संयम की सीख -महात्मा गाँधी: Difference between revisions
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इस जवाब से काकासाहेब को | इस जवाब से काकासाहेब को दु:ख हुआ। वे चाहते थे कि बापू भी साथ जाएं। बापू ने काकासाहेब को नाराज देख कर गंभीरता से कहा, “देखो, इतना बड़ा आंदोलन लिए बैठा हूं। हज़ारों स्वयंसेवक देश के कार्य में लगे हुए हैं। अगर मैं रमणीय दृश्य देखने का लोभ संवरण न कर सकूं, तो सबके सब स्वयंसेवक मेरा ही अनुकरण करने लगेंगे। अब हिसाब लगाओ कि इस तरह कितने लोगों की सेवा से देश वंचित होगा? मेरे लिए संयम रखना ही अच्छा है।” | ||
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Latest revision as of 14:03, 2 June 2017
संयम की सीख -महात्मा गाँधी
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[[चित्र:Mahatma_prerak.png|महात्मा गाँधी|200px|center]]
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विवरण | महात्मा गाँधी |
भाषा | हिंदी |
देश | भारत |
मूल शीर्षक | प्रेरक प्रसंग |
उप शीर्षक | महात्मा गाँधी के प्रेरक प्रसंग |
संकलनकर्ता | अशोक कुमार शुक्ला |
1926 की बात है। गांधी जी दक्षिण भारत की यात्रा पर थे। उनके साथ अन्य सहयोगियों के अलावा काकासाहेब कालेलकर भी थे। वे सुदूर दक्षिण में नागर-कोइल पहुंचे। वहां से कन्याकुमारी काफ़ी पास है। इस दौरे के पहले के किसी दौरे में गांधी जी कन्याकुमारी हो आए थे। वहां के मनोरम दृष्य ने उन्हें काफ़ी प्रभावित किया था। गांधी जहां ठहरे थे, उस घर के गृह-स्वामी को बुलाकर उन्होंने कहा, “काका को मैं कन्याकुमारी भेजना चाहता हूं। उनके लिए मोटर का प्रबंध कर दीजिए।”
कुछ देर के बाद उन्होंने देखा कि काकासाहेब अभी तक घर में ही बैठे हैं, तो उन्होंने गृहस्वामी को बुलाया और पूछा, “काका के जाने का प्रबंध हुआ या नहीं?”
किसी को काम सौंपने के बाद उसके बारे में दर्याफ़्त करते रहना बापू की आदत में शुमार नहीं था। फिर भी उन्होंने ऐसा किया। यह स्पष्ट कर रहा था कि कन्याकुमारी से गांधी जी काफ़ी प्रभावित थे। स्वामी विवेकानन्द भी वहां जाकर भावावेश में आ गए थे और समुद्र में कूद कर कुछ दूर के एक बड़े पत्थर तक तैरते गए थे।
काकासाहेब ने बापू से पूछा, “आप भी आएंगे न?”
बापू ने कहा, “बार-बार जाना मेरे नसीब में नहीं है। एक दफ़ा हो आया इतना ही काफ़ी है।”
इस जवाब से काकासाहेब को दु:ख हुआ। वे चाहते थे कि बापू भी साथ जाएं। बापू ने काकासाहेब को नाराज देख कर गंभीरता से कहा, “देखो, इतना बड़ा आंदोलन लिए बैठा हूं। हज़ारों स्वयंसेवक देश के कार्य में लगे हुए हैं। अगर मैं रमणीय दृश्य देखने का लोभ संवरण न कर सकूं, तो सबके सब स्वयंसेवक मेरा ही अनुकरण करने लगेंगे। अब हिसाब लगाओ कि इस तरह कितने लोगों की सेवा से देश वंचित होगा? मेरे लिए संयम रखना ही अच्छा है।”
- महात्मा गाँधी से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए महात्मा गाँधी के प्रेरक प्रसंग पर जाएँ।
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