आर्यदेव बौद्धाचार्य: Difference between revisions
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आर्यदेव आचार्य [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] के पट्ट शिष्यों में से अन्यतम हैं। इनके और नागार्जुन के दर्शन में कुछ भी अन्तर नहीं है। उन्होंने नागार्जुन के दर्शन को ही सरल भाषा में स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया है। इनकी रचनाओं में 'चतु:शतक' प्रमुख है, जिसे 'योगाचार चतु:शतक' भी कहते हैं। चन्द्रकीर्ति के ग्रन्थों में इसका 'शतक' या 'शतकशास्त्र' के नाम से भी उल्लेख है। ह्रेनसांग ने इसका चीनी भाषा में अनुवाद किया था। [[संस्कृत]] में यह ग्रन्थ पूर्णतया उपलब्ध नहीं है। सातवें से सोलहवें प्रकरण तक भोट भाषा से संस्कृत में रूपान्तरित रूप में उपलब्ध होता है। यह रूपान्तरण भी शत-प्रतिशत ठीक नहीं है। प्रश्नोत्तर शैली में माध्यमिक सिद्धान्त बड़े ही रोचक ढंग से आर्यदेव ने प्रतिपादित किये हैं। कुछ प्रश्न तो ऐसे हैं, जिन्हें आज के विद्वान भी उपस्थित करते हैं, जिनका आर्यदेव ने सुन्दर समाधान किया है। | आर्यदेव आचार्य [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] के पट्ट शिष्यों में से अन्यतम हैं। इनके और नागार्जुन के दर्शन में कुछ भी अन्तर नहीं है। उन्होंने नागार्जुन के दर्शन को ही सरल भाषा में स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया है। इनकी रचनाओं में 'चतु:शतक' प्रमुख है, जिसे 'योगाचार चतु:शतक' भी कहते हैं। चन्द्रकीर्ति के ग्रन्थों में इसका 'शतक' या 'शतकशास्त्र' के नाम से भी उल्लेख है। ह्रेनसांग ने इसका चीनी भाषा में अनुवाद किया था। [[संस्कृत]] में यह ग्रन्थ पूर्णतया उपलब्ध नहीं है। सातवें से सोलहवें प्रकरण तक भोट भाषा से संस्कृत में रूपान्तरित रूप में उपलब्ध होता है। यह रूपान्तरण भी शत-प्रतिशत ठीक नहीं है। प्रश्नोत्तर शैली में माध्यमिक सिद्धान्त बड़े ही रोचक ढंग से आर्यदेव ने प्रतिपादित किये हैं। कुछ प्रश्न तो ऐसे हैं, जिन्हें आज के विद्वान भी उपस्थित करते हैं, जिनका आर्यदेव ने सुन्दर समाधान किया है। |
Revision as of 09:42, 16 May 2010
आचार्य आर्यदेव
आर्यदेव आचार्य नागार्जुन के पट्ट शिष्यों में से अन्यतम हैं। इनके और नागार्जुन के दर्शन में कुछ भी अन्तर नहीं है। उन्होंने नागार्जुन के दर्शन को ही सरल भाषा में स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया है। इनकी रचनाओं में 'चतु:शतक' प्रमुख है, जिसे 'योगाचार चतु:शतक' भी कहते हैं। चन्द्रकीर्ति के ग्रन्थों में इसका 'शतक' या 'शतकशास्त्र' के नाम से भी उल्लेख है। ह्रेनसांग ने इसका चीनी भाषा में अनुवाद किया था। संस्कृत में यह ग्रन्थ पूर्णतया उपलब्ध नहीं है। सातवें से सोलहवें प्रकरण तक भोट भाषा से संस्कृत में रूपान्तरित रूप में उपलब्ध होता है। यह रूपान्तरण भी शत-प्रतिशत ठीक नहीं है। प्रश्नोत्तर शैली में माध्यमिक सिद्धान्त बड़े ही रोचक ढंग से आर्यदेव ने प्रतिपादित किये हैं। कुछ प्रश्न तो ऐसे हैं, जिन्हें आज के विद्वान भी उपस्थित करते हैं, जिनका आर्यदेव ने सुन्दर समाधान किया है।
ह्रेनसांग के अनुसार
ह्रेनसांग के अनुसार ये सिंहल देश से भारत आये थे। इनकी एक ही आंख थी, इसलिए इन्हें काणदेव भी कहा जाता था। इनके देव एवं नीलनेत्र नाम भी प्रसिद्ध थे। कुमारजीव ने ई.सन 405 में इनकी जीवनी का अनुवाद चीनी भाषा में किया था। 'चित्तविशुद्धिप्रकरण' ग्रन्थ भी इनकी रचना है- ऐसी प्रसिद्धि है। 'हस्तवालप्रकरण' या 'मुष्टिप्रकरण' भी इनका ग्रन्थ माना जाता है। परम्परा में जितना नागार्जुन को प्रामाणिक माना जाता है, उतना ही आर्यदेव को भी। इन दोनों आचार्यों के ग्रन्थ माध्यमिक परम्परा में 'मूलशास्त्र' या 'आगम' के रूप में माने जाते हैं।