प्रयत्न -वैशेषिक दर्शन: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 12: | Line 12: | ||
[[Category:नया पन्ना]] | [[Category:नया पन्ना]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ |
Revision as of 12:45, 19 August 2011
महर्षि कणाद ने वैशेषिकसूत्र में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय नामक छ: पदार्थों का निर्देश किया और प्रशस्तपाद प्रभृति भाष्यकारों ने प्राय: कणाद के मन्तव्य का अनुसरण करते हुए पदार्थों का विश्लेषण किया।
प्रयत्न का स्वरूप
अन्नंभट्ट ने 'कृति' को प्रयत्न कहा है। प्रशस्तपाद के अनुसार प्रयत्न, संरम्भ और उत्साह पर्यायवाची शब्द हैं। प्रयत्न दो प्रकार का होता है- (1) जीवनपूर्वक और (2) इच्छाद्वेषपूर्वक। सुप्तावस्था में वर्तमान प्राणी के प्राण तथा अपान वायु के श्वास-प्रश्वास रूप व्यापार को चलाने वाला और जाग्रदवस्था में अन्त:करण को बाह्य इन्द्रियों से संयुक्त करने वाला प्रयत्न जीवनयोनि प्रयत्न कहलाता है। इसमें धर्म तथा अधर्म रूप निमित्त कारण की अपेक्षा करने वाला आत्मा तथा मन का संयोग असमवायिकारण है। हित की प्राप्ति और अहित की निवृत्ति करानेवाली शरीर की क्रियाओं का हेतु इच्छा या द्वेषमूलक प्रयत्न कहलाता है। इसमें इच्छा अथवा द्वेषरूप निमित्त कारण की अपेक्षा करनेवाला आत्मा तथा मन का संयोग असमवायिकारण है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख