|
|
(78 intermediate revisions by 2 users not shown) |
Line 1: |
Line 1: |
| ==रामायण सामान्य ज्ञान==
| |
| {| class="bharattable-green" width="100%"
| |
| |-
| |
| | valign="top"|
| |
| {| width="100%"
| |
| |
| |
| <quiz display=simple>
| |
| {[[अशोक वाटिका]] का दूसरा नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| +प्रमदावन
| |
| -कदलीवन
| |
| -मधुवन
| |
| -[[वृन्दावन]]
| |
| ||'अशोक वाटिका' प्राचीन राजाओं के भवन के समीप की विशेष वाटिका कहलाती थी। [[वाल्मीकि रामायण]] के अनुसार [[अशोक वाटिका]] [[लंका]] में स्थित एक सुंदर उद्यान था, जिसमें [[रावण]] ने [[सीता]] को बंदी बनाकर रखा था। इसका एक दूसरा नाम 'प्रमदावन' भी था। '[[अरण्य काण्ड वा. रा.|अरण्य काण्ड]]' से ज्ञात होता है कि रावण पहले सीता को अपने राज प्रासाद में लाया था और वहीं रखना चाहता था, किंतु सीता की अडिगता तथा अपने प्रति उसका तिरस्कार भाव देखकर उसने सीता को धीरे-धीरे मना लेने के लिए प्रासाद से कुछ दूर अशोक वाटिका में कैद कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अशोक वाटिका]]
| |
|
| |
|
| {[[महर्षि वाल्मीकि]] का बचपन का नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| -रत्नेश
| |
| -रत्नसेन
| |
| +रत्नाकर
| |
| -रत्नाभ
| |
| ||[[चित्र:Valmiki-Ramayan.jpg|right|80px|वाल्मीकि]]जिस [[वाल्मीकि]] के डाकू का जीवन बिताने का उल्लेख मिलता है, उसे [[रामायण]] के रचयिता से भिन्न माना जाता है। पौराणिक विवरण के अनुसार यह 'रत्नाकर' नाम का [[दस्यु]] था और यात्रियों को मार कर उनके धन से अपना परिवार पालता था। एक अन्य विवरण के अनुसार इनका नाम 'अग्निशर्मा' था और इन्हें हर बात उलटकर कहने में रस आता था। इसलिए [[ऋषि|ऋषियों]] ने डाकू जीवन में इन्हें 'मरा' शब्द का जाप करने की राय दी। तेरह वर्ष तक मरा रटते-रटते यही 'राम' हो गया। [[बिहार]] के चंपारन ज़िले का 'भैंसा लोटन' गाँव [[वाल्मीकि]] का [[आश्रम]] था, जो अब वाल्मीकि नगर कहलाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वाल्मीकि]]
| |
|
| |
| {[[लंका]] के दहन के पश्चात [[हनुमान]] जिस [[पर्वत]] पर चढ़कर [[समुद्र]] लाँघकर वापस आये थे, उसका नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| +[[अरिष्ट]]
| |
| -मैनाक
| |
| -[[गिरनार पर्वत|गिरनार]]
| |
| -[[विन्ध्याचल पर्वत|विन्ध्याचल]]
| |
| ||[[चित्र:Ram-Hanuman.jpg|right|80px|राम-हनुमान मिलन]]'[[वाल्मीकि रामायण]]' के अनुसार [[हनुमान]] एक वानर वीर थे। [[राम|भगवान राम]] को हनुमान [[ऋष्यमूक पर्वत]] के पास मिले थे। हनुमान राम के अनन्य मित्र, सहायक और [[भक्त]] थे। [[सीता|माता सीता]] का अन्वेषण करने के लिए ये [[लंका]] गए। राम के दौत्य (सन्देश देना, दूत का कार्य) का इन्होंने अद्भुत प्रकार निर्वाह किया था। श्रीराम और लंका के राजा [[रावण]] के युद्ध में भी इनका पराक्रम प्रसिद्ध है। 'वाल्मीकि रामायण' के [[सुन्दर काण्ड वा. रा.|सुन्दर काण्ड]] के अनुसार लंका में समुद्रतट पर स्थित एक '[[अरिष्ट]]' नामक [[पर्वत]] है, जिस पर चढ़कर [[हनुमान]] ने लंका से लौटते समय [[समुद्र]] को कूद कर पार किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हनुमान]], [[अरिष्ट]]
| |
|
| |
| {[[महर्षि वसिष्ठ]] की [[गाय]] का नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| -कपिला
| |
| +[[कामधेनु]]
| |
| -शैलोदा
| |
| -उपरोक्त में से कोई नहीं
| |
| ||[[चित्र:Cows-mathura2.jpg|right|100px|कामधेनु]]'कामधेनु' का वर्णन पौराणिक गाथाओं में एक ऐसी चमत्कारी [[गाय]] के रूप में मिलता है, जिसमें दैवीय शक्तियाँ थीं और जिसके दर्शन मात्र से ही लोगो के दुःख व पीड़ा दूर हो जाती थी। यह [[कामधेनु]] जिसके पास होती थी, उसे हर तरह से चमत्कारिक लाभ होता था। इस गाय का [[दूध]] अमृत के समान माना जाता था। [[महर्षि वसिष्ठ]] क्षमा की प्रतिमूर्ति थे। एक बार [[विश्वामित्र]] उनके अतिथि हुए। वसिष्ठ ने कामधेनु के सहयोग से उनका राजोचित सत्कार किया। कामधेनु की अलौकिक क्षमता को देखकर विश्वामित्र के मन में लोभ उत्पन्न हो गया। उन्होंने इस गाय को वसिष्ठ से लेने की इच्छा प्रकट की। कामधेनु वसिष्ठ जी के लिये आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु महत्त्वपूर्ण साधन थी, अत: इन्होंने उसे देने में असमर्थता व्यक्त की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कामधेनु]], [[वसिष्ठ]], [[विश्वामित्र]]
| |
|
| |
| {[[लंका]] में [[राक्षस|राक्षसों]] के कुल देवता का जो स्थान था, उसका क्या नाम था?
| |
| |type="()"}
| |
| -अशोक वन
| |
| -निकुंभिला
| |
| +चैत्य प्रासाद
| |
| -कदंब वर्त
| |
|
| |
| {निम्नलिखित में से कौन [[कुबेर]] के सेनापति हैं?
| |
| |type="()"}
| |
| -मणिमान
| |
| -मणिग्रीव
| |
| -मणिध्वज
| |
| +मणिभद्र
| |
| ||[[चित्र:Kubera-Delhi-National-Museum.jpg|100px|right|कुबेर प्रतिमा, राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली]][[पुलस्त्य|महर्षि पुलस्त्य]] के पुत्र महामुनि [[विश्रवा]] ने [[भारद्वाज]] की कन्या इलविला का [[पाणिग्रहण संस्कार|पाणिग्रहण]] किया था। उसी से [[कुबेर]] की उत्पत्ति हुई। कुबेर मनुष्य के अधिकार के अनुरूप कोष का प्रादुर्भाव या तिरोभाव कर देते हैं। इनके पुत्र [[नलकूबर]] और मणिग्रीव भगवान [[श्रीकृष्ण|श्रीकृष्णचन्द्र]] द्वारा [[नारद]] के शाप से मुक्त होकर इनके समीप स्थित रहते हैं। भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने [[हिमालय पर्वत]] पर तप किया था। तप के अंतराल में [[शिव]] तथा [[पार्वती]] दिखायी पड़े। कुबेर ने अत्यंत सात्त्विक भाव से पार्वती की ओर बायें नेत्र से देखा। पार्वती के दिव्य तेज से वह नेत्र भस्म होकर [[पीला रंग|पीला]] पड़ गया। कुबेर वहाँ से उठकर दूसरे स्थान पर चले गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुबेर]]
| |
|
| |
| {[[विभीषण]] के उस अनुचर का नाम क्या था, जिसने पक्षी का रूप धारण कर [[लंका]] जाकर [[रावण]] की रक्षा व्यवस्था तथा सैन्य शक्ति का पता लगाया था?
| |
| |type="()"}
| |
| -आशुवंत
| |
| +अनल
| |
| -अघ्र
| |
| -अभि
| |
| ||'विभीषण' [[विश्रवा]] के सबसे छोटे पुत्र और [[लंका]] के राजा [[रावण]] के भाई थे। बचपन से ही [[विभीषण]] की धर्माचरण में रूचि थी। ये भगवान के परम [[भक्त]] थे। भगवान [[श्रीराम]] ने जब लंका पर चढ़ाई की, तब विभीषण ने [[सीता]] को राम को वापस करके युद्ध की विभीषिका को रोकने की रावण से प्रार्थना की थी। इस पर रावण ने इन्हें लात मारकर लंका से निकाल दिया। विभीषण राम के शरणागत हुए। इनका एक गुप्तचर था, जिसका नाम 'अनल' था। उसने पक्षी का रूप धारण कर लंका जाकर रावण की रक्षा व्यवस्था तथा सैन्य शक्ति का पता लगाया और इसकी सूचना भगवान श्रीराम को दी थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[विभीषण]]
| |
|
| |
| {उस सरोवर का क्या नाम था, जो एक योजन लम्बा तथा इतना ही चौड़ा था?
| |
| |type="()"}
| |
| -[[पंपासर]]
| |
| -अमृतसर
| |
| +पंचाप्सर
| |
| -मानसर
| |
|
| |
| {[[रावण]] ने [[सुग्रीव]] के पास जो दूत भेजा था, उसका नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| -प्रघस
| |
| -महोदर
| |
| +शुक
| |
| -धूम्राक्ष
| |
| ||[[चित्र:Ravana-Ramlila-Mathura-2.jpg|right|100px|रावण]][[सीता]] का पता लग जाने के बाद जब [[श्रीराम]] [[समुद्र]] पर सेतु बाँधकर वानर सेना सहित [[लंका]] पहुँच गये, तब [[रावण]] ने 'शुक' और 'सारण' नामक मन्त्रियों को बुलाकर उनसे कहा- "हे चतुर मन्त्रियों! अब राम ने वानरों की सहायता से अगाध समुद्र पर सेतु बाँधकर उसे पार कर लिया है और वह लंका के द्वार पर आ पहुँचा है। तुम दोनों वानरों का वेश बनाकर राम की सेना में प्रवेश करो और यह पता लगाओ कि शत्रु सेना में कुल कितने वानर हैं, उनके पास अस्त्र-शस्त्र कितने और किस प्रकार के हैं तथा मुख्य-मुख्य वानर नायकों के नाम क्या हैं।" रावण की आज्ञा पाकर दोनों कूटनीतिज्ञ मायावी [[राक्षस]] वानरों का वेश बनाकर वानर सेना में घुस गये, परन्तु वे [[विभीषण]] की तीक्ष्ण दृष्टि से बच न सके और पकड़े गये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रावण]]
| |
|
| |
| {[[हनुमान|हनुमानजी]] की माता पूर्वजन्म में एक [[अप्सरा]] थीं। अप्सरा रूप में उनका नाम क्या था?
| |
| |type="()"}
| |
| -घृताची
| |
| +[[पुंजिकस्थली]]
| |
| -[[उर्वशी]]
| |
| -जानपदी
| |
| ||[[चित्र:Hanuman.jpg|right|100px|हनुमान]]'पुंजिकस्थली' देवराज [[इन्द्र]] की सभा में एक [[अप्सरा]] थी। एक बार जब [[दुर्वासा ऋषि]] इन्द्र की सभा में उपस्थित थे, तब अप्सरा [[पुंजिकस्थली]] बार-बार भीतर आ-जा रही थी। इससे रुष्ट होकर दुर्वासा ऋषि ने उसे वानरी हो जाने का शाप दे डाला। जब उसने बहुत अनुनय-विनय की, तो उसे इच्छानुसार रूप धारण करने का वर मिल गया। इसके बाद गिरज नामक वानर की पत्नी के गर्भ से इसका जन्म हुआ और '[[अंजना]]' नाम पड़ा। युवा अवस्था प्राप्त करने पर [[केसरी वानर राज|वानरराज केसरी]] से इनका [[विवाह]] हुआ और इनके ही गर्भ से वीर [[हनुमान]] का जन्म हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पुंजिकस्थली]]
| |
| </quiz>
| |
| |}
| |
| |}
| |
| __NOTOC__
| |