User:रविन्द्र प्रसाद/2: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
No edit summary
(पृष्ठ को खाली किया)
Tag: Blanking
 
(88 intermediate revisions by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
'''लाइ हराओबा''' या '''लाई हारोबा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Lai Haraoba'') [[मणिपुर]] के मुख्‍य उत्‍सवों में से एक है। यह [[नृत्य]] का प्राचीन रूप है, जो मणिपुर में सभी [[शैली]] के नृत्‍य के रूपों का आधार है। लाइ हराओबा पर्व श्रुति साहित्य, [[संगीत]], नृत्य और परंपरिक अनुष्ठानों का अद्भुत संगम है। यह पारम्परिक सनमाही धर्म के देवताओं उमंग लाई को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। यह नृत्‍य तथा गीत के एक अनुष्‍ठानिक अर्पण के रूप में प्रस्‍तुत किया जाता है।
==परिचय==
लाई हराओबा की जब बात होती है तो सबसे पहले दिमाग में यही सवाल आता है कि लाई हराओबा त्योहार आखिर है क्या? लाई हराओबा त्योहार को कौन मनाते हैं। जिस तरह से हमारे लिए [[होली]] एक बड़ा ही रंग-बिरंगा त्योहार होता है, उसी तरह से लाई हराओबा [[मणिपुर]] का एक बड़ा ही रंग-बिरंगा त्योहार है। साथ ही इसे राज्य का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार भी माना जाता है। उमंग लाई हराओबा के नाम से भी मणिपुर में मनाया जाने वाला यह त्योहार जाना जाता है। चूंकि इसे मेतेई समुदाय के लोग मनाते हैं, इसलिए इसे एक पारंपरिक मैतेई त्योहार के रूप में भी जानते हैं। जिस ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की है, जिस ईश्वर ने इस [[पृथ्वी]] को बनाया है, उस पृथ्वी और उस पर निवास करने वाले जीवों से यह त्योहार संबंध रखता है।<ref name="pp">{{cite web |url= https://www.opennaukri.com/lai-haraoba-a-ritualistic-festival-of-the-meiteis/|title=लाई हराओबा त्योहार|accessmonthday=28 सितम्बर|accessyear=2021 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=opennaukri.com |language=हिंदी}}</ref>
==मान्यता==
ऐसा बताया जाता है कि बहुत ही शुरुआत में एक सबसे बड़े [[देवता]] हुआ करते थे, जिनका नाम गुरु सिदबा था। वे जिस कमरे में रहते थे, वहां घोर अंधकार पसरा हुआ था। एक बार इस कमरे में बहुत तेज प्रकाश उत्पन्न हुआ। इंद्रधनुष के अलग-अलग रंगों ने उनके कमरे को जगमगा दिया। इस घटना ने उन्हें प्रेरणा दी कि वे सृष्टि का निर्माण करें। इस काम को अंजाम देने में अतिया गुरु ने भी सहयोग दिया। इस तरह से गुरु सिदबा ने अतिया गुरु को एक मानव का ढांचा प्रदान कर दिया। सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया अब शुरू होनी थी। ऐसे में सबसे पहले गुरु सिदबा ने अपनी नाभि से मैल निकाला। फिर उन्होंने नौ पुरुषों का अपनी नाभि की दाईं तरफ से और सात महिलाओं का बाईं ओर से सृजन कर दिया। इन सभी पुरुषों और महिलाओं को उन्होंने अतिया गुरु की सेवा में समर्पित कर दिया। इन्हीं पुरुषों और महिलाओं की सहायता ने अतिया गुरु ने सृष्टि का निर्माण शुरू कर दिया।


अतिया गुरु इसके प्रति गंभीर थे। फिर भी उनके जो दो पहले प्रयास थे, उन पर हरबा ने पानी फेर दिया था। गुरु सिदबा ने जब यह देखा तो उन्हें बड़ा क्रोध आया। इसका उन्होंने उपाय निकाला। अतिया गुरु के बचाव में अब उन्होंने बिजली की देवी को भेज दिया। इसके बाद मानव के ढांचे को मजबूत करना अतिया गुरु के लिए आसान हो गया। उन्होंने इसी ढांचे की मदद से फिर मानव जीवन को उपयुक्त बना दिया।<ref name="pp"/>
==कैसे मनाया जाता है==
लाई हराओबा त्योहार मनाने का मतलब यही है कि सृष्टि की प्रक्रिया का पर्व मनाना। लोक गीतों और नृत्यों का मूल स्रोत लाई हराओबा को ही माना गया है। जितने भी प्रकार के मणिपुरी नृत्य मौजूद हैं और कई तरह के जो स्वदेशी खेल राज्य में खेले जाते हैं, लाई हराओबा को इन सभी के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में इस त्योहार को मनाए जाने की परंपरा शुरू हुई थी। उस दौरान इस त्योहार को मनाने के लिए खाद्य पदार्थों और पुष्प आदि अर्पित करके अनुष्ठान किए जाते थे। जैसे-जैसे समय बीतता गया, इस त्योहार के साथ और भी कई तरह के अनुष्ठान और परंपराएं जुड़ती चली गईं। उमंग लाई के नाम से जो सिल्वन देवता जाने जाते हैं, लाई हराओबा के दौरान इनकी पूजा होती है। पारंपरिक देवताओं के साथ पूर्वजों को भी इस त्योहार के दौरान पूजा जाता है।
त्योहार के मौके पर पुरुष और महिलाएं कई तरह के नृत्यों की प्रस्तुति देते हैं, जो वाकई देखने लायक होते हैं। लाई हराओबा का त्योहार मई महीने में मनाया जाता है। इस दौरान लोग अपने स्थानीय पारंपरिक देवताओं के साथ पूर्वजों के प्रति अपना सम्मान प्रकट करते हैं। साथ ही वे उनके चरणों में अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं। इसलिए देवताओं की उत्सव धर्मिता के रूप में भी लाई हराओबा की पहचान है।मोइरांग के शासक देव थंगजिंग के लाई हराओबा का बड़ा नाम रहा है।
लाई हराओबा का त्योहार मनाते वक्त नोंगपोक निमगथो के साथ सनमही, लेईमरेल, पखंगबा और करीब 364 उमंग लाई या जंगल के देवी-देवताओं की आराधना की जाती है। भगवान ने जो ब्रह्मांड के सृजन में अपना योगदान दिया है, उसी को याद करने के लिए यह त्योहार मनाया जाता है। इसके अलावा पेड़-पौधों और जानवरों के साथ इंसानों का विकास जिस तरह से हुआ है, उसे भी इस त्योहार में याद किया जाता है। मूर्तियों के सामने नृत्य करना इस त्योहार का एक प्रमुख अंग है। देवी-देवताओं से तो लोग इस दौरान आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते ही हैं, साथ में अपने पूर्वजों से भी वे आराधना करके आशीर्वाद मांगते हैं।<ref name="pp"/>
मेतेई समुदाय से जुड़े युवाओं के साथ वृद्ध तक इस दौरान पारंपरिक नृत्य में भाग लेते हैं। साथ ही वे गीत भी गाते हैं। नाटक का प्रदर्शन भी इस दौरान होता है। थोइबी और खंबा के जीवन को इस नाटक में दिखाया जाता है। एक लोक कथा के नायिका और नायक के रूप में इनकी पहचान है। जब शाम हो जाता है, तो पालकी में देवता को घुमाने की भी परंपरा है।
==लाई हराओबा के प्रकार==
#इंफाल घाटी में यह कंगलेई लाई हराओबा के रूप में मनाया जाता है।
#मोइरांग क्षेत्र में यह मोइरांग लाई हराओबा के नाम से मनाया जाता है।
#मूल मणिपुरी मेतेई समुदाय के लोग चाकपा लाई हराओबा के रूप में इसे मनाते हैं।<ref name="pp"/>
==चरण==
*लाई यानी कि ईश्वर में आस्था लाई-इकौबा कहलाती है।
*उत्पत्ति का उत्सव लाईफोऊ कहलाता है।
*वर्ष की विदाई का संस्कार लाईरोई कहलाता है।
*दुष्ट शक्तियों को भगाने के उद्देश्य से किया गया अनिवार्य अनुष्ठान शरोई-(खंगबा) के नाम से जाना जाता है।
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{पर्व और त्योहार}}
[[Category:मणिपुर]]
[[Category:मणिपुर की संस्कृति]]
[[Category:पर्व और त्योहार]]
[[Category:संस्कृति कोश]]
__INDEX__
__NOTOC__

Latest revision as of 09:28, 18 April 2024