प्रयोग:फ़ौज़िया2: Difference between revisions

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शब-ए-बरात (इस्लामिक कैलेंडर में आठवें माह 'शाबान' की 14 तारीख) यानी वह रात जब अपने उन नाते-रिश्तेदारों की रूह के सुकून के लिए दुआ माँगी जाती है जो इस दुनिया से कूच कर चुके हैं। शब-ए-बरात अरबी के दो शब्दों के मेल से बना है, शब अर्थात रात्रि और बरात अर्थात निजात। शब-ए-बरात का दूसरा नाम 'लैलतुल बरात' भी है, जिसका अर्थ भी मगफ़िरत यानी गुनाहों से माफ़ी और निजात की रात है।<ref>{{cite web |url=http://www.mynews.in/merikhabar/News/%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%B8%E0%A5%87_%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A4_%E0%A4%95%E0%A5%80_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4,_%E0%A4%86%E0%A4%9C_%E0%A4%B9%E0%A5%88_%27%E0%A4%B6%E0%A4%AC-%E0%A4%8F-%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%27_N10624.html |title=गुनाहों से निजात की रात, आज है 'शब-ए-बरात' |accessmonthday=[[26 जुलाई]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एचटीएमएल |publisher=मेरी ख़बर.कॉम |language=हिन्दी}}</ref> इसे [[इस्‍लाम]] के प्रवर्तक [[हजरत मोहम्मद]] ने रहमत की रात बतलाया है। शब-ए-बरात की रात को सृष्टिकर्ता आनेवाले एक साल के लिए हर आदमी के वास्ते आयु, असबाब, यश-कीर्ति से लेकर सब कुछ तय करता है। इस रात सृष्टिकर्ता से जो जितना माँगता है, उताना पाता है।


अपने नाते-रिश्तेदारों को जन्नत (स्वर्ग) नसीब हो इसलिए इस रात उनकी निजात (गुनाहों से माफ़ी या मोक्ष) के लिए अल्लाह से गुजारिश की जाती है। इस दिन [[शिया]] और [[सुन्नी]] दोनों समुदाय कब्रिस्तान जाकर अपने-अपने पूर्वजों की कब्रों पर चरागा (रोशनी) करते हैं और फूल-मालाएँ चढ़ाते हैं। माना जाता है कि मृत लोग अपने परिजनों से यह आशा करते हैं कि वे उनके लिए अल्लाह की पाक किताब [[क़ुरआन]] की आयतें पढ़कर बख्शें ताकि स्वर्ग में उनके लिए जगह हो सके। इसी नीयत से लोग रातभर जागकर जमाज़ पढ़ते हैं और क़ुरआन की आयतें पढ़कर अपने अज़ीज़ों को बख्शते हैं। इस दिन पूर्वजों के नाम से फ़ातिहा कराकर ग़रीबों को खाना खिलाने का भी चलन है ताकि ज़रूरतमंदों के दिल से निकली हुई दुआ से मरने वालों के गुनाह माफ़ हो सकें।
==हजरत मुहम्मद ने कहा==
हदीस बुखारी में आखिरी पैगंबर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा से कहा था कि कब्रिस्तान जाकर दुआ जरुर पढ़ो। यही तुम्हारी असली जगह है। यहाँ सभी को मरने के बाद आना ही है। इसलिए उस स्थान पर जाकर अपनी मौत को जरुर याद करो।<ref>{{cite web |url=http://in.jagran.yahoo.com/news/local/bihar/4_4_5689700.html |title=शब-ए-बरात : मस्जिदों में दुआ के लिए उठे हजारों हाथ |accessmonthday=[[26 जुलाई]] |accessyear=[[2010]] |authorlink= |format=एचटीएमएल |publisher=जागरण याहू.कॉम |language=हिन्दी}}</ref>
==कर्मों का लेखा-जोखा==
पिछले साल किए गए कर्मों का लेखा-जोखा तैयार करने और आने वाले साल की तकदीर तय करने वाली इस रात को शब-ए-बरात कहा जाता है। इस रात को पूरी तरह इबादत में गुजारने की परंपरा है। नमाज, तिलावत-ए-कुरआन, कब्रिस्तान की जियारत और हैसियत के मुताबिक खैरात करना इस रात के अहम काम हैं।
{{इन्हें भी देखें |ईद-उल-फ़ितर }}
==संदर्भ==
<references/>
==सम्बंधित लिंक==
{{साँचा:पर्व और त्योहार}}
__NOTOC__

Latest revision as of 14:17, 7 July 2012