अल्ला बख़्श: Difference between revisions
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Latest revision as of 07:10, 7 January 2020
अल्ला बख़्श
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पूरा नाम | अल्ला बख़्श |
जन्म | 1900 |
जन्म भूमि | शिकारपुर (अब पाकिस्तान) |
मृत्यु | 14 मई, 1943 |
मृत्यु कारण | गोली मारकर हत्या |
पति/पत्नी | साहिब खातून |
प्रसिद्धि | स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं राजनेता |
कार्य काल | मुख्यमंत्री सिंध प्रथम बार- 23 मार्च, 1938 से 18 अप्रैल, 1940 तक |
अन्य जानकारी | मुख्यमंत्री की हैसियत से वायसराय ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अल्ला बख़्श को अपनी डिफेंस कौंसिल का सदस्य मनोनीत किया था, किंतु भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्होंने इस पद को त्याग दिया। |
अल्ला बख़्श (अंग्रेज़ी: Allah Bux, जन्म- 1900; मृत्यु- 14 मई, 1943) अंग्रेज़ी शासन के दौरान एक जमींदार, सरकारी ठेकेदार, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं राजनेता थे। वह सिन्ध के सबसे श्रेष्ठ राज्य-प्रमुखों में गिने जाते थे। उन्हें शहीद के रूप में याद किया जाता है। वे सिंध प्रांत के दो बार मुख्यमंत्री रहे थे। उन्होंने यह पद को 23 मार्च, 1938 से 18 अप्रैल, 1940 तक, जबकि दूसरी बार 7 मार्च, 1941 के बाद से 14 अक्टूबर, 1942 तक संभाला।
परिचय
सिंध के प्रमुख राष्ट्रवादी नेता अल्ला बख़्श का जन्म 1900 ई. में शिकारपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई नहीं की और ठेकेदारी के पुश्तैनी व्यवसाय में पिता का हाथ बटाने लगे।
हिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक
अल्ला बख़्श आरंभ से ही सार्वजनिक कार्य में रुचि लेते थे। हिंदू-मुस्लिम एकता के वे प्रबल समर्थक थे। मोहम्मद अली जिन्ना ने उन्हें मुस्लिम लीग में सम्मिलित करने के लिए अनेक प्रयत्न किए, पर अल्ला बख़्श ने सदा इसका विरोध किया। उनका कहना था कि "धर्म के आधार पर संसार के लोगों का विभाजन अवास्तविक और गलत है।"
राजनीतिक गतिविधियाँ
अल्ला बख़्श ने स्थानीय संस्थाओं के माध्यम से राजनीति में प्रवेश किया। सन 1926 से 1936 तक वह मुंबई कौंसिल में ऊपरी सिंध का प्रतिनिधित्व करते रहे। 1935 में जब मुंबई से अलग सिंध प्रांत बना तो अल्ला बख़्श और उनके साथियों ने ‘सिंध इतिहाद’ पार्टी बनाकर 1937 में चुनाव लड़ा और 35 में से 24 मुस्लिम सीटों पर विजय प्राप्त कर ली। सन 1938 में गवर्नर ने अल्ला बख़्श को मंत्रिमंडल के लिए आमंत्रित किया और कांग्रेस के साथ मिलकर वे देश के प्रथम प्रीमियर बने। मुस्लिम लीग के षड्यंत्र से एक बार विधानसभा में पराजित होना पड़ा था, किंतु शीघ्र ही वे पुन: बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल हो गए थे।[1]
मृत्यु
मुख्यमंत्री की हैसियत से वायसराय ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अल्ला बख़्श को अपनी डिफेंस कौंसिल का सदस्य मनोनीत किया था, किंतु भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्होंने इस पद को त्याग दिया। साथ ही ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में हो रहे दमन और भारत के साधनों के दुरुपयोग की कटु आलोचना भी की। इस पर उनकी सरकार भंग कर दी गई और इसके कुछ समय बाद ही 14 मई, 1943 को शिकारपुर में उन्हें गोली मार दी गई। उनकी हत्या का संदेह मुस्लिम लीग पर किया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 54 |
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- REDIRECTसाँचा:स्वतन्त्रता सेनानी