अध्यारोपापवाद: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''अध्यारोपापवाद''' अद्वैत वेदांत में आत्मतत्व के उप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
'''अध्यारोपापवाद''' अद्वैत वेदांत में आत्मतत्व के उपदेश की वैज्ञानिक विधि है। ब्रह्म के यथार्थ रूप का उपदेश देना अद्वैत मत के आचार्य का प्रधान लक्ष्य है। ब्रह्म है स्वयं निष्प्रपंच और इसका ज्ञान बिना प्रपंच की सहायता के किसी प्रकार भी नहीं कराया जा सकता। इसलिए आत्मा के ऊपर देहधर्मों का आरोप प्रथमत: करना चाहिए अर्थात्‌ आत्मा ही मन, बुद्धि, इंद्रिय आदि समस्त पदार्थ है। यह प्राथमिक विधि अध्यारोप के नाम से प्रसिद्ध है। अब युक्ति तथा तर्क के सहारे यह दिखलाना पड़ता है कि आत्मा न तो बुद्धि है, न संकल्प-विकल्परूप मन है, न बाहरी विषयों को ग्रहण करनेवाली इंद्रिय है और न भोग का आयतन यह शरीर है। इस प्रकार आरोपित धर्मों को एक-एक कर आत्मा से हटाते जाने पर अंतिम कोटि में उसका शुद्ध सच्चिदानंद रूप बच जाता है वही उसका सच्चा रूप होता है। इसका नाम है अपवाद विधि (अपवाद=दूर हटाना)। ये दोनों एक ही पद्धति के दो अंश हैं। किसी अज्ञात तत्व के मूल्य और रूप जानने के लिए इस पद्धति का उपयोग आज का बीजगणित भी निश्चित रूप से करता है। उदाहरणार्थ यदि क<sup>2</sup>+2क=24 इस समीकरण में अज्ञात क का मूल्य जानना होगा, तो प्रथमत: दोनों ओर संख्या 1 जोड़ देते हैं (अध्यारोप) जिससे दोनों पक्ष पूर्ण वर्ग का रूप धारण कर लेते हैं और अंत में आरोपित संख्या को दोनों ओर से निकाल देना पड़ता है, तब अज्ञात क का मूल्य 4 निकल आता है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6 |title=अध्यारोपापवाद |accessmonthday= 26 सितम्बर |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language=हिंदी }}</ref>
'''अध्यारोपापवाद''' {अध्यारोप + अपवाद = पहले अध्यारोप, फिर अपवाद (हटाना)} [[अद्वैत]] [[वेदांत]] में आत्मतत्व के उपदेश की वैज्ञानिक विधि है। ब्रह्म के यथार्थ रूप का उपदेश देना अद्वैत मत के आचार्य का प्रधान लक्ष्य है। ब्रह्म है स्वयं निष्प्रपंच और इसका ज्ञान बिना प्रपंच की सहायता के किसी प्रकार भी नहीं कराया जा सकता। इसलिए [[आत्मा]] के ऊपर देहधर्मों का आरोप प्रथमत: करना चाहिए अर्थात्‌ आत्मा ही मन, बुद्धि, इंद्रिय आदि समस्त पदार्थ है। यह प्राथमिक विधि अध्यारोप के नाम से प्रसिद्ध है। अब युक्ति तथा तर्क के सहारे यह दिखलाना पड़ता है कि आत्मा न तो बुद्धि है, न संकल्प-विकल्परूप मन है, न बाहरी विषयों को ग्रहण करने वाली इंद्रिय है और न भोग का आयतन यह शरीर है। इस प्रकार आरोपित धर्मों को एक-एक कर आत्मा से हटाते जाने पर अंतिम कोटि में उसका शुद्ध सच्चिदानंद रूप बच जाता है वही उसका सच्चा रूप होता है। इसका नाम है अपवाद विधि (अपवाद=दूर हटाना)। ये दोनों एक ही पद्धति के दो अंश हैं। किसी अज्ञात तत्व के मूल्य और रूप जानने के लिए इस पद्धति का उपयोग आज का बीजगणित भी निश्चित रूप से करता है। उदाहरणार्थ यदि क<sup>2</sup>+2क=24 इस समीकरण में अज्ञात क का मूल्य जानना होगा, तो प्रथमत: दोनों ओर संख्या 1 जोड़ देते हैं (अध्यारोप) जिससे दोनों पक्ष पूर्ण वर्ग का रूप धारण कर लेते हैं और अंत में आरोपित संख्या को दोनों ओर से निकाल देना पड़ता है, तब अज्ञात क का मूल्य 4 निकल आता है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6 |title=अध्यारोपापवाद |accessmonthday= 26 सितम्बर |accessyear=2015 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज |language=हिंदी }}</ref>


समीकरण की पूरी प्रक्रिया इस प्रकार होगी-
समीकरण की पूरी प्रक्रिया इस प्रकार होगी-
Line 19: Line 19:
<references/>
<references/>


[[Category:दर्शन]][[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
==संबंधित लेख==
 
[[Category:हिन्दू दर्शन]][[Category:हिन्दू धर्म]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]][[Category:दर्शन कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 13:53, 4 May 2018

अध्यारोपापवाद {अध्यारोप + अपवाद = पहले अध्यारोप, फिर अपवाद (हटाना)} अद्वैत वेदांत में आत्मतत्व के उपदेश की वैज्ञानिक विधि है। ब्रह्म के यथार्थ रूप का उपदेश देना अद्वैत मत के आचार्य का प्रधान लक्ष्य है। ब्रह्म है स्वयं निष्प्रपंच और इसका ज्ञान बिना प्रपंच की सहायता के किसी प्रकार भी नहीं कराया जा सकता। इसलिए आत्मा के ऊपर देहधर्मों का आरोप प्रथमत: करना चाहिए अर्थात्‌ आत्मा ही मन, बुद्धि, इंद्रिय आदि समस्त पदार्थ है। यह प्राथमिक विधि अध्यारोप के नाम से प्रसिद्ध है। अब युक्ति तथा तर्क के सहारे यह दिखलाना पड़ता है कि आत्मा न तो बुद्धि है, न संकल्प-विकल्परूप मन है, न बाहरी विषयों को ग्रहण करने वाली इंद्रिय है और न भोग का आयतन यह शरीर है। इस प्रकार आरोपित धर्मों को एक-एक कर आत्मा से हटाते जाने पर अंतिम कोटि में उसका शुद्ध सच्चिदानंद रूप बच जाता है वही उसका सच्चा रूप होता है। इसका नाम है अपवाद विधि (अपवाद=दूर हटाना)। ये दोनों एक ही पद्धति के दो अंश हैं। किसी अज्ञात तत्व के मूल्य और रूप जानने के लिए इस पद्धति का उपयोग आज का बीजगणित भी निश्चित रूप से करता है। उदाहरणार्थ यदि क2+2क=24 इस समीकरण में अज्ञात क का मूल्य जानना होगा, तो प्रथमत: दोनों ओर संख्या 1 जोड़ देते हैं (अध्यारोप) जिससे दोनों पक्ष पूर्ण वर्ग का रूप धारण कर लेते हैं और अंत में आरोपित संख्या को दोनों ओर से निकाल देना पड़ता है, तब अज्ञात क का मूल्य 4 निकल आता है।[1]

समीकरण की पूरी प्रक्रिया इस प्रकार होगी-

2+2क=24

इसलिये क2+2क+1=24+1(अध्यारोप)

अर्थात्‌ (क+1)2= (5)2

अत: (क+1) = 5

अतएव (क+1) -1= (5) -1(अपवाद)

इसलिये क= 4


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अध्यारोपापवाद (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 26 सितम्बर, 2015।

संबंधित लेख