गुड़ का सनीचर -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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तीसरा वराह अवतार: वराह शूकर (सूअर) को कहते हैं। मछली की तरह गर्दन न घुमा सकने वाला, लेकिन पूरी तरह धरती पर रहने वाला जल प्रेमी जानवर है। | तीसरा वराह अवतार: वराह शूकर (सूअर) को कहते हैं। मछली की तरह गर्दन न घुमा सकने वाला, लेकिन पूरी तरह धरती पर रहने वाला जल प्रेमी जानवर है। | ||
नरसिंह अवतार: यह आधा पशु और आधा मनुष्य था। यह सोचा गया होगा कि मनुष्य अपने आदि रूप में पशुओं जैसा ही रहा होगा। | नरसिंह अवतार: यह आधा पशु और आधा मनुष्य था। यह सोचा गया होगा कि मनुष्य अपने आदि रूप में पशुओं जैसा ही रहा होगा। | ||
वामन अवतार: जिनका बौने क़द के आदमी के रूप में उल्लेख है और इन्होंने तीन क़दमों में धरती नाप दी। इससे यही स्पष्ट होता है कि शुरुआत का मनुष्य क़द में छोटा था और उसने धरती के अनेक स्थानों पर विचरण करना शुरू कर दिया था। वैज्ञानिक शोध भी यही बताते हैं कि मनुष्य बहुत शुरुआत में क़द में छोटा ही रहा होगा। 1974 में 40 लाख साल पुराना 'लूसी' फ़ॉसिल,<ref>[http://www.bbc.co.uk/sn/prehistoric_life/human/human_evolution/mother_of_man1.shtml ]</ref><ref>[http://www.youtube.com/watch?v=zv0SE52f2eQ ]</ref>1992 में 'आर्दी' फ़ॉसिल,<ref>[http://news.bbc.co.uk/2/hi/8285180.stm ]</ref> और 1983 'इदा' फ़ॉसिल<ref>[http://www.youtube.com/watch?v=ygljRTbxdc4&feature=related ]</ref><ref>[http://www.guardian.co.uk/science/2009/may/19/fossil-ida-missing-link-discovery ]</ref> मिलने से काफ़ी हद तक वैज्ञानिकों को यही नतीजे प्राप्त हुए। खोज भारत में भी हो सकती थीं लेकिन प्राचीन काल से ही भारत में वैज्ञानिकों की उपेक्षा हुई है। जो आज भी हो रही है। सभी जानते हैं कि भारत सरकार ने हरगोविन्द खुराना को एक प्रयोगशाला उपलब्ध करवाने से मना कर दिया था। इस कारण वे अमेरिका चले गये और उन्हें जैविक गुण-धर्म (जीन्स) की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला। आजकल कोई | वामन अवतार: जिनका बौने क़द के आदमी के रूप में उल्लेख है और इन्होंने तीन क़दमों में धरती नाप दी। इससे यही स्पष्ट होता है कि शुरुआत का मनुष्य क़द में छोटा था और उसने धरती के अनेक स्थानों पर विचरण करना शुरू कर दिया था। वैज्ञानिक शोध भी यही बताते हैं कि मनुष्य बहुत शुरुआत में क़द में छोटा ही रहा होगा। 1974 में 40 लाख साल पुराना 'लूसी' फ़ॉसिल,<ref>[http://www.bbc.co.uk/sn/prehistoric_life/human/human_evolution/mother_of_man1.shtml Mother of man - 3.2 million years ago]</ref><ref>[http://www.youtube.com/watch?v=zv0SE52f2eQ Evolution Finding Lucy Becoming a Fossil]</ref>1992 में 'आर्दी' फ़ॉसिल,<ref>[http://news.bbc.co.uk/2/hi/8285180.stm Fossil finds extend human story]</ref> और 1983 'इदा' फ़ॉसिल<ref>[http://www.youtube.com/watch?v=ygljRTbxdc4&feature=related he Missing Link: Most Complete Fossil In Primate Evolution]</ref><ref>[http://www.guardian.co.uk/science/2009/may/19/fossil-ida-missing-link-discovery Deal in Hamburg bar led scientist to Ida fossil, the 'eighth wonder of the world']</ref> मिलने से काफ़ी हद तक वैज्ञानिकों को यही नतीजे प्राप्त हुए। खोज भारत में भी हो सकती थीं लेकिन प्राचीन काल से ही भारत में वैज्ञानिकों की उपेक्षा हुई है। जो आज भी हो रही है। सभी जानते हैं कि भारत सरकार ने हरगोविन्द खुराना को एक प्रयोगशाला उपलब्ध करवाने से मना कर दिया था। इस कारण वे अमेरिका चले गये और उन्हें जैविक गुण-धर्म (जीन्स) की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला। आजकल कोई वैज्ञानिक नहीं बनना चाहता सब जैसे एम.बी.ए ही करना चाहते हैं। | ||
प्राचीन भारत में वैज्ञानिकों के पृथ्वी पर क्रमिक विकास को परिभाषित करने वाले यह शोध धरे के धरे रह गये और लोक-कथावाचकों और धार्मिक-कथावाचकों द्वारा बनाए गए सुरुचिपूर्ण कथानकों ने बाज़ी जीत ली और प्रचलन में भी अवतारों की चमत्कारिक छवि ही बनी रही। जनता इन अवतारों की कथाएँ रस ले कर बड़े आनन्द से सुनती थी जबकि वैज्ञानिकों की बातें बेहद गंभीर और नीरस होती थीं। कथाकारों को राजाश्रय भी था और सामान्य जनता का समर्थन भी इसलिए बेचारे वैज्ञानिक कभी भी अपने बात को स्थापित नहीं कर पाए। | प्राचीन भारत में वैज्ञानिकों के पृथ्वी पर क्रमिक विकास को परिभाषित करने वाले यह शोध धरे के धरे रह गये और लोक-कथावाचकों और धार्मिक-कथावाचकों द्वारा बनाए गए सुरुचिपूर्ण कथानकों ने बाज़ी जीत ली और प्रचलन में भी अवतारों की चमत्कारिक छवि ही बनी रही। जनता इन अवतारों की कथाएँ रस ले कर बड़े आनन्द से सुनती थी जबकि वैज्ञानिकों की बातें बेहद गंभीर और नीरस होती थीं। कथाकारों को राजाश्रय भी था और सामान्य जनता का समर्थन भी इसलिए बेचारे वैज्ञानिक कभी भी अपने बात को स्थापित नहीं कर पाए। |
Revision as of 15:59, 24 March 2012
चित्र:Icon-edit.gif | यह लेख निर्माणाधीन है और अभी अधूरा है। सामग्री जोड़े जाने की आवश्यकता है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" भी आमंत्रित हैं। इस लेख का अंतिम संपादन दिनांक 24-03-2012 को सदस्य: गोविन्द राम द्वारा हुआ |
गुड़ का 'सनीचर' -आदित्य चौधरी "पंडिज्जी ! पहले पुराना हिसाब साफ़ करो फिर गुड़ की भेली दूँगा। पुराना ही पैसा बहुत बक़ाया है। ऐसे तो मेरी दुकान ही बंद हो जाएगी" |