सुमुखि सवैया: Difference between revisions
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सुमुखि सवैया सात जगण और लघु-गुरु से | '''सुमुखि सवैया सात जगण और लघु-गुरु से [[छन्द]] बनता''' है; 11, 12 वर्णों पर यति होती है। [[मदिरा सवैया]] आदि में लघु वर्ण जोड़ने से यह शब्द बनता है। | ||
*"सखीन सों देत उराहनो नित्य, सो चित्त सँकोच सने लहिये।" <ref>देव : शब्द रसायन, प्र. 10 : पृष्ठ 152</ref> | |||
*"अनन्य हिमांशु, सदा तरुणीजन की परिरम्भण-शीतलता।"<ref> चन्द्राकार</ref> | *"अनन्य हिमांशु, सदा तरुणीजन की परिरम्भण-शीतलता।"<ref> चन्द्राकार</ref> | ||
Revision as of 05:51, 1 December 2011
सुमुखि सवैया सात जगण और लघु-गुरु से छन्द बनता है; 11, 12 वर्णों पर यति होती है। मदिरा सवैया आदि में लघु वर्ण जोड़ने से यह शब्द बनता है।
- "सखीन सों देत उराहनो नित्य, सो चित्त सँकोच सने लहिये।" [1]
- "अनन्य हिमांशु, सदा तरुणीजन की परिरम्भण-शीतलता।"[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 740।
बाहरी कड़ियाँ
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