भागवत धर्म सार -विनोबा भाग-107: Difference between revisions

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<poem style="text-align:center">अवधीं भूते साम्या आलीं। देखिलीं म्यां कैं होती।
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विश्वास तो खरा मग। पांडुरंग कृपेचा ।।</poem>
विश्वास तो खरा मग। पांडुरंग कृपेचा ।।</poem>
जब सभी भूत साम्यावस्था में पहुँच गये हैं, ऐसा अनुभव आयेगा तभी भगवान् का दर्शन होगा। तुकाराम महाराज कहते हैं कि जो भी मुझे मिलता है, वह मैं ही हूँ, ऐसा मुझे लगता है। साम्यावस्था का यह जो अनुभव है, उसी में आनन्द है। नानात्व का भास नहीं होगा, मेरा ही रूप सब भूतों में दिखाई देगा, तो आनन्द आयेगा। बात कठिन दीखती है, लेकिन प्रयत्न करने पर निश्चय ही सधने जैसी है। स्वप्न से जागा हुआ मनुष्य जानता है कि जो देखा था, वह सही नहीं। वैसे ही एक बार यदि भान हो जाय कि नानात्व का भास सही नहीं है, तो प्रतीति होगी कि सर्वत्र मैं ही मैं व्याप्त हूँ। ऐसे महापुरुष हमारे देश में हो गये, जिन्हें यह अनुभूति हुई कि दुनिया मुझसे भिन्न नहीं है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में इस तरह के पुरुष हुए हैं। नानक की कहानी है। पिता ने उन्हें गल्ले की दूकान पर बिठाया। खरीददार आये। ग्लला तौलकर देना था। नानक तौलने लगे :‘एक, दो, तीन .......ग्यारा, बारा, तेरा!’‘तेरा तेरा’ ही कहते रहे, तेरह के आगे नहीं बढ़े। मतलब यह कि ‘मेरा कुछ है ही नहीं, भगवन्! सब कुछ तेरा ही तेरा है।’ फलस्वरूप आज पंजाब में एक नानक का ही नाम चलता है। इतने सारे राजा आये और गये, लेकिन किसी का भी नाम लोगों को याद नहीं। ऐसा क्यों हुआ? इसीलिए कि नानक ने पहचाना :
जब सभी भूत साम्यावस्था में पहुँच गये हैं, ऐसा अनुभव आयेगा तभी भगवान् का दर्शन होगा। तुकाराम महाराज कहते हैं कि जो भी मुझे मिलता है, वह मैं ही हूँ, ऐसा मुझे लगता है। साम्यावस्था का यह जो अनुभव है, उसी में आनन्द है। नानात्व का भास नहीं होगा, मेरा ही रूप सब भूतों में दिखाई देगा, तो आनन्द आयेगा। बात कठिन दीखती है, लेकिन प्रयत्न करने पर निश्चय ही सधने जैसी है। स्वप्न से जागा हुआ मनुष्य जानता है कि जो देखा था, वह सही नहीं। वैसे ही एक बार यदि भान हो जाय कि नानात्व का भास सही नहीं है, तो प्रतीति होगी कि सर्वत्र मैं ही मैं व्याप्त हूँ। ऐसे महापुरुष हमारे देश में हो गये, जिन्हें यह अनुभूति हुई कि दुनिया मुझसे भिन्न नहीं है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में इस तरह के पुरुष हुए हैं। नानक की कहानी है। पिता ने उन्हें गल्ले की दूकान पर बिठाया। ख़रीददार आये। ग्लला तौलकर देना था। नानक तौलने लगे :‘एक, दो, तीन .......ग्यारा, बारा, तेरा!’‘तेरा तेरा’ ही कहते रहे, तेरह के आगे नहीं बढ़े। मतलब यह कि ‘मेरा कुछ है ही नहीं, भगवन्! सब कुछ तेरा ही तेरा है।’ फलस्वरूप आज पंजाब में एक नानक का ही नाम चलता है। इतने सारे राजा आये और गये, लेकिन किसी का भी नाम लोगों को याद नहीं। ऐसा क्यों हुआ? इसीलिए कि नानक ने पहचाना :
बिसर गई सब तात पराई। जब ते साधु संगति मोहि पाई ।। सार यह कि इस व्यापक अनुभूति में महान् आनन्द भरा पड़ा है। हमें उस आनन्द को प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। हमें अपने घर से बाहर देखने की कोशिश करनी चाहिए। घर में प्रेम है। लेकिन जैसे पानी एक ही जगह पर रहने से सड़ जाता है, वैसे ही प्रेम घर में कैद हुआ तो सड़ जाता है। उससे काम-वासना बढ़ती है। वह यदि परिवार के बाहर बहता रहे तो निश्चय ही व्यापक अनुभूति आयेगी।
बिसर गई सब तात पराई। जब ते साधु संगति मोहि पाई ।। सार यह कि इस व्यापक अनुभूति में महान् आनन्द भरा पड़ा है। हमें उस आनन्द को प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। हमें अपने घर से बाहर देखने की कोशिश करनी चाहिए। घर में प्रेम है। लेकिन जैसे पानी एक ही जगह पर रहने से सड़ जाता है, वैसे ही प्रेम घर में कैद हुआ तो सड़ जाता है। उससे काम-वासना बढ़ती है। वह यदि परिवार के बाहर बहता रहे तो निश्चय ही व्यापक अनुभूति आयेगी।



Latest revision as of 13:21, 15 November 2016

भागवत धर्म मिमांसा

4. बुद्ध-मुक्त-मुमुक्षु साधक

तुकाराम महाराज समाधि के सामने पड़े के नीचे खड़े हो गये और साष्टांग (दण्डवत्) प्रणाम किया। इस बीच पेड़ पर जो पक्षी बैठे थे, वे एकदम उड़ गये। तुकाराम महाराज दुःखी हुए कि मेरे डर से पक्षी उड़ गये! वे वहीं शान्ति से खड़े हो गये – पेड़ के समान शान्त! कुछ समय बाद पक्षी उनके कंधे पर आ बैठे। तब उनको बहुत आनन्द हुआ। जब तक भगवान् का दर्शन नहीं होगा, तब तक ऐसी साम्यावस्था नहीं आयेगी।

अवधीं भूते साम्या आलीं। देखिलीं म्यां कैं होती।
विश्वास तो खरा मग। पांडुरंग कृपेचा ।।

जब सभी भूत साम्यावस्था में पहुँच गये हैं, ऐसा अनुभव आयेगा तभी भगवान् का दर्शन होगा। तुकाराम महाराज कहते हैं कि जो भी मुझे मिलता है, वह मैं ही हूँ, ऐसा मुझे लगता है। साम्यावस्था का यह जो अनुभव है, उसी में आनन्द है। नानात्व का भास नहीं होगा, मेरा ही रूप सब भूतों में दिखाई देगा, तो आनन्द आयेगा। बात कठिन दीखती है, लेकिन प्रयत्न करने पर निश्चय ही सधने जैसी है। स्वप्न से जागा हुआ मनुष्य जानता है कि जो देखा था, वह सही नहीं। वैसे ही एक बार यदि भान हो जाय कि नानात्व का भास सही नहीं है, तो प्रतीति होगी कि सर्वत्र मैं ही मैं व्याप्त हूँ। ऐसे महापुरुष हमारे देश में हो गये, जिन्हें यह अनुभूति हुई कि दुनिया मुझसे भिन्न नहीं है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में इस तरह के पुरुष हुए हैं। नानक की कहानी है। पिता ने उन्हें गल्ले की दूकान पर बिठाया। ख़रीददार आये। ग्लला तौलकर देना था। नानक तौलने लगे :‘एक, दो, तीन .......ग्यारा, बारा, तेरा!’‘तेरा तेरा’ ही कहते रहे, तेरह के आगे नहीं बढ़े। मतलब यह कि ‘मेरा कुछ है ही नहीं, भगवन्! सब कुछ तेरा ही तेरा है।’ फलस्वरूप आज पंजाब में एक नानक का ही नाम चलता है। इतने सारे राजा आये और गये, लेकिन किसी का भी नाम लोगों को याद नहीं। ऐसा क्यों हुआ? इसीलिए कि नानक ने पहचाना : बिसर गई सब तात पराई। जब ते साधु संगति मोहि पाई ।। सार यह कि इस व्यापक अनुभूति में महान् आनन्द भरा पड़ा है। हमें उस आनन्द को प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। हमें अपने घर से बाहर देखने की कोशिश करनी चाहिए। घर में प्रेम है। लेकिन जैसे पानी एक ही जगह पर रहने से सड़ जाता है, वैसे ही प्रेम घर में कैद हुआ तो सड़ जाता है। उससे काम-वासना बढ़ती है। वह यदि परिवार के बाहर बहता रहे तो निश्चय ही व्यापक अनुभूति आयेगी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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