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== '''श्री नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ'''
Subashtele जी,
नाकोडा एक अत्यंत प्राचीन तीर्थ स्थल है । भारत में रामायण और महाभारत काल तक तीर्थ स्थलों की प्रति हो चुकी थी । इन दो महाकाव्यों में तीर्थ शब्द का अनेक बार उल्लेख आया है । नाकोडा तीर्थ स्थल प्रमुख दो कारणों से ख्यात है - एक श्वेताम्बर जैन समाज के तेईसवे तीर्थकर भगवन पार्श्वनाथ की दसवी शताब्दी की प्रiचीनतम मूर्ति का मिलना और पांच सौ छह सौ वर्षो पूर्व उस चमत्कारी मूर्ति का जिनालय में स्थापित होना । मुख्य मंदिर की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा चूकी सिन्दरी के पास नाकोडा ग्राम से आई थी, अतः यह तीर्थ नाकोडा पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह क्षेत्र लगभग दो हज़ार वर्ष से जैन आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा है । यंहा के खेडपटन और महेवानगर अथवा विरमपुर । इस संधर्भ में जैन ऐतिहासिक परम्पराओं से जुड़े रहे है । दूसरा कारण - तीर्थ के अधियक देव श्री भैरव देव की स्थापना पार्श्वनाथ मंदिर के परिसर में होना है । जिनके देवी चमत्कारों के कारण हजारों लोग प्रतिवर्ष श्री नाकोडा भैरू क दर्शन के दर्शन करने यंहा आते है और मनवांछित फल पाते है । श्री नाकोडा अधियक भैरव देवजी की स्थापना विक्रम संवत १५०२ में आचार्यश्री किर्तिरत्न सूरिजी ने नाकोडा पार्श्वनाथ प्रभु की प्रति के समय की थी ।अत्यंत मनमोहक पीले पाषाण की महान विलक्षण प्रतिमा स्थापित है । जिसे श्री नाकोडा भैरव कहा जाता है । समीप हे श्री नाकोडा बाँध पर भैरव के दुसरे रूप की प्रतिमा भी स्थापित है, जिसे कालिया भैरव के नाम से जाना जाता है ।
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'''श्री नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ का इतिहास'''
किदवंतियों के आधार पर श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ की प्राचीनतम का उल्लेख महाभारत काल यानि भगवान श्री नेमीनाथ जी के समयकाल से जुड़ता है किन्तु आधारभूत ऐतिहासिक प्रमाण से इसकी प्राचीनता वि. सं. २००-३०० वर्ष पूर्व यानि २२००-२३०० वर्ष पूर्व की मानी जा सकती है । अतः श्री नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ राजस्थान के उन प्राचीन जैन तीर्थो में से एक है, जो २००० वर्ष से भी अधिक समय से इस क्षेत्र की खेड़पटन एवं महेवानगर की ऐतिहासिक सम्रद्ध, संस्कृतिक धरोहर का श्रेष्ठ प्रतीक है । महेवानगर के पूर्व में विरामपुर नगर के नाम से प्रसिद्ध था । विरमसेन ने विरमपुर तथा नाकोरसेन ने नाकोडा नगर बसाया था । आज भी बालोतरा- सीणधरी हाईवे पर नाकोडा ग्राम लूनी नदी के तट पर बसा हुआ है, जिसके पास से ही इस तीर्थ के मुलनायक भगवन की इस प्रतिमा की पुनः प्रति तीर्थ के संस्थापक आचार्य श्री किर्तिरत्नसुरिजी द्वारा वि. स. १०९० व १२०५ का उल्लेख है ।


तीर्थ ने अनेक बार उत्थान एवं पतन को आत्मसात किया है । विधमियों की विध्वनंस्नात्मक- वृत्ति में वि.सं. १५०० के पूर्व इस क्षेत्र के कई स्थानों को नष्ट किया है, जिसका दुष्प्रभाव यंहा पर भी हुआ । लेकिन सवंत १५०२ की प्रति के पश्चात पुन्हः यंहा प्रगति का प्रारम्भ हुआ और वर्तमान में तीनो मंदिरों का परिवर्तित व परिवर्धित रूप इसी काल से सम्बंधित है संवत १९५९ - ६० में साध्वी प्रवर्तिनी श्री सुन्दरश्रीजी म.सा. ने इस तीर्थ के पुन्रोधार का काम प्रारंभ कराया और गुरु भ्राता आचार्य श्री हिमाचलसूरीजी भी उनके साथ जुड़ गये । इनके अथक प्रयासों से आज ये तीर्थ विकास के पथ पर निरंतर आगे बढता विश्व भर में ख्याति प्राप्त क्र चूका है । मुलनायक श्री नाकोडा पार्श्वनाथजी के मुख्या मंदिर के अलावा प्रथम तीर्थकर परमात्मा श्री आदिनाथ प्रभु एवं तीसरा मंदिर सोलवें तीर्थकर परमात्मा श्री शांतिनाथ प्रभु का है । इसके अतिरिक्त अनेक देवल - देवलियें ददावाडियों एवं गुरूमंदिर है जो मूर्तिपूजक परंपरा के सभी गछो को एक संगठित रूप से संयोजे हुए है ।
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'''II तीर्थ के अधिनायक देव श्री भैरव देव II
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तीर्थ के अधिनायक देव श्री भैरव देव की मूल मंदिर में अत्यंत चमत्कारी प्रतिमा है,जिसके प्रभाव से देश के कोने कोने से लाखों यात्री प्रतिवर्ष यंहा दर्शनार्थ आकर स्वयं को कृतकृत्य अनुभव करते है । श्री भैरव देव के नाम व प्रभाव से देशभर में उनके नाम के अनेक धार्मिक, सामाजिक और व्यावसायिक izfr"kBku कार्यरत है । वेसे तीनो मंदिर वास्तुकला के आद्भुत नमूने है । चौमुखजी कांच का मंदिर, महावीर स्मृति भवन, शांतिनाथ जी के मंदिर में तीर्थकरों के पूर्व भवों के पट्ट भी अत्यंत कलात्मक व दर्शनीय है ।
'''कैसे पहुंचे'''
 
�यह तीर्थ  जोधपुर से ११६ की.मी. तथा बालोतरा से १२ की.मी. (उत्तरी रेलवे स्टेशन) जोधपुर बाड़मेर मुख्य रेल मार्ग पर स्थित है | तीर्थ स्थान प्राय: सभी केंद्र स्थानों से पक्की सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है | श्री नाकोडा तीर्थ ट्रस्ट यात्रियों के लिए निवास, भोजन, लायब्ररी, औषधालय आदि की सभी प्रकार की व्यवस्था सहर्ष करता है |
'''मोटा पाठ'''
मंदिर के खुलने का समय
गर्मी चैत्र सुदी एकम से कार्तिक वदी अमावस तक �प्रातः : 5:30 बजे से �रात्रि : 10:00 बजे तक
सर्दी कार्तिक सुद एकम से चैत्रवदी अमावस तक�प्रातः : 6:00 बजे से �रात्रि : 9:30 बजे तक विशेष : ध्रत चढ़ावे का भाव 5/- रु मण है |
गर्मी सर्दी वासक्षेप पूजा �प्रातः 5:30 से 7:30 बजे तक प्रातः 6:00 से 8:00 बजे तक पक्षाल �8:00 बजे 8:30 को पूजा बोली �8:15 से 8:30 तक 8:45 से 9:00 तक पूजा �प्रातः 8:00 से 4:00 बजे तक प्रातः 9:00 से 4:00 बजे तक प्रातः आरती �10:30 से 11:30 तक 10:30 से 11:30 तक सायं आरती�सूर्यास्त उपरान्त सूर्यास्त उपरान्त नोट : पक्षाल / पूजा / आरती / के चढ़ावे 15 मिनट पूर्व शुरू हो जाते है |
[[चित्र:उदाहरण.jpg]]

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