एपोफिस क्षुद्र ग्रह: Difference between revisions

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सौरमंडल में लाखों ऐसी छोटी-बड़ी चट्टाने हैं, जो सूर्य की परिक्रमा करते हुए कई बार पृथ्वी के निकट आ जाती हैं। अनुमान है कि कोई बीस लाख क्षुद्र ग्रह पृथ्वी के निकटवर्ती अंतरिक्ष में घूम रहे हैं। औसतन हर हफ्ते इस तरह का एक क्षुद्र पिंड पृथ्वी से चंद्रमा तक की दूरी दूरी के बीच से निकल जाता है। अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा के वैज्ञानिक उन आकाशीय पिंड़ों की भी हमेशा तलाश में रहते हैं, जो केवल कुछ मीटर ही बड़े हैं।  
सौरमंडल में लाखों ऐसी छोटी-बड़ी चट्टाने हैं, जो सूर्य की परिक्रमा करते हुए कई बार पृथ्वी के निकट आ जाती हैं। अनुमान है कि कोई बीस लाख क्षुद्र ग्रह पृथ्वी के निकटवर्ती अंतरिक्ष में घूम रहे हैं। औसतन हर हफ्ते इस तरह का एक क्षुद्र पिंड पृथ्वी से चंद्रमा तक की दूरी दूरी के बीच से निकल जाता है। अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा के वैज्ञानिक उन आकाशीय पिंड़ों की भी हमेशा तलाश में रहते हैं, जो केवल कुछ मीटर ही बड़े हैं।  


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इतने बड़े क्षुद्र ग्रह के धरती से टकराने पर यहां काफी नुकसान होगा। उससे लोगों की जानें जाएंगी। इसके टकराने से वातावरण में धूल काफी ऊपर तक जम जाएगी। धूल की वजह से कई सालों तक धरती पर पूरी रोशनी नहीं रहेगी। सूर्य की रोशनी नहीं मिलने का असर पौधों पर भी पड़ेगा और फसलें नहीं होंगी। फिर भी उम्मीद है कि इससे पूरी मानव जाती खत्म नहीं होगी। अगर ये समुद्र में भी गिरता है तो भयानक सुनामी का सामना करना पड़ेगा। इसमें भी करोड़ों जानें जाएंगी।
इतने बड़े क्षुद्र ग्रह के धरती से टकराने पर यहां काफी नुकसान होगा। उससे लोगों की जानें जाएंगी। इसके टकराने से वातावरण में धूल काफी ऊपर तक जम जाएगी। धूल की वजह से कई सालों तक धरती पर पूरी रोशनी नहीं रहेगी। सूर्य की रोशनी नहीं मिलने का असर पौधों पर भी पड़ेगा और फसलें नहीं होंगी। फिर भी उम्मीद है कि इससे पूरी मानव जाती खत्म नहीं होगी। अगर ये समुद्र में भी गिरता है तो भयानक सुनामी का सामना करना पड़ेगा। इसमें भी करोड़ों जानें जाएंगी।
 
[[चित्र:russian_scientists_apophis_asteroid.jpg|250px|thumb|एपोफिस पथ<br />Apophis path]]
विज्ञान के अनुसार पृथ्वी को अतीत में कई बार इस तरह के दूसरे पिंडों के साथ टक्कर झेलनी पड़ी है। इसी का नतीजा है जो धरती पर कई जगह बड़े गड्ढे हैं। इस तरह का सबसे पिछला प्रलयंकारी पिंड साढ़े छह करोड़ साल पहले टकराया था। उसने न जाने कितने जीव-जंतुओं की प्रजातियों का पृथ्वी पर से अंत कर दिया। समझा जाता है कि डायनासॉर इस टक्कर से लुप्त होने वाली सबसे प्रसिद्ध प्रजाति हैं। समस्या यह है कि हम नहीं जानते कि कब फिर ऐसा ही हो सकता है। वह लघु ग्रह सन फ्रांसिस्को की खाड़ी जितना बड़ा था और आज के मेक्सिको में गिरा था। इस टक्कर से जो विस्फोट हुआ, वह दस करोड़ मेगाटन टीएनटी के बराबर था। पृथ्वी पर वर्षों तक अंधेरा छाया रहा। धरती का व्यास 8000 मील का है।
विज्ञान के अनुसार पृथ्वी को अतीत में कई बार इस तरह के दूसरे पिंडों के साथ टक्कर झेलनी पड़ी है। इसी का नतीजा है जो धरती पर कई जगह बड़े गड्ढे हैं। इस तरह का सबसे पिछला प्रलयंकारी पिंड साढ़े छह करोड़ साल पहले टकराया था। उसने न जाने कितने जीव-जंतुओं की प्रजातियों का पृथ्वी पर से अंत कर दिया। समझा जाता है कि डायनासॉर इस टक्कर से लुप्त होने वाली सबसे प्रसिद्ध प्रजाति हैं। समस्या यह है कि हम नहीं जानते कि कब फिर ऐसा ही हो सकता है। वह लघु ग्रह सन फ्रांसिस्को की खाड़ी जितना बड़ा था और आज के मेक्सिको में गिरा था। इस टक्कर से जो विस्फोट हुआ, वह दस करोड़ मेगाटन टीएनटी के बराबर था। पृथ्वी पर वर्षों तक अंधेरा छाया रहा। धरती का व्यास 8000 मील का है।



Revision as of 10:17, 6 September 2011

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250px|thumb|एपोफिस
Apophis
सौरमंडल में लाखों ऐसी छोटी-बड़ी चट्टाने हैं, जो सूर्य की परिक्रमा करते हुए कई बार पृथ्वी के निकट आ जाती हैं। अनुमान है कि कोई बीस लाख क्षुद्र ग्रह पृथ्वी के निकटवर्ती अंतरिक्ष में घूम रहे हैं। औसतन हर हफ्ते इस तरह का एक क्षुद्र पिंड पृथ्वी से चंद्रमा तक की दूरी दूरी के बीच से निकल जाता है। अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा के वैज्ञानिक उन आकाशीय पिंड़ों की भी हमेशा तलाश में रहते हैं, जो केवल कुछ मीटर ही बड़े हैं।

ऐसा ही एक क्षुद्र ग्रह है एपोफिस। ये लगभग 275 मीटर चौड़ा (आधा मील व्यास) है। दिसंबर 2004 में वैज्ञानिकों ने एपोफिस क्षुद्र ग्रह का पता लगाया था। ये क्षुद्र ग्रह भी हमारे सौर्यमंडल में ग्रहों के साथ सूर्य के चक्कर लगा रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार ये ग्रह धीरे-धीरे धरती के करीब आता जा रहा है और शुक्रवार 13 अप्रैल 2029 को वह पहली बार पृथ्वी के काफी शक्तिशाली गुरूत्वीय केंद्र की होल से केवल 36 हजार किलोमीटर की दूरी पर से गुजरेगा। यह वही दूरी है, जहाँ रेडियो और टेलीविजन कार्यक्रम रिले करने वाले हमारे अधिकतर संचार उपग्रह भी पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं।

यदि उस पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का असर हो गया, तो क्षुद्र ग्रह सात वर्ष बाद 2036 में दुबारा आएगा और तब उसका पृथ्वी से टकराना लगभग निश्चित लगता है। वैज्ञानिक इसे ‘की-होल’ असर बता रहे हैं। खगोलविदों के अनुसार अंतरिक्ष में घूमने वाला क्षूद्रग्रह एपोफिस 37014.91 किमी/ प्रति घंटा की रफ्तार से पृथ्वी से टकरा सकता है। यदि यह टक्कर हुई, तो उसकी विस्फोटक शक्ति हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से भी दस लाख गुना अधिक होगी।

इतने बड़े क्षुद्र ग्रह के धरती से टकराने पर यहां काफी नुकसान होगा। उससे लोगों की जानें जाएंगी। इसके टकराने से वातावरण में धूल काफी ऊपर तक जम जाएगी। धूल की वजह से कई सालों तक धरती पर पूरी रोशनी नहीं रहेगी। सूर्य की रोशनी नहीं मिलने का असर पौधों पर भी पड़ेगा और फसलें नहीं होंगी। फिर भी उम्मीद है कि इससे पूरी मानव जाती खत्म नहीं होगी। अगर ये समुद्र में भी गिरता है तो भयानक सुनामी का सामना करना पड़ेगा। इसमें भी करोड़ों जानें जाएंगी। 250px|thumb|एपोफिस पथ
Apophis path
विज्ञान के अनुसार पृथ्वी को अतीत में कई बार इस तरह के दूसरे पिंडों के साथ टक्कर झेलनी पड़ी है। इसी का नतीजा है जो धरती पर कई जगह बड़े गड्ढे हैं। इस तरह का सबसे पिछला प्रलयंकारी पिंड साढ़े छह करोड़ साल पहले टकराया था। उसने न जाने कितने जीव-जंतुओं की प्रजातियों का पृथ्वी पर से अंत कर दिया। समझा जाता है कि डायनासॉर इस टक्कर से लुप्त होने वाली सबसे प्रसिद्ध प्रजाति हैं। समस्या यह है कि हम नहीं जानते कि कब फिर ऐसा ही हो सकता है। वह लघु ग्रह सन फ्रांसिस्को की खाड़ी जितना बड़ा था और आज के मेक्सिको में गिरा था। इस टक्कर से जो विस्फोट हुआ, वह दस करोड़ मेगाटन टीएनटी के बराबर था। पृथ्वी पर वर्षों तक अंधेरा छाया रहा। धरती का व्यास 8000 मील का है।

इस प्रलय को टालने के उद्देश्य से दुनियाभर के वैज्ञानिक इससे बचने के तरीके खोज रहे हैं। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अलावा ब्रिटेन और रूस के अंतरिक्ष वैज्ञानिक अपने-अपने सुझाव दे चुके हैं। रूसी वैज्ञानिकों ने उल्का के टकराने की स्थिति से बचने के लिए एक ऑपरेशन शुरू किया है। इसमें उल्का को उसके रास्ते से भटकाना शामिल है। नासा ने भी उल्का को रास्ते से हटाने के लिए अभियान शुरू किया है। ऐसा मानवरहित अंतरिक्ष यान को उल्का से टकराकर किया जा सकता है। इस विकल्प पर प्रयोग के लिए पिछले सप्ताह नासा ने प्रशांत महासागर के करीब 50 हजार किमी ऊपर उल्का ‘2011सीक्यू1’ को यान से टकराकर नष्ट किया। हो सकता है, एपोफिस के पहले पदार्पण के समय ही उसका रास्ता बदलने या उसे नष्ट करने में ऐसी सफलता मिल जाए कि उसके दुबारा लौटने का प्रश्न ही नहीं पैदा हो। फिलहाल दावे से कुछ कहा नहीं जा सकता। आगे क्या होगा फिलहाल ये एक राज है।


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