सप्तसुन्दर व्रत: Difference between revisions

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*इस व्रत में [[पार्वती]] का सात नामों से पूजन करना चाहिए।
*इस व्रत में [[पार्वती]] का सात नामों से पूजन करना चाहिए।
*वे नाम है- कुमुदा, माधवी, गौरी भवानी, पार्वती,  [[उमा]], तथा [[अम्बिका]]।  
*वे नाम है- कुमुदा, माधवी, [[गौरी]] भवानी, [[पार्वती]],  [[उमा]], तथा [[अम्बिका]]।  
*सात दिनपर्यंत सात कन्याओं को (जो लगभग आठ वर्ष की अवस्था की हों) भोजना कराना चाहिए।  
*सात दिनपर्यंत सात कन्याओं को (जो लगभग आठ वर्ष की अवस्था की हों) भोजन कराना चाहिए।  
*प्रतिदिन सात नामों में से एक नाम उच्चारण करते हुए प्रार्थना की जाय जैसे ''''कुमुदा देवी प्रसीद''''।  
*प्रतिदिन सात नामों में से एक नाम उच्चारण करते हुए प्रार्थना की जाय जैसे ''''कुमुदा देवी प्रसीद''''।  
*उसी प्रकार क्रमश: अन्य नामों का 6 दिनों तक प्रयोग किया जाना चाहिए।
*उसी प्रकार क्रमश: अन्य नामों का 6 दिनों तक प्रयोग किया जाना चाहिए।
*सातवें दिन समस्त नामों का उच्चारण करके पार्वती का पूजनादि करने के लिए गन्धाक्षतादि के साथ साथ ताम्बूल, सिन्दूर तथा नारियल अर्पित किया जाय।  
*सातवें दिन समस्त नामों का उच्चारण करके पार्वती का पूजनादि करने के लिए गन्धाक्षतादि के साथ-साथ [[ताम्बूल]], [[सिन्दूर]] तथा [[नारियल]] अर्पित किया जाय।  
*पूजन के उपरांत प्रत्येक कन्या को एक दर्पण प्रदान किया जाय। इस व्रत के आचरण से सौभाग्य और सौन्दर्य की उपलब्धि होती है तथा पाप क्षीण होते हैं।
*पूजन के उपरांत प्रत्येक कन्या को एक दर्पण प्रदान किया जाय। इस व्रत के आचरण से सौभाग्य और सौन्दर्य की उपलब्धि होती है तथा पाप क्षीण होते हैं।


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Latest revision as of 11:41, 31 March 2011

  • इस व्रत में पार्वती का सात नामों से पूजन करना चाहिए।
  • वे नाम है- कुमुदा, माधवी, गौरी भवानी, पार्वती, उमा, तथा अम्बिका
  • सात दिनपर्यंत सात कन्याओं को (जो लगभग आठ वर्ष की अवस्था की हों) भोजन कराना चाहिए।
  • प्रतिदिन सात नामों में से एक नाम उच्चारण करते हुए प्रार्थना की जाय जैसे 'कुमुदा देवी प्रसीद'
  • उसी प्रकार क्रमश: अन्य नामों का 6 दिनों तक प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • सातवें दिन समस्त नामों का उच्चारण करके पार्वती का पूजनादि करने के लिए गन्धाक्षतादि के साथ-साथ ताम्बूल, सिन्दूर तथा नारियल अर्पित किया जाय।
  • पूजन के उपरांत प्रत्येक कन्या को एक दर्पण प्रदान किया जाय। इस व्रत के आचरण से सौभाग्य और सौन्दर्य की उपलब्धि होती है तथा पाप क्षीण होते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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