चोर से सहानुभूति: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{{पुनरीक्षण}} *एक भक्त थे, कोई उनका उस [[कपड़ा (लेखन साम...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
{{पुनरीक्षण}} | {{पुनरीक्षण}} | ||
*एक [[भक्त]] थे, कोई उनका | *एक [[भक्त]] थे, कोई उनका [[कपड़ा (लेखन सामग्री)|कपड़ा]] चुरा ले गया। कुछ दिनों बाद उस भक्त ने वह कपड़ा एक आदमी के हाथ में देखा जो उसे बाज़ार में बेच रहा था। | ||
*वह दुकानदार उस आदमी से कहता है यह कपड़ा तुम्हारा है या चोरी का, इसका क्या पता। हाँ कोई सज्जन पहचान कर बता दें कि तुम्हारा ही है तो मैं इसे खरीद लूँगा। | |||
*वह दुकानदार उस आदमी से कहता है यह | *वह भक्त पास ही खड़े थे और उनसे दुकानदार का परिचय भी था। उन्होंने उस दुकानदार से कहा मैं इस आदमी को जानता हूँ, तुम इस कपड़े के दाम दे,दो। | ||
*दुकानदार ने कपड़ा खरीदकर कीमत चुका | *दुकानदार ने कपड़ा खरीदकर कीमत चुका दी। यह सब देखकर भक्त के एक साथी ने उनसे पूछाँ कि आपने ऐसा क्यो किया? इस पर भक्त बोले कि वह बेचारा बहुत गरीब है, गरीबी से तंग आकर उसे ऐसा करना पड़ा है। | ||
*गरीब की तो हर तरह से सहायता ही करनी | *भक्त कहते हैं गरीब की तो हर तरह से सहायता ही करनी चाहिये। इस अवस्था में उसको चोर बतलाकर फ़साना अत्यन्त पाप है। | ||
*भक्त की इस बात का चोर पर बड़ा प्रभाव पड़ा और वह भक्त की कुटिया पर जाकर अपनी गलती के लिए रोने लगा। | *भक्त की इस बात का चोर पर बड़ा प्रभाव पड़ा और वह भक्त की कुटिया पर जाकर अपनी गलती के लिए रोने लगा। उस दिन से वह चोर भी एक भक्त बन गया। | ||
{{प्रचार}} | {{प्रचार}} | ||
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
Revision as of 06:01, 24 June 2011
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
- एक भक्त थे, कोई उनका कपड़ा चुरा ले गया। कुछ दिनों बाद उस भक्त ने वह कपड़ा एक आदमी के हाथ में देखा जो उसे बाज़ार में बेच रहा था।
- वह दुकानदार उस आदमी से कहता है यह कपड़ा तुम्हारा है या चोरी का, इसका क्या पता। हाँ कोई सज्जन पहचान कर बता दें कि तुम्हारा ही है तो मैं इसे खरीद लूँगा।
- वह भक्त पास ही खड़े थे और उनसे दुकानदार का परिचय भी था। उन्होंने उस दुकानदार से कहा मैं इस आदमी को जानता हूँ, तुम इस कपड़े के दाम दे,दो।
- दुकानदार ने कपड़ा खरीदकर कीमत चुका दी। यह सब देखकर भक्त के एक साथी ने उनसे पूछाँ कि आपने ऐसा क्यो किया? इस पर भक्त बोले कि वह बेचारा बहुत गरीब है, गरीबी से तंग आकर उसे ऐसा करना पड़ा है।
- भक्त कहते हैं गरीब की तो हर तरह से सहायता ही करनी चाहिये। इस अवस्था में उसको चोर बतलाकर फ़साना अत्यन्त पाप है।
- भक्त की इस बात का चोर पर बड़ा प्रभाव पड़ा और वह भक्त की कुटिया पर जाकर अपनी गलती के लिए रोने लगा। उस दिन से वह चोर भी एक भक्त बन गया।
|
|
|
|
|