प्रयोग:Shilpi5: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
(पन्ने को खाली किया)
 
(42 intermediate revisions by 5 users not shown)
Line 1: Line 1:
24 जनवरी राष्ट्रीय बालिका दिवस के नाम से जाना जाता है। 24 जनवरी को इंदिरा गांधी को नारी शक्ति के रूप में याद किया जाएगा। कन्या भ्रूण हत्या की वजह से लड़कियों की गिरती संख्या परेशानी की वजह बनी हुई है। राजधानी दिल्ली हर एक हजार लड़कों के मुकाबले केवल 821 लड़कियाँ हैं, जबकि पूरे देश में यह संख्या 933 है। लोगों को इसके दुष्परिणामों के प्रति आगाह करने और लड़कियों को बचाने के लिए आगामी सोमवार को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाएगा। गौरतलब है कि 24 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है।


दिल्ली की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. वानचू का कहना है कि इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर 24 जनवरी को बैठी थी। चूंकि, इंदिरा को नारी शक्ति के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है, इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है। यह निर्णय राष्ट्रीय स्तर पर लिया गया है। डॉ. वानचू ने बताया कि सभी जिला चिकित्सा अधिकारियों को इस सिलसिले में निर्देश दे दिए गए हैं। वे अपनी जरूरत और परिस्थितियों के हिसाब से कार्यक्रम तय कर सकते हैं। दिल्ली सरकार के द्वारा बड़े स्तर पर बालिका दिवस और कन्या भ्रूण हत्या पर रोक से संबंधित विज्ञापन जारी करेगी।
==कारण==
पूरे देश में प्रति एक हजार लड़कों पर महज 779 लड़कियां हैं। यानी, पढ़े-लिखे लोग और जागरूक समाज भी इस समस्या से अछूता नहीं है। आज हजारों लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है या जन्म लेते ही लावारिस छोड़ दिया जाता है। आज भी समाज में कई घर ऐसे हैं, जहां बेटियों को बेटों की तरह अच्छा खाना और अच्छी शिक्षा नहीं दी जा रही है। भारत में 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 44.5 प्रतिशत (करीब आधी) औरतें ऐसी हैं, जिनकी शादियां 18 साल के पहले हुईं हैं। इन 20 से 24 साल की शादीशुदा औरतों में से 22 प्रतिशत (करीब एक चौथाई) औरतें ऐसी हैं, जो 18 साल के पहले मां बनी हैं। इन कम उम्र की लड़कियों से 73 प्रतिशत (सबसे ज्यादा) बच्चे पैदा हुए हैं। फिलहाल, इन बच्चों में 67 प्रतिशत (दो-तिहाई) कुपोषण के शिकार हैं।
1991 की जनगणना से 2001 की जनगणना तक, हिन्दू और मुसलमानों- दोनों की ही जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट आई है। मगर 2001 की जनगणना का यह तथ्य सबसे ज्यादा चौंकता है कि 0 से 6 साल के बच्चों के लिंग अनुपात में भी भारी गिरावट आई है। देश में बच्चों का लिंग अनुपात 976:1000 (1000 लड़कों पर 976 लड़कियां) है, जो कुल लिंग अनुपात 992:1000 (1000 पुरुष पर 992 महिलाएं) के मुकाबले बहुत कम है। यहां कुल लिंग अनुपात में 8 के अंतर के मुकाबले बच्चों के लिंग अनुपात में अब 24 का अंतर दर्ज है। यह उनके स्वास्थ्य और जीवन-स्तर में गिरावट का अनुपात भी है। यह अंतर भयावह भविष्य की ओर भी इशारा करता है।
6 से 14 साल की कुल लड़कियों में से 50 प्रतिशत लड़कियां स्कूल से ड्रॉप-आउट हो जाती हैं। एशिया महाद्वीप में भारत की महिला साक्षरता दर सबसे कम है। गौरतलब है कि ‘नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रंस राइट्स’ यानी एनसीपीसीआर की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में 6 से 14 साल तक की ज्यादातर लड़कियों को हर दिन औसतन 8 घंटे से भी ज्यादा समय केवल अपने घर के छोटे बच्चों को संभालने में बीताना पड़ता है। इसी तरह, सरकारी आकड़ों में दर्शाया गया है कि 6 से 10 साल की जहां 25 प्रतिशत लड़कियों को स्कूल से ड्रॉप-आउट होना पड़ता है, वहीं 10 से 13 साल की 50 प्रतिशत (ठीक दोगुनी) से भी ज्यादा लड़कियों को स्कूल से ड्रॉप-आउट हो जाना पड़ता है। 2008 के एक सरकारी सर्वेक्षण में 42 प्रतिशत लड़कियों ने यह बताया कि वे स्कूल इसलिए छोड़ देती हैं, क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें घर संभालने और अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने को कहते हैं।
इस गैरबराबरी को बच्चियों की कमी नहीं, बल्कि उनके खिलाफ मौजूद स्थितियों के तौर पर देखा जाना चाहिए। अगर लड़की है, तो उसे ऐसा ही होने चाहिए, इस प्रकार की बातें उसके सुधार की राह में बाधाएं बनती हैं। इन्हीं सब स्थितियों और भेदभावों को मिटाने के मकसद से ‘बालिका दिवस’ मनाने पर जोर दिया जा रहा है। इसे बच्चियों की अपनी पहचान न उभर पाने के पीछे छिपे असली कारणों को सामने लाने के रूप में मनाने की जरुरत है, जो सामाजिक धारणा को समझने के साथ-साथ बच्चियों को बहन, बेटी, पत्नी या मां के दायरों से बाहर निकालने और उन्हें सामाजिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करने में मदद के तौर पर जाना जाए।

Latest revision as of 17:12, 2 April 2011