User:रविन्द्र प्रसाद/2: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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{[[महाभारत]] के पहले पर्व '[[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]]' में किस घटना के बाद 'महाभारत महाकाव्य' प्रारम्भ हुआ है?(हि.ध.प्र.- 132)
|type="()"}
-सर्पदंश से [[परीक्षित]] की मृत्यु
-कद्रू तथा [[विनता]] वृत्तांत
-[[गरुड़]] द्वारा अमृत लाना
+[[जनमेजय]] का सर्पसत्र
||[[चित्र:Krishna-arjun1.jpg|right|120px|महाभारत]]'[[महाभारत आदिपर्व]]' की संक्षिप्त कथा में [[महाभारत]] जैसे विशाल [[ग्रन्थ]] की मूल प्रस्तावना है। प्रारम्भ में महाभारत के पर्वों और उनके विषयों का संक्षिप्त संग्रह है। कथा-प्रवेश के बाद [[च्यवन]] का जन्म, पुलोमा दानव का भस्म होना, [[जनमेजय]] के सर्पसत्र की सूचना, [[नाग|नागों]] का वंश, कद्रू और [[विनता]] की कथा, [[देवता|देवों]]-दानवों द्वारा '[[समुद्र मंथन]]', [[व्यास]] आदि की उत्पत्ति, [[दुष्यन्त]]-[[शकुन्तला]] की कथा, [[पुरूरवा]], [[नहुष]] और [[ययाति]] के चरित्र का वर्णन, [[भीष्म]] का जन्म और [[कौरव|कौरवों]]-[[पाण्डव|पाण्डवों]] की उत्पत्ति, [[कर्ण]]-[[द्रोण]] आदि का वृत्तान्त, [[द्रुपद]] की कथा, [[लाक्षागृह]] का वृत्तान्त, [[हिडिम्ब]] का वध और [[हिडिम्बा]] का [[विवाह]], [[बकासुर]] का वध, [[धृष्टद्युम्न]] और [[द्रौपदी]] की उत्पत्ति, द्रौपदी-स्वयंवर और विवाह आदि।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]]


{[[महाभारत|महाभारत महाकाव्य]] कितने [[वर्ष|वर्षों]] में पूरा हुआ था?(हि.ध.प्र.- 132)
|type="()"}
-दो वर्ष
-एक वर्ष
+तीन वर्ष
-चार वर्ष
|[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|100px|कृष्ण तथा अर्जुन]]|'महाभारत' [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का एक प्रमुख काव्य [[ग्रंथ]] है, जो [[हिन्दू धर्म]] के उन धर्म-ग्रन्थों का समूह है, जिनकी मान्यता श्रुति से नीची श्रेणी की हैं और जो मानवों द्वारा उत्पन्न थे। कभी-कभी सिर्फ़ 'भारत' कहा जाने वाला यह काव्य-ग्रंथ [[भारत]] का अनुपम, धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ है। [[महर्षि व्यास]] की प्रार्थना पर भगवान [[गणेश]] [[महाभारत]] [[महाकाव्य]] को लिखने के लिए तैयार हुए थे। गणेश जी ने यह शर्त रखी थी कि एक बार लिखना प्रारम्भ कर देने के बाद वे रुकेंगे नहीं। अतः व्यास ने भी अपनी चतुरता से एक शर्त रखी कि कोई भी [[श्लोक]] लिखने से पहले गणेश को उसका अर्थ समझना होगा। गणेशजी ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जब गणेश श्लोक के अर्थ पर विचार कर रहे होते, उतने समय में ही व्यास कुछ और नये श्लोक रच देते। इस प्रकार सम्पूर्ण [[महाभारत]] तीन वर्षों के अन्तराल में लिखी गयी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[महाभारत]]
{[[वसिष्ठ|ऋषि वसिष्ठ]] के अभिशाप के परिणामस्वरूप पवित्र [[गंगा]] से कौन उत्पन्न हुए थे?(हि.ध.प्र.- 132)
|type="()"}
+आठ [[वसु]]
-बारह [[आदित्य देवता|आदित्य]]
-दो [[अश्विनीकुमार|अश्विनी कुमार]]
-ग्यारह [[रुद्र]]
||[[चित्र:Vashishtha.jpg|right|100px|वसिष्ठ]]'वसु' पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार [[देवता|देवताओं]] का एक गण है, जिसके अंतर्गत आठ देवता माने गये हैं। '[[श्रीमद्भागवत]]' के अनुसार [[दक्ष|दक्ष प्रजापति]] की पुत्री तथा धर्म की पत्नी 'वसु' के गर्भ से ही सब वसु उत्पन्न हुए थे। [[महाभारत]] के प्रसिद्ध चरित्रों में से एक और महाराज [[शांतनु]] के पुत्र [[भीष्म]] भी आठ वसुओं में से एक थे। [[वसिष्ठ|ऋषि वसिष्ठ]] के शाप के कारण ही इन आठ वसुओं का गंगा के गर्भ से [[पृथ्वी]] पर जन्म हुआ था, जिनमें से सात को गंगा ने [[जल]] में डुबो दिया था। केवल आठवें वसु को बचा लिया गया, जो भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[वसु]]
{[[अर्जुन]] के पुत्र [[अभिमन्यु]] किसके [[अवतार]] थे?(हि.ध.प्र.- 132)
|type="()"}
-[[सूर्यदेव]] के पुत्र [[शनि देव|शनि]]
+[[चन्द्रमा देवता|चन्द्रमा]] के पुत्र वर्चा
-ग्यारह [[रुद्र|रुद्रों]] में से एक
-[[बृहस्पति ऋषि|बृहस्पति]] के पुत्र [[बुध देवता|बुध]]
||[[चित्र:Uttara-abhimanu.jpg|right|100px|उत्तरा तथा अभिमन्यु]]'अभिमन्यु' [[महाभारत]] के प्रसिद्ध पात्रों में से एक थे। वे सर्वश्रेष्ठ धर्नुधारी [[अर्जुन]] के पुत्र थे। महाभारत के युद्ध में नियमों को भुला करके [[दुर्योधन]] तथा उसके सहायकों ने एक साथ मिलकर अभिमन्यु को घेर लिया और उसका वध किया। [[अभिमन्यु]] महाभारत के नायक अर्जुन और [[सुभद्रा]], जो [[बलराम]] व [[कृष्ण]] की बहन थीं, के पुत्र थे। इन्हें [[चंद्र देवता]] के पुत्र 'वर्चा' का [[अवतार]] भी माना जाता है। धारणा है कि समस्त [[देवता|देवताओं]] ने अपने पुत्रों को अवतार रूप में धरती पर भेजा था, परंतु चंद्र देव ने कहा कि- "वे अपने पुत्र का वियोग सहन नहीं कर सकते, अतः उनके पुत्र को मानव योनि में मात्र सोलह वर्ष की आयु दी जाए।" इसीलिए अभिमन्यु महाभारत युद्ध में अल्प आयु में ही वीरगति को प्राप्त हुए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[अभिमन्यु]], [[चन्द्रमा देवता]]
{[[दुष्यंत]] और [[शकुंतला]] के पुत्र [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] का अन्य नाम क्या था?(हि.ध.प्र.- 133)
|type="()"}
-सर्ववर्मन
-सामवर्त
-सिंहलाद
+सर्वदमन
||पुरुवंश के राजा [[दुष्यंत]] और [[शकुन्तला]] के पुत्र [[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]] की गणना '[[महाभारत]]' में वर्णित सोलह सर्वश्रेष्ठ राजाओं में होती है। मान्यता है कि इसी के नाम पर इस देश का नाम '[[भारतवर्ष]]' पड़ा। भरत का एक नाम 'सर्वदमन' भी था, क्योंकि इन्होंने बचपन में ही बड़े-बड़े [[राक्षस|राक्षसों]], दानवों और सिंहों का दमन किया था और अन्य समस्त वन्य तथा पर्वतीय पशुओं को भी सहज ही परास्त कर अपने अधीन कर लेने की अद्भुत क्षमता इनमें थी। अपने जीवन काल में भरत ने [[यमुना नदी|यमुना]], [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] तथा [[गंगा]] के तटों पर क्रमश: सौ, तीन सौ तथा चार सौ 'अश्वमेध यज्ञ' किये थे। ये प्रवृत्ति से दानशील तथा वीर थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[भरत (दुष्यंत पुत्र)|भरत]], [[दुष्यंत]], [[शकुंतला]]
{[[द्रौपदी]] को छोड़कर [[युधिष्ठिर]] की अन्य पत्नी का नाम क्या था?(हि.ध.प्र.- 134)
|type="()"}
-बलन्धरा
-[[विजया]]
+देविका
-[[उलूपी]]
||[[चित्र:Yudhishthir-Birla-mandir.jpg|right|100px|युधिष्ठिर]]युधिष्ठिर [[पाण्डु]] के पुत्र और पाँच पाण्डवों में से सबसे बड़े भाई थे। वे [[महाभारत]] के नायकों में समुज्ज्वल चरित्र वाले ज्येष्ठ [[पाण्डव]] थे। [[युधिष्ठिर]] [[यमराज|धर्मराज]] के पुत्र थे। वे सत्यवादिता एवं धार्मिक आचरण के लिए विख्यात हैं। [[द्रुपद|राजा द्रुपद]] के यहाँ [[स्वयंवर]] में [[अर्जुन]] के लक्ष्यभेद करने पर [[द्रौपदी]] की प्राप्ति हुई थी। पाण्डवों के यह कहने पर कि- "माँ हम भिक्षा ले आये।" [[कुंती]] ने देखे बिना ही आज्ञा दी कि- "पाँचों भाई आपस में बाँट लो।" अंत में सब हाल मालूम होने पर कुंती बड़े असमंजस में पड़ीं। तब [[युधिष्ठिर]] ने कहा कि [[माता]] के मुँह से जो बात निकल गई है, उसी को हम लोग मानेंगे। [[विवाह]] हो चुकने पर [[पाण्डव]] लोग दुबारा [[हस्तिनापुर]] पहुँच गये। सदा [[धर्म]] के मार्ग पर चलने वाले धर्मराज युधिष्ठिर ने राजा शैव्य की पुत्री देविका को भी स्वयंवर में प्राप्त किया और उनसे [[विवाह]] किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[युधिष्ठिर]]
{[[पाण्डव|पाण्डवों]] के कुल कितने पुत्र थे?(हि.ध.प्र.- 134)
|type="()"}
-चार
+ग्यारह
-एकमात्र [[अभिमन्यु]]
-सात
{[[अम्बा]] और [[अम्बालिका]] किस राजवंश की राजकुमारियाँ थी?(हि.ध.प्र.- 135)
|type="()"}
+[[काशी]]
-[[कोशल]]
-[[मगध महाजनपद|मगध]]
-[[अंग महाजनपद|अंग]]
||[[चित्र:View-Of-Varanasi.jpg|right|100px|वाराणसी का एक दृश्य]]'काशी' पौराणिक [[महाजनपद|16 महाजनपदों]] में से एक है। [[वाराणसी]] का दूसरा नाम 'काशी' प्राचीन काल में एक जनपद के रूप में प्रख्यात था और वाराणसी उसकी राजधानी थी। इसकी पुष्टि पाँचवीं शताब्दी में [[भारत]] आने वाले चीनी यात्री [[फ़ाह्यान]] के यात्रा विवरण से भी होती है। '[[हरिवंशपुराण]]' में उल्लेख आया है कि [[काशी]] को बसाने वाले [[पुरुरवा]] के वंशज राजा 'काश' थे। अत: उनके वंशज 'काशि' कहलाए। संभव है इसके आधार पर ही इस जनपद का नाम 'काशी' पड़ा हो। 'काशी' नामकरण से संबद्ध एक पौराणिक मिथक भी उपलब्ध है। उल्लेख है कि [[विष्णु]] ने [[पार्वती]] के मुक्तामय कुंडल गिर जाने से इस क्षेत्र को मुक्त क्षेत्र की संज्ञा दी और इसकी अकथनीय परम ज्योति के कारण [[तीर्थ]] का नामकरण 'काशी' किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[काशी]], [[अम्बा]], [[अम्बालिका]]
{[[धृतराष्ट्र]], [[पाण्डु]] और [[विदुर]] के पिता कौन थे?(हि.ध.प्र.- 135)
|type="()"}
-[[भृगु]]
-[[दुर्वासा]]
+[[व्यास]]
-[[पराशर]]
||[[चित्र:Vyasadeva-Sanjaya-Krishna.jpg|right|100px|संजय तथा व्यास]]'व्यास' अथवा 'वेदव्यास' [[हिंदू धर्म]] ग्रंथों के अनुसार [[नारायण|भगवान नारायण]] के ही कलावतार थे। [[व्यास]] के [[पिता]] का नाम [[पराशर|पराशर ऋषि]] तथा [[माता]] का नाम [[सत्यवती]] था। इनकी माता ने बाद में [[हस्तिनापुर]] के राजा [[शान्तनु]] से [[विवाह]] किया था, जिनसे उनके दो पुत्र हुए, जिनमें बड़ा [[चित्रांगद]] युद्ध में मारा गया और छोटा [[विचित्रवीर्य]] संतानहीन मर गया। [[वेदव्यास]] ने धार्मिक तथा वैराग्य का जीवन पसंद किया था, किन्तु माता के आग्रह पर इन्होंने विचित्रवीर्य की दोनों सन्तानहीन रानियों द्वारा नियोग के नियम से दो पुत्र उत्पन्न किये, जो '[[धृतराष्ट्र]]' तथा '[[पाण्डु]]' कहलाये। इनमें तीसरे नीति के ज्ञाता [[विदुर]] भी थे। [[पुराण|पुराणों]] में अठारह व्यासों का उल्लेख है, जो [[ब्रह्मा]] या [[विष्णु]] के [[अवतार]] कहलाते हैं एवं [[पृथ्वी]] पर विभिन्न युगों में [[वेद|वेदों]] की व्याख्या व प्रचार करने के लिए अवतीर्ण होते हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[व्यास]], [[धृतराष्ट्र]], [[पाण्डु]], [[विदुर]]
{[[कुन्ती]] का मध्य नाम क्या था?(हि.ध.प्र.- 135)
|type="()"}
-सुबला
+[[पृथा]]
-[[माद्री]]
-अनामिका
||'कुन्ती' [[महाभारत]] के प्रमुख पात्रों में से एक है। इन्हें 'पृथा' नाम से भी जाना जाता है। ये महाराज [[शूरसेन]] की पुत्री और [[वसुदेव]] की बहन तथा [[श्रीकृष्ण]] की बुआ थीं। महाराज कुन्तिभोज से [[कुन्ती]] के [[पिता]] की मित्रता थी। क्योंकि कुन्तीभोज के कोई सन्तान नहीं थी, अत: उन्होंने कुन्ति को गोद ले लिया था। कुन्तीभोज की पुत्री हो जाने के कारण ही इनका नाम 'कुन्ती' पड़ा। [[हस्तिनापुर]] के महाराज [[पाण्डु]] के साथ कुन्ती का [[विवाह]] हुआ था। कुन्ती की सेवा से प्रसन्न होकर ही [[दुर्वासा ऋषि]] ने उन्हें एक ऐसा [[मंत्र]] बताया था, जिसके प्रभाव से वह किसी भी [[देवता]] का आह्वान कर सकती थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[कुन्ती]], [[पृथा]]
{[[पाण्डु]] ने शिकार करते समय मृग के रूप में भूलवश किस [[ऋषि]] की हत्या कर दी थी, जिन्होंने तत्पश्चात पाण्डु को शाप दिया था?(हि.ध.प्र.- 136)
|type="()"}
-मांडव्य
+[[किन्दम]]
-[[च्यवन]]
-[[मार्कण्डेय]]
||'किन्दम' ऋषि का उल्लेख [[महाभारत]] में हुआ है। एक बार [[हस्तिनापुर]] के राजा [[पाण्डु]] वन में घूम रहे थे। तभी उन्हें हिरनों का एक जोड़ा दिखाई दिया। पाण्डु ने निशाना साधकर उन पर पाँच [[बाण अस्त्र|बाण]] मारे, जिससे हिरन घायल हो गए। वास्तव में वह हिरन [[किन्दम]] नामक एक [[ऋषि]] थे, जो अपनी पत्नी के साथ प्रणय विहार कर रहे थे। तब किन्दम ऋषि ने अपने वास्तविक स्वरूप में आकर पाण्डु को शाप दिया कि तुमने अकारण मुझ पर और मेरी तपस्विनी पत्नी पर बाण चलाए हैं, जब हम विहार कर रहे थे। अब तुम जब कभी भी अपनी पत्नी के साथ सहवास करोगे तो उसी समय तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी तथा वह पत्नी तुम्हारे साथ [[सती प्रथा|सती]] हो जाएगी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[किन्दम]]
{[[द्रोणाचार्य]] को दिव्यास्त्र किसने दिये थे?(हि.ध.प्र.- 136)
|type="()"}
-शरद्वान
+[[परशुराम]]
-[[शिव]]
-[[इन्द्र|इन्द्र देव]]
||[[चित्र:Parashurama.jpg|right|100px|परशुराम]]'परशुराम' राजा प्रसेनजित की पुत्री [[रेणुका]] और भृगुवंशीय [[जमदग्नि]] के पुत्र, [[विष्णु]] के [[अवतार]] और [[शिव]] के परम [[भक्त]] थे। इन्हें शिव से विशेष '[[परशु अस्त्र|परशु]]' प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो 'राम' था, किन्तु शिव द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये '[[परशुराम]]' कहलाते थे। ये विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार थे, जो [[वामन अवतार|वामन]] एवं [[रामचन्द्र]] के मध्य में गिने जाता है। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये 'जामदग्न्य' भी कहे जाते हैं। इनका जन्म [[अक्षय तृतीया]], ([[वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]], [[तृतीया]]) को हुआ था। अत: इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। परम्परा के अनुसार इन्होंने [[क्षत्रिय|क्षत्रियों]] का अनेक बार विनाश किया। क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए ही इनका जन्म हुआ था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[परशुराम]]
{किस [[अप्सरा]] ने [[अर्जुन]] को शाप दिया था कि उसे एक [[वर्ष]] तक नंपुसक के रूप में रहना पड़ेगा?(हि.ध.प्र.- 136)
|type="()"}
+[[उर्वशी]]
-[[रम्भा]]
-[[मेनका]]
-तिलोत्तमा
||'[[श्रीमद्भागवत]]' के अनुसार [[उर्वशी]] स्वर्ग की सर्वसुन्दर [[अप्सरा]] थी। एक दिन जब चित्रसेन [[अर्जुन]] को [[संगीत]] और [[नृत्य]] की शिक्षा दे रहे थे, वहाँ उर्वशी आई और अर्जुन पर मोहित हो गई। अवसर पाकर उर्वशी ने अर्जुन से कहा- 'हे अर्जुन! आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, अतः आप कृपया मेरे साथ विहार करके मेरी काम-वासना को शांत करें।' [[उर्वशी]] के वचन सुनकर अर्जुन बोले- 'हे देवि! हमारे पूर्वज ने आपसे [[विवाह]] करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं। अर्जुन की बातों से उर्वशी के मन में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और उसने अर्जुन से कहा- 'तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, अतः मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम एक [[वर्ष]] तक पुंसत्वहीन रहोगे।'{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[उर्वशी]], [[अर्जुन]]
{[[यक्ष]] के रूप में [[युधिष्ठिर]] के सामने कौन आया था, जिसने उनसे विभिन्न दार्शनिक प्रश्न पूछे थे?(हि.ध.प्र.- 136)
|type="()"}
-[[इन्द्र]]
-[[यमराज]]
+[[धर्मराज (यमराज)|धर्मराज]]
-[[अग्नि देवता|अग्नि]]
||'युधिष्ठिर' जन्म [[धर्मराज (यमराज)|धर्मराज]] के संयोग से [[कुंती]] के गर्भ द्वारा हुआ था। [[अज्ञातवास]] के समय एक दिन [[युधिष्ठिर]] ने पीने का पानी लाने के लिए [[नकुल]] को भेजा। उनके लौटने में देर होने पर [[सहदेव]] को पता लगाने के लिए भेजा। उनके भी न लौटने पर [[भीम]] और फिर [[अर्जुन]] को भेज दिया। जब कोई भी लौट कर नहीं आया, तब [[युधिष्ठिर]] स्वयं ढूँढ़ने निकले। उन्होंने जाकर देखा कि चारों भाई एक सरोवर के तट पर मरे पड़े हैं। वहाँ पर एक [[यक्ष]] को देखकर उन्होंने अपने भाइयों की इस विपत्ति का कारण उससे पूछा। यक्ष ने बतलाया कि "तुम्हारे भाइयों ने मेरी बात न मानकर पानी पी लिया, इसी से उनकी यह दशा हुई है। यदि तुम मेरे प्रश्नों का ठीक-ठीक उत्तर दिये बिना पानी पी लोगे तो तुम्हारा भी यही हाल होगा।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[युधिष्ठिर]], [[यक्ष]]
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|}
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Latest revision as of 09:28, 18 April 2024