द्वेष -वैशेषिक दर्शन: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 20: | Line 20: | ||
[[Category:नया पन्ना]] | [[Category:नया पन्ना]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
Revision as of 12:43, 19 August 2011
महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।
द्वेष का स्वरूप
- अन्नंभट्ट के अनुसार क्रोध का ही दूसरा नाम द्वेष हैं।
- प्रशस्तपाद के अनुसार द्वेष वह गुण है, जिसके उत्पन्न होने पर प्राणी अपने को प्रज्वलित-सा अनुभव करता है। यह दु:खसापेक्ष अथवा स्मृतिसापेक्ष आत्ममन:संयोग से उत्पन्न होता है और प्रयत्न, स्मृति, धर्म और अधर्म का कारण है। द्रोह के भी कई भेद होते हैं, जैसे कि
- द्रोह- उपकारी के प्रति भी अपकार कर बैठना
- मन्यु- अपकारी व्यक्ति के प्रति अपकार करने में असमर्थ रहने पर अन्दर ही अन्दर उत्पन्न होने वाला द्वेष
- अक्षमा दूसरे के गुणों को न सह सकना अर्थात् असहिष्णुता
- अमर्ष- अपने गुणों के तिरस्कार की आशंका से दूसरे में गुणों के प्रति विद्वेष
- अभ्यसूया- अपकार को सहन करने में असमर्थ व्यक्ति के मन में चिरकाल तक रहने वाला द्वेष। यह सभी द्वेष पुन: स्वकीय और परकीय प्रकार से हो सकते हैं। स्वकीय द्वेष का ज्ञान मानस प्रत्यक्ष से और परकीय द्वेष का ज्ञान अनुमान आदि से होता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख