प्रव्रज्या: Difference between revisions

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Revision as of 10:00, 21 March 2011

  • प्रवज्या को संन्यास आश्रम कहा जाता है। इसका प्रयोग संन्यास या भिक्षु धर्म ग्रहण करने की विधि के अर्थ में होता है।
  • महाभारत काल के पूर्व प्रव्रज्या का मार्ग सभी वर्णों के लिए खुला था।
  • प्रवज्या आश्रम में उपनिषद में जानश्रुति शूद्र को भी मोक्ष मार्ग का उपदेश दिया गया है और युवा श्वेतकेतु को तत्त्व प्राप्ति का उपदेश मिला है।
  • महाभारत काल में यह बात मानी जाती थी तथापि यथार्थ में लोग समझने लगे कि ब्राह्मण और विशेषत चतुर्थाश्रमी ही मोक्ष मार्ग के पात्र हैं।
  • महाभारत काल में प्रव्रज्या का मान बहुत बढ़ा हुआ जान पड़ता है। उन दिनों वैदिक धार्मियों की प्रव्रज्या बहुत कठिन थी। बौद्धों तथा जैनों ने उसको बहुत सस्ता कर डाला और बहुतों के लिए वह पेट भरने का साधन मात्र हो गयी।


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