बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-6 ब्राह्मण-3: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('*बृहदारण्यकोपनिषद के [[बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-6|अ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
*[[बृहदारण्यकोपनिषद]] के [[बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-6|अध्याय छठा]] का यह तीसरा ब्राह्मण है। | *[[बृहदारण्यकोपनिषद]] के [[बृहदारण्यकोपनिषद अध्याय-6|अध्याय छठा]] का यह तीसरा ब्राह्मण है। | ||
{{main|बृहदारण्यकोपनिषद}} | |||
*इस ब्राह्मण में मन्थ विद्या का वर्णन हैं। | *इस ब्राह्मण में मन्थ विद्या का वर्णन हैं। | ||
*इसका ज्ञान होने पर मनोकामना अवश्य पूरी होती है। | *इसका ज्ञान होने पर मनोकामना अवश्य पूरी होती है। |
Revision as of 11:13, 5 September 2011
- बृहदारण्यकोपनिषद के अध्याय छठा का यह तीसरा ब्राह्मण है।
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
- इस ब्राह्मण में मन्थ विद्या का वर्णन हैं।
- इसका ज्ञान होने पर मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
- पुत्र-लाभ, रोग-लाभ, जीवन में श्रीवृद्धि, मृत्यु-भय-निवारण आदि में इस विद्या से लाभ होता है।
- छान्दोग्य उपनिषद में पांचवें अध्याय के दूसरे खण्ड में इसका विवेचन किया गया है।
- इस विधि का उपयोग किसी ज्ञानी व्यक्ति द्वारा ही कराना चाहिए, अन्यथा अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है।
- मन्त्रों का पाठ शुद्ध होना अनिवार्य है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख