विन्ध्येश्वरी माता की आरती: Difference between revisions
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Revision as of 05:20, 21 February 2011
विन्ध्येश्वरी माता|thumb|200px
सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी तेरा पार न पाया॥ टेक॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तरी भेंट चढ़ाया।
सुवा चोली तेरे अंग विराजे केसर तिलक लगाया।
नंगे पग अकबर आया सोने का छत्र चढ़ाया। सुन॥
उँचे उँचे पर्वत भयो दिवालो नीचे शहर बसाया।
कलियुग द्वापर त्रेता मध्ये कलियुग राज सबाया॥
धूप दीप नैवेद्य आरती मोहन भोग लगाया।
ध्यानू भगत मैया तेरे गुण गावैं मनवांछित फल पाया॥
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
- REDIRECT साँचा:आरती स्तुति स्तोत्र