाया जाता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-10
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| |type="()"}
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| -[[5 सितंबर]]
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| +[[19 अगस्त]]
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| -[[14 नवंबर]]
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| -[[7 दिसंबर]]
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| ||विश्व फोटोग्राफी दिवस [[19 अगस्त]] को मनाया जाता है। विश्व फोटोग्राफी लुईस देगुरे द्वारा विकसित एक फोटोग्राफिक प्रक्रिया 'देगुरियोटाइप' की खोज से उत्पन्न हुई। [[9 जनवरी]], 1839 को 'फ़्रेच एकेडमी ऑफ़ साइंसेज ने 'देगुरियोटाइप' की घोषणा की। कुछ महीने बाद 19 अगस्त, 1819 को फ़्राँस सरकार की घोषणा के बाद यह खोज विश्व को उपहार में मिला।
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| {[[शेरशाह सूरी]] का प्रसिद्ध मक़बरा कहाँ है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-41
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| -[[कलकत्ता]]
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| -[[दिल्ली]]
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| -[[अजमेर]]
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| +[[सासाराम]]
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| ||[[शेरशाह सूरी]] का प्रसिद्ध मक़बरा '[[सासाराम]]' ([[बिहार]]) में है। शेरशाह सूरी ने शासनिक, प्रशासनिक और सामरिक दृष्टि से [[गंगा]] के मैदानों के किनारे-किनारे अनेक सड़कों का निर्माण कराया था। उसने ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण कराया जो [[कलकत्ता]] से [[पेशावर]] तक जाती है।
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| {कला समीक्षा से कौन संबंधित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-196,प्रश्न-81
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| -के.एस. कुलकर्णी
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| -रामेश्वर बरूटा
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| +रतन परिमू
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| -हिम्मत शाह
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| ||रतन परिमू कला समीक्षा से संबंधित हैं। वह एक प्रसिद्ध कला अध्यापक, इतिहासकार एवं समीक्षक है। अपनी इन्हीं प्रतिभाओं के आधार पर उन्होंने वर्ष [[1968]] में [[ऑस्ट्रेलिया]] में आयोजित [[कला]] के माध्यम से शिक्षा की अंतर्राष्ट्रीय सोसाइटी के तेईसवें विश्व कांग्रेस में प्रतीभाव किया। उन्होंने वर्ष [[2010]] में समकालीन भारतीय कला 1880-[[1947]] के ऐतिहासिक विकास का संपादन किया। उनके प्रकाशनों में शामिल हैं- 'Painting of three Tagore's in Modern Indian art' तथा 'sculptures of Sheshasayi Vishnu' इत्यादि।
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| {वास्तु-विद्या और सृजन के [[देवता]] कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-196,प्रश्न-83
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| -[[विष्णु]]
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| -[[इन्द्र]]
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| +[[विश्वकर्मा]]
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| -[[गणेश]]
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| ||[[अग्नि पुराण]] 15,400 छंदों से युक्त है और [[वास्तुशास्त्र]] तथा रत्नशास्त्र (Gemology) के विवरण प्रस्तुत करता है, अग्नि पुराण में कलाकार को [[ब्रह्मांड]] का वास्तुकार (विश्वकर्मण) कहा गया है। वास्तु-विद्या और सृजन (निर्माण) के [[देवता]] [[विश्वकर्मा]] थे।
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