संदेशे आते हैं: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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वहीं थोड़ी दूर है घर मेरा
वहीं थोड़ी दूर है घर मेरा
मेरे घर में है मेरी बूढी मां
मेरे घर में है मेरी बूढी मां
मेरे मां के पैरों को छूके
मेरे माँ के पैरों को छूके
उसे उसके बेटा का नाम दे
उसे उसके बेटा का नाम दे
ए गुजरने वाली हवा ज़रा
ए गुजरने वाली हवा ज़रा
मेरे दोस्तो मेरी दिलरुबा
मेरे दोस्तो मेरी दिलरुबा
मेरी मां को मेरा प्रेम दे
मेरी माँ को मेरा प्रेम दे
 
उन्हें जाके ये पैग़ाम दे
उन्हें जाके टी ये पैग़ाम दे


मै वापस आऊंगा..
मै वापस आऊंगा..
फिर अपने गांव में
फिर अपने गांव में
उसी की छाओं में
उसी की छाओं में
की मां के आंचल से
की माँ के आंचल से
गांव के पीपल से
गांव के पीपल से
किसी के काजल से
किसी के काजल से

Latest revision as of 14:07, 2 June 2017

संक्षिप्त परिचय
  • फ़िल्म : बॉर्डर (1997)
  • संगीतकार : अनु मलिक
  • गायक : रूप कुमार राठौड़, सोनू निगम
  • गीतकार: जावेद अख़्तर

संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे...
लिखो कब आओगे...
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे...
लिखो कब आओगे...
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

किसी दिलवाली ने किसी मतवाली ने
हमें ख़त लिखा है
की हमसे पूछा है
किसी की सांसों ने, किसी की धड़कन ने
किसी की चूड़ी ने, किसी के कंगन ने
किसी के कजरे ने, किसी के गजरे ने
महकती सुबहों ने, मचलती शामों ने
अकेली रातो ने, अधूरी बातों ने
तरसती बाहों ने
और पूछा है तरसी निगाहों ने
के घर कब आओगे...
लिखो कब आओगे...
की तुम बिन ये दिल सूना सूना है

संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है

के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे..
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

मोहब्बत वालों ने, हमारे यारों ने
हमें ये लिखा है के हमसे पूछा है
हमारे गांव ने आम की छाओं ने
पुराने पीपल ने बरसते बादल ने
खेत खलियानों ने हरे मैदानों ने
बसंती बेलों ने झूमती बेलों ने
लचकते झूलो ने बेहेकते फूलो ने
चाताक्ति कलियों ने
और पूछा है गांव की गलियों ने
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे..
की तुम बिन गांव सूना सूना है

संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे..
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

कभी एक ममता की
प्यार की गंगा की
वो चिट्ठी आती है
साथ वो लाती है
मेरे दिन बचपन के
खेल वो आंगन के
वो साया आंचल का
वो टीका काजल का
वो लोरी रातों मे वो नरमी हाथों में
वो चाहत आंखों में वो चिंता बातों में
बिगड़ना ऊपर से मोहब्बत अन्दर से
करे वो देवी मां
यही हर ख़त में पूछे मेरी मां

के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन आंगन सूना सूना है

संदेशे आते हैं
हमें तड़पाते हैं
तो चिट्ठी आती है
तो पूछ जाती है
के घर कब आओगे..
लिखो कब आओगे
की तुम बिन ये घर सूना सूना है

ए गुजरने वाली हवा बता
मेरा इतना काम करेगी क्या
मेरे गांव जा मेरे दोस्तो मो सलाम दे
मेरी गांव में है जो वो गली
जहां रहती है मेरी दिलरुबा
उसे मेरे प्यार का जाम दे..
वहीं थोड़ी दूर है घर मेरा
मेरे घर में है मेरी बूढी मां
मेरे माँ के पैरों को छूके
उसे उसके बेटा का नाम दे
ए गुजरने वाली हवा ज़रा
मेरे दोस्तो मेरी दिलरुबा
मेरी माँ को मेरा प्रेम दे
उन्हें जाके ये पैग़ाम दे

मै वापस आऊंगा..
फिर अपने गांव में
उसी की छाओं में
की माँ के आंचल से
गांव के पीपल से
किसी के काजल से
किया जो वादा था वो निभाऊंगा
मै एक दिन आऊंगा........

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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