हैली धूमकेतु: Difference between revisions
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'''हैली धूमकेतु ( Halley's Comet )''', सबसे प्रसिद्घ पुच्छल तारा है। इसका नाम प्रसिद्घ खगोलशास्त्री '''एडमंड हैली ( Edmond Halley )''' के नाम पर रखा गया है। हैली न्यूटन के समकालीन थे। उनका जन्म 08.11.1658 को और मृत्यु 14.01.1742 में हुई। उन्होने धूमकेतुओं के बारे में अध्ययन किया। उनका कहना था कि जो धूमकेतु सन् 1682, में दिखायी दिया था यह वही धूमकेतु है जो सन् 1531 व 1607 तथा संभवत: सन् 1465 में भी दिखायी पड़ा था। उन्होंने गणना द्वारा भविष्यवाणी की कि यह सन् 1758 के अन्त के समय पुन: दिखायी पड़ेगा। ऎसा हुआ भी कि यह पुच्छल तारा 1758 के बड़े दिन की रात्रि ( Christmas night ) को दिखलायी दिया। तबसे इसका नाम हैली का धूमकेतु पड़ गया। | '''हैली धूमकेतु ( Halley's Comet )''', सबसे प्रसिद्घ पुच्छल तारा है। इसका नाम प्रसिद्घ खगोलशास्त्री '''एडमंड हैली ( Edmond Halley )''' के नाम पर रखा गया है। हैली न्यूटन के समकालीन थे। उनका जन्म 08.11.1658 को और मृत्यु 14.01.1742 में हुई। उन्होने धूमकेतुओं के बारे में अध्ययन किया। उनका कहना था कि जो धूमकेतु सन् 1682, में दिखायी दिया था यह वही धूमकेतु है जो सन् 1531 व 1607 तथा संभवत: सन् 1465 में भी दिखायी पड़ा था। उन्होंने गणना द्वारा भविष्यवाणी की कि यह सन् 1758 के अन्त के समय पुन: दिखायी पड़ेगा। ऎसा हुआ भी कि यह पुच्छल तारा 1758 के बड़े दिन की रात्रि ( Christmas night ) को दिखलायी दिया। तबसे इसका नाम हैली का धूमकेतु पड़ गया। | ||
[[चित्र:halley1910.jpg|thumb| | [[चित्र:halley1910.jpg|thumb|200px|right|हैली धूमकेतु 1910<br />Halley's Comet 1910]] | ||
हैली की मृत्यु 14 जनवरी 1742 को हो गयी यानि उन्होंने अपनी भविष्यवाणी सच होते नहीं देखी। इसके बाद यह पुच्छल तारा नवम्बर 1835, अप्रैल 1910, और फरवरी 1986 में दिखायी पड़ा। यह पुन: 2061 में दिखायी पड़ेगा। क्योकि यह 75 - 76 सालो में पृथ्वी के पास आता है। | हैली की मृत्यु 14 जनवरी 1742 को हो गयी यानि उन्होंने अपनी भविष्यवाणी सच होते नहीं देखी। इसके बाद यह पुच्छल तारा नवम्बर 1835, अप्रैल 1910, और फरवरी 1986 में दिखायी पड़ा। यह पुन: 2061 में दिखायी पड़ेगा। क्योकि यह 75 - 76 सालो में पृथ्वी के पास आता है। | ||
Revision as of 18:24, 17 January 2011
thumb|200px|right|हैली धूमकेतु 1986
Halley's Comet 1986
हैली धूमकेतु ( Halley's Comet ), सबसे प्रसिद्घ पुच्छल तारा है। इसका नाम प्रसिद्घ खगोलशास्त्री एडमंड हैली ( Edmond Halley ) के नाम पर रखा गया है। हैली न्यूटन के समकालीन थे। उनका जन्म 08.11.1658 को और मृत्यु 14.01.1742 में हुई। उन्होने धूमकेतुओं के बारे में अध्ययन किया। उनका कहना था कि जो धूमकेतु सन् 1682, में दिखायी दिया था यह वही धूमकेतु है जो सन् 1531 व 1607 तथा संभवत: सन् 1465 में भी दिखायी पड़ा था। उन्होंने गणना द्वारा भविष्यवाणी की कि यह सन् 1758 के अन्त के समय पुन: दिखायी पड़ेगा। ऎसा हुआ भी कि यह पुच्छल तारा 1758 के बड़े दिन की रात्रि ( Christmas night ) को दिखलायी दिया। तबसे इसका नाम हैली का धूमकेतु पड़ गया।
thumb|200px|right|हैली धूमकेतु 1910
Halley's Comet 1910
हैली की मृत्यु 14 जनवरी 1742 को हो गयी यानि उन्होंने अपनी भविष्यवाणी सच होते नहीं देखी। इसके बाद यह पुच्छल तारा नवम्बर 1835, अप्रैल 1910, और फरवरी 1986 में दिखायी पड़ा। यह पुन: 2061 में दिखायी पड़ेगा। क्योकि यह 75 - 76 सालो में पृथ्वी के पास आता है।
इस धूमकेतु के साथ एक अन्य प्रसिद्घ व्यक्ति भी जुड़ा है। वे हैं प्रसिद्घ लेखक मार्क ट्वैन ( Mark Twain )। आपका जन्म 30.11.1835 को हैली धूमकेतु के आने पर हुआ था और मृत्यु 21.04.1910 को, जब यह धूमकेतु अगली बार आया।
thumb|150px|left|एडमंड हैली
Edmond Halley
पुच्छल तारे सारी सभ्यताओं में अशुभ माने जाते हैं। इस गणना ने यह सिद्घ कर दिया कि यह किसी अशुभ घटना या दैविक प्रकोप का कारण नहीं है पर विज्ञान से जुड़ी घटना है। यदि हम पीछे की गणना करें तो यह 12 बी. सी. में या फिर 66 ए. डी. में पृथ्वी पर दिखायी दिया होगा। यदि बेथलेहम का तारा हैली धूमकेतु था तो प्रभू ईसा का जन्म या 12 बी.सी. में या फिर 66 ए.डी. में हुआ होगा। मेरे विचार से इतना अन्तर नहीं हो सकता और वह तारा हैली का धूमकेतु या फिर और कोई धूमकेतु नहीं हो सकता है। इसके कई कारण और भी हैं।
thumb|350px|right|हैली धूमकेतु का पथ
Orbit of Halley's Comet 1910
- पुच्छल तारा, अन्य तारों से भिन्न होता है। सारी सभ्यताओं में पुच्छल तारा को पुच्छल तारा कह कर ही बताया गया है। यदि पुच्छल तारा होता तो वही कहा जाता।
- सारी सभ्यताओं में, पुच्छल तारे अशुभ माने जाते हैं। यदि प्रभू ईसा के जन्म के समय पुच्छल तारा निकला था तो वह कम से कम वे लोग पुच्छल तारे को अशुभ नहीं मानते।
- यदि वह हैली के अतिरिक्त कोई और धूमकेतु था तो वह फिर क्यों नहीं आया।
- धूमकेतु की पूंछ हमेशा सूर्य से दूर रहती है यानी कि पूंछ पश्चिम की ओर। इसलिये धूमकेतु कभी भी पश्चिम दिशा की ओर इंगित नहीं कर सकते हैं। यदि पश्चिम से लोग आते तो शायद कहा जा सकता कि वह धूमकेतु था पर यहां तो पूरब से लोग आये थे।
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