सिंहासन बत्तीसी चार: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('राजा विक्रमादित्य ने एक बार बड़ा ही आलीशान महल बनवा...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
Line 16: Line 16:


वह पुतली भी निकल गई। अगले दिन फिर राजा सिंहासन पर बैठने को उसकी ओर बढ़ा कि पांचवी पुतली लीलावती बोली, "राजन्! ठहरों। पहले मुझसे विक्रमादित्य के गुण सुन लो।"
वह पुतली भी निकल गई। अगले दिन फिर राजा सिंहासन पर बैठने को उसकी ओर बढ़ा कि पांचवी पुतली लीलावती बोली, "राजन्! ठहरों। पहले मुझसे विक्रमादित्य के गुण सुन लो।"
 
{{सिंहासन बत्तीसी}}


{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Revision as of 17:14, 24 February 2013

राजा विक्रमादित्य ने एक बार बड़ा ही आलीशान महल बनवाया। उसमें कहीं जवाहरात जड़े थे तो कहीं सोने और चांदी का काम हो रहा था। उसके द्वार पर नीलम के दो बड़े-बड़े नगीने लगे थे, जिससे किसी की नजर न लगे। उसमें सात खण्ड थे। उसके तैयार होने में बरसों लगे। जब वह तैयार हो गया तो दीवान ने जाकर राजा को खबर दी। एक ब्राह्मण को साथ लेकर राजा उसे देखने गया।

महल को देखकर ब्राह्मण ने कहा: महाराज! इसे तो मुझे दान में दे दो।

ब्राह्मण का इतना कहना था कि राजा ने उस महल को तुंरत उसे दान कर दिया। ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ अपने कुनबे के साथ उसमें रहने लगा।

एक दिन रात को लक्ष्मी आयी और बोली: मैं कहां गिरुं?

ब्राह्मण समझा कि कोई भूत है। वह डर के मारे वहां से भागा और राजा को सब हाल कह सुनाया।

राजा ने दीवान को बुलाकर कहा: महल का जितना मूल्य है, वह ब्राह्मण को दे दो।

इसके बाद राजा स्वयं जाकर महल में रहने लगा। रात को लक्ष्मी आयी और उसने वही सवाल किया। राजा ने तत्काल उतर दिया कि मेरे पलंग को छोड़कर जहां चाहो गिर पड़ो। राजा के इतना कहते ही सारे नगर पर सोना बरसा। सवेरे दीवान ने राजा को खबर दी तो राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जिसकी हद में जितना सोना हो, वह ले ले।

इतना कहकर पुतली बोली: महाराज! इतना था विक्रमादित्य प्रजा का हितकारी तुम किस तरह उसके सिंहासन पर बैठने की हिम्मत करते हो?

वह पुतली भी निकल गई। अगले दिन फिर राजा सिंहासन पर बैठने को उसकी ओर बढ़ा कि पांचवी पुतली लीलावती बोली, "राजन्! ठहरों। पहले मुझसे विक्रमादित्य के गुण सुन लो।"


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख