User:गोविन्द राम/sandbox6: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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__TOC__ {{सूचना बक्सा वाराणसी}}
वाराणसी, [[बनारस]] या [[काशी]] भी कहलाता है। वाराणसी दक्षिण-पूर्वी [[उत्तर प्रदेश]] राज्य, उत्तरी-मध्य [[भारत]] में [[गंगा नदी]] के बाएँ तट पर स्थित है और [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के सात पवित्र नगरों में से एक है। इसे '''मन्दिरों एवं घाटों का नगर''' भी कहा जाता है। वाराणसी का पुराना नाम काशी है। वाराणसी विश्व का प्राचीनतम बसा हुआ शहर है। यह गंगा नदी के किनारे बसा है और हज़ारों साल से उत्तर [[भारत]] का धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। '''दो नदियों [[वरुणा नदी|वरुणा]] और [[असी नदी|असि]] के मध्य बसा होने के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा।''' बनारस या वाराणसी का नाम [[पुराण|पुराणों]], [[रामायण]], [[महाभारत]] जैसे अनेकानेक ग्रन्थों में मिलता है। [[वेद|वेदों]] में भी काशी का उल्लेख है। [[संस्कृत]] पढ़ने प्राचीन काल से ही लोग वाराणसी आया करते थे। वाराणसी के घरानों की हिन्दुस्तानी [[संगीत]] में अपनी ही शैली है।
==स्थिति==
वाराणसी भारतवर्ष की सांस्कृतिक एवं धार्मिक नगरी के रूप में विख्यात है। इसकी प्राचीनता की तुलना विश्व के अन्य प्राचीनतम नगरों जेरुसलेम, एथेंस तथा पेइकिंग (बीजिंग) से की जाती है।<ref>डायना एल इक, बनारस सिटी ऑफ़ लाइट (न्यूयार्क, [[1982]]), प्रथम संस्करण, पृष्ठ 4</ref> वाराणसी गंगा के बाएँ तट पर अर्द्धचंद्राकार में 250 18’ उत्तरी अक्षांश एवं 830 1’ पूर्वी देशांतर पर स्थित है। प्राचीन वाराणसी की मूल स्थिति विद्वानों के मध्य विवाद का विषय रही है।
====विद्वानों के मतानुसार====
शेरिंग,<ref>एम. ए. शेरिंग, दि सेक्रेड सिटीज ऑफ़ दि हिन्दूज, (लंदन, [[1968]]) पृष्ठ 19-34</ref> मरडाक,<ref>जे. मरडाक, काशी और बनारस ([[1894]]) पृष्ठ 5</ref> ग्रीब्ज,<ref>ई. ग्रीब्ज, काशी, [[इलाहाबाद]], [[1909]], पृष्ठ 3-4</ref> और पारकर<ref>ए. पारकर, ए हैंडबुक ऑफ़ बनारस, पृष्ठ 2</ref> जैसे विद्वानों के मतानुसार प्राचीन वाराणसी वर्तमान नगर के उत्तर में [[सारनाथ]] के समीप स्थित थी। किसी समय वाराणसी की स्थिति दक्षिण भाग में भी रही होगी। लेकिन वर्तमान नगर की स्थिति वाराणसी से पूर्णतया भिन्न है, जिससे यह प्राय: निश्चित है कि वाराणसी नगर की प्रकृति यथासमय एक स्थान से दूसरे स्थान पर विस्थापित होने की रही है। यह विस्थापन मुख्यतया दक्षिण की ओर हुआ है। पर किसी पुष्ट प्रमाण के अभाव में विद्वानों का उक्त मत समीचीन नहीं प्रतीत होता है।
[[चित्र:Ganga-River-Varanasi.jpg|left|[[गंगा नदी]], वाराणसी|thumb|250px]]
गंगा नदी के तट पर बसे इस शहर को ही भगवान [[शिव]] ने [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर अपना स्‍थायी निवास बनाया था। यह भी माना जाता है कि वाराणसी का निर्माण सृष्टि रचना के प्रारम्भिक चरण में ही हुआ था। यह शहर प्रथम ज्‍योर्तिलिंग का भी शहर है। [[पुराण|पुराणों]] में वाराणसी को ब्रह्मांड का केंद्र बताया गया है तथा यह भी कहा गया है यहाँ के कण-कण में शिव निवास करते हैं। वाराणसी के लोगों के अनुसार, '''काशी के कण-कण में शिवशंकर हैं।''' इनके कहने का अर्थ यह है कि यहाँ के प्रत्‍येक पत्‍थर में शिव का निवास है। कहते हैं कि काशी शंकर भगवान के [[त्रिशूल]] पर टिकी है।
====हेवेल की दृष्टि में====
हेवेल की दृष्टि में वाराणसी नगर की स्थिति विस्थापन प्रधान थी, अपितु प्राचीन काल में भी वाराणसी का वर्तमान स्वरूप सुरक्षित था।<ref>ई.वी. हैवेल, बनारस दि सेक्रेड सिटी पृष्ठ 41-50</ref>''' हेवेल के मतानुसार [[बुद्ध]] पूर्व युग में आधुनिक सारनाथ एक घना जंगल था और यह विभिन्न धर्मावलंबियों का आश्रय स्थल भी था।'''
भौगोलिक दशाओं के परिप्रेक्ष्य में हेवेल का मत युक्तिसंगत प्रतीत होता है। वास्तव में वाराणसी नगर का अस्तित्व [[बुद्ध]] से भी प्राचीन है तथा उनके आविर्भाव के सदियों पूर्व से ही यह एक धार्मिक नगरी के रूप में ख्याति प्राप्त था। सारनाथ का उद्भव महात्मा बुद्ध के प्रथम धर्मचक्र प्रवर्तन के उपरांत हुआ। रामलोचन सिंह ने भी कुछ संशोधनों के साथ हेवेल के मत का समर्थन किया है। उनके अनुसार नगर की मूल स्थिति प्राय: उत्तरी भाग में स्वीकार करनी चाहिए।<ref>रामलोचन सिंह, बनारस, एक सिटी इन अर्बन ज्योग्राफी, पृष्ठ 31</ref> हाल के अकथा [[उत्खनन]] से इस बात की पुष्टि होती है कि वाराणसी की प्राचीन स्थिति उत्तर में थी जहाँ से 1300 ईसा पूर्व के अवशेष प्रकाश में आये हैं।
==नामकरण==
‘वाराणसी’ शब्द ‘वरुणा’ और ‘असी’ दो नदीवाचक शब्दों के योग से बना है। पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार '''वरुणा''' और '''असि''' नाम की नदियों के बीच में बसने के कारण ही इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा।
*'[[पद्मपुराण]]' के एक उल्लेख के अनुसार दक्षिणोत्तर में ‘वरना’ और पूर्व में ‘असि’ की सीमा से घिरे होने के कारण इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा।<ref>वाराणसीति यत् ख्यातं तम्मानं निगदामिव।
दक्षिणातरयौ नयौ परणासिश्चपूर्णत:॥- [[पद्मपुराण]], काशी माहात्म्य 5/58</ref>
*'[[अथर्ववेद]]'<ref>[[अथर्ववेद]], 4/7/1</ref> में वरणावती नदी का उल्लेख है। संभवत: यह आधुनिक वरुणा का ही समानार्थक है।
*'[[अग्निपुराण]]' में नासी नदी का उल्लेख मिलता है।


==इतिहास==
{{मुख्य|वाराणसी का इतिहास}}
[[चित्र:Pandit-Madan-Mohan-Malaviya.jpg|[[मदनमोहन मालवीय|पंडित मदनमोहन मालवीय]]|thumb]]
ऐतिहासिक आलेखों से प्रमाणित होता है कि ईसा पूर्व की छठी शताब्दी में वाराणसी भारतवर्ष का बड़ा ही समृद्धशाली और महत्त्वपूर्ण राज्य था। मध्य युग में यह [[कन्नौज]] राज्य का अंग था और बाद में [[बंगाल]] के पाल नरेशों का इस पर अधिकार हो गया था। सन 1194 में [[मुहम्मद ग़ोरी|शहाबुद्दीन ग़ोरी]] ने इस नगर को लूटा और क्षति पहुँचायी। [[मुग़ल काल]] में इसका नाम बदल कर मुहम्मदाबाद रखा गया। बाद में इसे अवध दरबार के प्रत्यक्ष नियंत्रण में रखा गया। बलवंत सिंह ने बक्सर की लड़ाई में अंग्रेज़ों का साथ दिया और इसके उपलक्ष्य में वाराणसी को अवध दरबार से स्वतंत्र कराया। सन [[1911]] में अंग्रेज़ों ने महाराज प्रभुनारायण सिंह को वाराणसी का राजा बना दिया। सन [[1950]] में यह राज्य स्वेच्छा से भारतीय गणराज्य में शामिल हो गया।
वाराणसी विभिन्न मत-मतान्तरों की संगम स्थली रही है। विद्या के इस पुरातन और शाश्वत नगर ने सदियों से धार्मिक गुरुओं, सुधारकों और प्रचारकों को अपनी ओर आकृष्ट किया है। '''भगवान [[बुद्ध]] और [[शंकराचार्य]] के अलावा [[रामानुज]], [[वल्लभाचार्य]], संत [[कबीर]], गुरु [[नानक]], [[तुलसीदास]], [[चैतन्य महाप्रभु]], [[रैदास]] आदि अनेक संत इस नगरी में आये।'''
==भौगोलिक स्थिति==
{{मुख्य|वाराणसी का भूगोल}}
वाराणसी नगर की रचना गंगा के किनारे है, जिसका विस्तार लगभग 5 मील में है। ऊँचाई पर बसे होने के कारण अधिकतर वाराणसी बाढ़ की विभीषिका से सुरक्षित रहता है, परंतु वाराणसी के मध्य तथा दक्षिणी भाग के निचने इलाके प्रभावित होते हैं।
====नगर का आकार====
नगर के आकार की धार्मिक मान्यताओं के आधार पर व्याख्या करने के अनेक प्रयास किए गये हैं। इन मान्यताओं की भौगोलिक व्याख्या को कमोवेश स्वीकारा गया है। ऐसे सामान्यत: प्रचलित विश्वासों की सूची इस प्रकार बनाई है-
;कृत त्रिशूल
इस त्रिशूल के तीन शूल हैं- उत्तर में ओंकारेश्वर, मध्य में विश्वेश्वर तथा दक्षिण में केदारेश्वर। यह तीनों गंगा तट पर स्थित हैं। मांन्यता है कि यह नगरी भगवान [[शिव]] को समर्पित है और उनके त्रिशूल पर स्थित है।
;त्रेतायुग चक्र
चौरासी कोस यात्रा के तदनुरूप है और मध्यमेश्वर इसका केन्द्र है जो गंगा के निकट अवस्थित है।[[चित्र:Sunset -Varanasi.jpg|thumb|250px|left|सूर्यास्त का एक दृश्य, वाराणसी]]
;द्वापर रथ
सात प्रकार के शिव मंदिर, रथ का समरूप बनाते हैं। ये हैं- गोकर्णेश्वर, सुलतानकेश्वर, मणिकर्णेश्वर, भारभूतेश्वर, विश्वेश्वर, मध्यमेश्वर तथा ओंकारेश्वर। इस आकार में भी [[गंगा नदी]] की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
;शंखाकार
यहाँ भी मंदिरों की स्थिति के समरूप आकार माना गया है और गंगा नदी यह आकार निर्धारित करती है। इस आकार को बनाने वाले मंदिर हैं- उत्तर पश्चिम में विध्नराज और विनायक, उत्तर में शैलेश्वर, दक्षिण पूर्व में केदारेश्वर और दक्षिण में लोलार्क।
==वाराणसी की नदियाँ==
{{मुख्य|वाराणसी की नदियाँ}}
वाराणसी का विस्तार गंगा नदी के दो संगमों वरुणा और असी नदी से संगम के बीच बताया जाता है। इन संगमों के बीच की दूरी लगभग 2.5 मील है। इस दूरी की परिक्रमा [[हिन्दू धर्म|हिन्दुओं]] में पंचकोसी यात्रा या पंचकोसी परिक्रमा कहलाती है। वाराणसी ज़िले की नदियों के विस्तार से अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि वाराणसी में तो प्रस्रावक नदियाँ है लेकिन चंदौली में नहीं है जिससे उस ज़िले में झीलें और दलदल हैं, अधिक बरसात होने पर गाँव पानी से भर जाते हैं तथा फ़सल को काफ़ी नुक़सान पहुँचता है।
====गंगा====
[[चित्र:Ganga-River-Varanasi-9.jpg|[[गंगा नदी]], वाराणसी|thumb|250px]]
{{मुख्य|गंगा नदी}}
गंगा का वाराणसी की प्राकृतिक रचना में मुख्य स्थान है। गंगा वाराणसी में गंगापुर के बेतवर गाँव से पहले घुसती है। यहाँ पर इससे सुबहा नाला आ मिला है। वाराणसी को वहाँ से प्राय: सात मील तक गंगा मिर्ज़ापुर ज़िले से अलग करती है और इसके बाद वाराणसी ज़िले में वाराणसी और चन्दौली को विभाजित करती है। गंगा की धारा अर्ध-वृत्ताकार रूप में वर्ष भर बहती है। इसके बाहरी भाग के ऊपर करारे पड़ते हैं और भीतरी भाग में बालू अथवा बाढ़ की मिट्टी मिलती है। गंगा का रुख़ पहले उत्तर की तरफ़ होता हुआ रामनगर के कुछ आगे तक देहात अमानत को राल्हूपुर से अलग करता है। यहाँ पर किनारा कंकरीला है और नदी उसके ठीक नीचे बहती है। यहाँ तूफ़ान में नावों को काफ़ी ख़तरा रहता है। देहात अमानत में गंगा का बांया किनारा मुंडादेव तक चला गया है। इसके नीचे की ओर वह रेत में परिणत हो जाता है और बाढ़ में पानी से भर जाता है। रामनगर छोड़ने के बाद गंगा की उत्तर-पूर्व की ओर झुकती दूसरी केहुनी (कमान, तरफ़) शुरू होती है। धारा यहाँ बायें किनारे से लगकर बहती है।
==अर्थव्यवस्था==
====उद्योग और व्यापार====
{{मुख्य|वाराणसी का व्यापार}}
[[चित्र:Bangles-Varanasi.jpg|[[चूड़ी|चूड़ियों]] का दृश्य, वाराणसी|thumb|250px]]
वाराणसी कला, हस्तशिल्प, संगीत और नृत्य का भी केन्द्र है। यह शहर रेशम, सोने व चाँदी के तारों वाले ज़री के काम, लकड़ी के खिलौनों, काँच की चूड़ियों, हाथी दाँत और पीतल के काम के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के प्रमुख उद्योगों में रेल इंजन निर्माण इकाई शामिल है।{{बाँयाबक्सा|पाठ=[[काशी]] को 'महाश्‍मशान' के नाम से भी जाना जाता है। इसे पृथ्वी की सबसे बड़ी शमशान भूमि माना जाता था। यहाँ के मणिकर्णिका घाट तथा हरिश्‍चंद्र घाट को सबसे पवित्र घाट माना जाता है।|विचारक=}}वाराणसी के कारीगरों के कला- कौशल की ख्याति सुदूर प्रदेशों तक में रही है। वाराणसी आने वाला कोई भी यात्री यहाँ के रेशमी [[किमखाब]] तथा ज़री के वस्त्रों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। यहाँ के बुनकरों की परंपरागत कुशलता और कलात्मकता ने इन वस्तुओं को संसार भर में प्रसिद्धि और मान्यता दिलायी है । विदेश व्यापार में इसकी विशिष्ट भूमिका है । इसके उत्पादन में बढ़ोत्तरी और विशिष्टता से विदेशी मुद्रा अर्जित करने में बड़ी सफलता मिली है । रेशम तथा ज़री के उद्योग के अतिरिक्त, यहाँ पीतल के बर्तन तथा उन पर मनोहारी काम और संजरात (झांझ मझीरा) उद्योग भी अपनी कला और सौंदर्य के लिए विख्यात हैं । इसके अलावा यहाँ के लकड़ी के खिलौने भी दूर- दूर तक प्रसिद्ध हैं, जिन्हें कुटीर उद्योगों में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं ।
====वाणिज्य और व्यापार का प्रमुख केंद्र====
वाराणसी नगर वाणिज्य और व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था। स्थल तथा जल मार्गों द्वारा यह नगर भारत के अन्य नगरों से जुड़ा हुआ था। काशी से एक मार्ग [[राजगृह]] को जाता था।<ref>विनयपिटक, जिल्द 1, पृष्ठ 262</ref>  काशी से [[वेरंजा]] जाने के लिए दो रास्ते थे-
#[[सोरेय्य]] होकर
#[[प्रयाग]] में [[गंगा]] पार करके।
दूसरा मार्ग बनारस से [[वैशाली]] को चला जाता था।<ref>मोतीचंद्र, काशी का इतिहास, पृष्ठ 49</ref> वाराणसी का एक सार्थवाह पाँच सौ गाड़ियों के साथ प्रत्यंत देश गया था और वहाँ से [[चंदन]] लाया था।<ref>सुत्तनिपात, अध्याय 2, पृष्ठ 523</ref>
==कला और संस्कृति==
{{Main|वाराणसी की संस्कृति}}
[[चित्र:Art-Varanasi.jpg|thumb|200px|वाद्य बजाते हुए कलाकार, [[वाराणसी]]]]
वाराणसी की [[कला]] और [[संस्कृति]] अद्वितीय है। यह वाराणसी की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा है कि यह [[भारत]] की सांस्कृतिक राजधानी बनाता है। [[पुरातत्त्व]], पौराणिक कथाओं, [[भूगोल]], कला और [[इतिहास]] का एक संयोजन वाराणसी [[भारतीय संस्कृति]] की एक महान केंद्र बनाता है। हालांकि वाराणसी मुख्य रूप से [[हिंदू धर्म]] और [[बौद्ध धर्म]] के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन एक और वाराणसी में पूजा और धार्मिक संस्थाओं के कई धार्मिक विश्वासों की झलक पा सकते हैं।
वाराणसी, भारतीय कला और संस्कृति का पूरा एक संग्रहालय प्रस्तुत करता है। वाराणसी में एक इतिहास के पाठ्यक्रम में बदलते पैटर्न और आंदोलनों को महसूस कर सकते हैं। सदियों से वाराणसी ने मास्टर कारीगरों का उत्पादन किया है और और अपनी सुंदर साड़ी, हस्तशिल्प, वस्त्र, खिलौने, गहने, धातु का काम, मिट्टी और लकड़ी और अन्य शिल्प के लिए नाम और प्रसिद्धि अर्जित की है।
वाराणसी ने कई प्रसिद्ध विद्वानों और बुद्धिजीवियों, जो गतिविधि के संबंधित क्षेत्रों में अपनी छाप छोड़ गये है, को जन्म दिया है। वाराणसी, एक अद्वितीय सामाजिक और सांस्कृतिक कपड़े प्रस्तुत करता है। [[संगीत]], नाटक, और मनोरंजन के सभी वाराणसी के साथ पर्याय रहे है। बनारस लंबे समय से अपने संगीत, मुखर और वाद्य दोनों के लिए प्रसिद्ध रहा है और अपने खुद के नृत्य परंपराओं. इस पर जोड़ें, वाराणसी लोक संगीत और नाटक, मेलों और त्योहार और अखाड़े, खेल, और खेल की समृद्ध परंपरा की एक बहुत ही पुराना केन्द्र है।
====संगीत====
{{Main|वाराणसी का संगीत}}
*वाराणसी गायन एवं वाद्य दोनों ही विद्याओं का केंद्र रहा है।
*सुमधुर ठुमरी भारतीय कंठ संगीत को वाराणसी की विशेष देन है।
[[चित्र:Art-Varanasi.jpg|thumb|200px|वाद्य बजाते हुए कलाकार, वाराणसी]]
*इसमें धीरेंद्र बाबू, बड़ी मोती, छोती मोती, सिद्धेश्वर देवी, रसूलन बाई, काशी बाई, अनवरी बेगम, शांता देवी तथा इस समय गिरिजा देवी आदि का नाम समस्त [[भारत]] में बड़े गौरव एवं सम्मान के साथ लिया जाता है। [[चित्र:Ustad-Bismillah-khan.jpg|thumb|left|[[उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ां]]]]
====बनारसी साड़ी====
{{Main|बनारसी साड़ी}}
*बनारसी साड़ियों दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। [[लाल रंग|लाल]], [[लाल रंग|हरी]] और अन्य गहरे [[रंग|रंगों]] की ये साड़ियां [[हिंदू]] परिवारों में किसी भी शुभ अवसर के लिए आवश्यक मानी जाती हैं।
*उत्तर भारत में अधिकांश बेटियाँ बनारसी साड़ी में ही विदा की जाती हैं।
*बनारसी साड़ियों की कारीगरी सदियों पुरानी है।
==शिक्षण संस्थान==
{{Main|वाराणसी/शिक्षा}}
[[चित्र:Banaras-Hindu-University.jpg|thumb|250px|[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]]]
वाराणसी पूर्व से ही विद्या और शिक्षा के क्षेत्र में एक अहम प्रचारक और केन्द्रीय संस्था के रूप में स्थापित था। मध्यकाल के दौरान [[उत्तर प्रदेश]] में उदार परम्परा का संचालन था। वाराणसी 'हिन्दू शिक्षा केन्द्र' के रूप में विश्वव्यापक हुआ। वाराणसी के उच्चतर माध्यमिक विद्यालय 'इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ़ सैकेंडरी एजुकेशन' <ref>आई.सी.एस.ई</ref>, 'केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड' <ref>सी.बी.एस.ई</ref> या 'उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद' <ref>यू.पी.बोर्ड</ref> से सहबद्ध हैं। प्राचीन काल से ही लोग यहाँ [[दर्शन शास्त्र]], [[संस्कृत]], खगोल शास्त्र, सामाजिक ज्ञान एवं धार्मिक शिक्षा आदि के ज्ञान के लिये आते रहे हैं। '''भारतीय परंपरा में प्रायः वाराणसी को सर्वविद्या की राजधानी कहा गया है।''' वाराणसी में एक जामिया सलाफ़िया भी है, जो सलाफ़ी इस्लामी शिक्षा का केन्द्र है।
====काशी हिन्दू विश्वविद्यालय====
{{मुख्य|काशी हिन्दू विश्वविद्यालय}}
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय या बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी में स्थित एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना <ref>बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय एक्ट, एक्ट क्रमांक 16, सन 1915</ref> के अंतर्गत हुई थी। [[मदनमोहन मालवीय|पण्डित मदनमोहन मालवीय]] ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रारम्भ [[1904]] ई. में किया, जब काशी नरेश 'महाराज प्रभुनारायण सिंह' की अध्यक्षता में संस्थापकों की प्रथम बैठक हुई। [[1905]] ई. में विश्वविद्यालय का प्रथम पाठ्यक्रम प्रकाशित हुआ।
[[चित्र:Sampurnanand-Sanskrit-University.jpg|thumb|left|220px|[[सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय]]]]
====साहित्य====
वाराणसी संस्कृत साहित्य का केंद्र तो रही ही है, लेकिन इसके साथ ही इस नगर ने हिन्दी तथा [[उर्दू भाषा|उर्दू]] में अनेक साहित्यकारों को भी जन्म दिया है, जिन्होंने साहित्य सेवा की तथा देश में गौरव पूर्ण स्थान प्राप्त किया। इनमें [[भारतेंदु हरिश्चंद्र]], [[अयोध्यासिंह उपाध्याय|अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध']], [[जयशंकर प्रसाद]], [[प्रेमचंद]], [[श्यामसुन्दर दास]], [[राय कृष्णदास]], [[आचार्य रामचन्द्र शुक्ल]], रामचंद्र वर्मा, बेचन शर्मा "उग्र", विनोदशंकर व्यास, कृष्णदेव प्रसाद गौड़ तथा डॉ. संपूर्णानंद उल्लेखनीय हैं। [[चित्र:Premchand.jpg|thumb|[[प्रेमचंद|मुंशी प्रेमचंद]]|160px]] इनके अतिरिक्त [[उर्दू]] साहित्य में भी यहाँ अनेक जाने- माने लेखक एवं शायर हुए हैं। जिनमें मुख्यतः श्री विश्वनाथ प्रसाद शाद, मौलवी महेश प्रसाद, महाराज [[चेतसिंह]], शेखअली हाजी, [[आग़ा हश्र कश्मीरी]], हुकुम चंद्र नैयर, प्रो. हफीज बनारसी, श्री हक़ बनारसी तथा नज़ीर बनारसी का नाम आता है।
====उत्सवप्रियता====
वाराणसी के निवासियों की उत्सवप्रियता का उल्लेख जातकों में सविस्तार मिलता है। '''महाजनपद युग में [[दीपावली]] का उल्लेख मुख्य त्योहारों में हुआ है।''' एक जातक में उल्लेखित है कि काशी की दीपमालिका [[कार्तिक मास]] में मनायी जाती थी। इस अवसर पर स्थियाँ केशरिया रंग के वस्त्र पहनकर निकलती थीं।<ref>जातक, भाग 2, पृष्ठ 145 (संख्या 147) मोतीचंद्र, काशी का इतिहास, पृष्ठ 45</ref>
====हस्तिमंगलोत्सव====
'''हस्तिमंगलोत्सव भी वाराणसी का एक प्रमुख उत्सव था''',<ref>जातक, भाग 2, संख्या 163, पृष्ठ 215</ref> जिसका उल्लेख जातकों एवं बौद्ध साहित्य में मिलता है। इसके अतिरिक्त '''मंदिरोत्सव भी मनाया जाता था, जिसमें सुरापान किया जाता था।'''<ref>जातक, भाग 2, संख्या 163, पृष्ठ 132</ref> एक जातक में उल्लेख आया है कि '''काशीराज ने एक बार इस अवसर पर तपस्वियों को खूब सुरापान कराया था।'''<ref>139- जातक, भाग 1, पृष्ठ 208</ref>
==वाराणसी के मन्दिर==
वाराणसी में कई प्रमुख मंदिर स्थित हैं। वाराणसी कई प्रमुख मंदिरों का नगर है। वाराणसी में लगभग हर एक चौराहे पर एक मंदिर स्थित है। दैनिक स्थानीय अर्चना के लिये ऐसे छोटे मंदिर  सहायक होते हैं। इन छोटे मंदिरों के साथ ही वाराणसी में ढेरों बड़े मंदिर भी हैं, जो समय-समय पर वाराणसी के इतिहास में बनवाये गये थे। [[चित्र:Kashi-Vishwanath.jpg|thumb|left|[[विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग|विश्वनाथ मन्दिर]], वाराणसी]] वाराणसी में स्थित इन मंदिरों में काशी विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, ढुंढिराज गणेश, काल भैरव, दुर्गा जी का मंदिर, संकटमोचन, तुलसी मानस मंदिर, नया विश्वनाथ मंदिर, भारतमाता मंदिर, संकठा देवी मंदिर व विशालाक्षी मंदिर प्रमुख हैं।
====काशी विश्‍वनाथ मंदिर====
{{मुख्य|विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग}}
मूल काशी विश्‍वनाथ मंदिर बहुत छोटा था। 18वीं शताब्‍दी में इंदौर की [[अहिल्याबाई होल्कर|रानी अहिल्‍याबाई होल्‍कर]] ने इसे भव्‍य रूप प्रदान किया। [[पंजाब]] के शासक [[रणजीत सिंह|राजा रंजीत सिंह]] ने 1835 ई. में इस मंदिर के शिखर को सोने से मढ़वाया था। इस कारण इस मंदिर का एक अन्‍य नाम गोल्‍डेन टेम्‍पल भी पड़ा।
'''यह मंदिर कई बार ध्‍वस्‍त किया गया।''' वर्तमान में जो मंदिर है उसका निर्माण चौथी बार में हुआ है। [[क़ुतुबुद्दीन ऐबक]] ने सर्वप्रथम इसे 1194 ई. में ध्‍वस्‍त किया था। [[रज़िया सुल्तान]] (1236-1240) ने इसके ध्‍वंसावशेष पर रज़िया मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसके बाद इस मंदिर का निर्माण अभिमुक्‍तेश्‍वर मंदिर के नज़दीक बनवाया गया। बाद में इस मंदिर को जौनपुर के शर्की राजाओं ने तुड़वा दिया। 1490 ई. में इस मंदिर को [[सिकन्दर लोदी]] ने ध्‍वंस करवाया था। 1585 ई. में बनारस के एक प्रसिद्ध व्‍यापारी टोडरमल ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1669 ई. में इस मंदिर को [[औरंगज़ेब]] ने पुन: तुड़वा दिया। औरंगज़ेब ने भी इस मंदिर के ध्‍वंसावशेष पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था।
==वाराणसी के घाट==
{{मुख्य|वाराणसी के घाट}}
वाराणसी (काशी) में गंगा तट पर अनेक सुंदर घाट बने हैं, ये सभी घाट किसी न किसी पौराणिक या धार्मिक कथा से संबंधित हैं। वाराणसी के घाट गंगा नदी के धनुष की आकृति होने के कारण मनोहारी लगते हैं। सभी घाटों के पूर्वार्भिमुख होने से सूर्योदय के समय घाटों पर पहली किरण दस्तक देती है। उत्तर दिशा में राजघाट से प्रारम्भ होकर दक्षिण में अस्सी घाट तक सौ से अधिक घाट हैं। वाराणसी में अस्‍सीघाट से लेकर वरुणा घाट तक सभी की क्रमवार सूची निम्न है:-
==पर्यटन==
{{main|वाराणसी पर्यटन}}
वाराणसी, पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहाँ अनेक धार्मिक, ऐतिहासिक एवं सुंदर दर्शनीय स्थल हैं, जिन्हें देखने के लिए देश के ही नहीं, संसार भर से पर्यटक आते हैं और इस नगरी तथा यहाँ की [[संस्कृति]] की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं। कला, संस्कृति, साहित्य और राजनीति के विविध क्षेत्रों में अपनी अलग पहचान बनाये रखने के कारण वाराणसी अन्य नगरों की अपेक्षा अपना विशिष्ट स्थान रखती है । देश की राष्ट्रभाषा [[हिन्दी]] की जननी [[संस्कृत]] की उद्भव स्थली काशी सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
==जनसंख्या==
[[2001]] की जनगणना के अनुसार नगर निगम क्षेत्र की जनसंख्या 11,22,748 है, छावनी क्षेत्र की जनसंख्या 17,246 और ज़िले की जनसंख्या 31,3867 है।<ref>{{cite web |url=http://varanasi.nic.in/glance/dglance.html |title=वाराणसी |accessmonthday=23 फ़रवरी |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाराणसी की आधिकारिक वेबसाइट |language=[[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]}}</ref>
{{लेख प्रगति
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
{{Refbox}}
==संबंधित लेख==
{{वाराणसी}}{{उत्तर प्रदेश के नगर}}
{{Toc}}
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Latest revision as of 13:27, 28 November 2011