Template:साप्ताहिक सम्पादकीय: Difference between revisions

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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 19 मई 2012|साप्ताहिक सम्पादकीय<small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font>
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[[चित्र:Pyaz-01.jpg|right|border|110px|link=भारतकोश सम्पादकीय 12 मई 2012]]
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[[भारतकोश सम्पादकीय 12 मई 2012|काम की खुन्दक]]
[[भारतकोश सम्पादकीय 19 मई 2012|दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान]]
       "प्याज़ खाने में क्या है कितनी भी खा जाओ। आप लोग तो बिना बात प्याज़ का हौव्वा बना रहे हैं।" छोटे ने खुन्दक में कहा।
       ऐसा कैसे हो सकता है कि न कोई मित्र है और न कोई शत्रु है ? न कोई मान है, न कोई अपमान है ! मित्र तो मित्र होता है, शत्रु तो शत्रु होता है। जो मित्र है, वह शत्रु कैसे हो सकता है और जो शत्रु है, वह मित्र कैसे हो सकता है ? ...[[भारतकोश सम्पादकीय 19 मई 2012|पूरा पढ़ें]]
"अच्छा ! तो तू कितनी खा जाएगा ?" पंडित जी बोले
"मैं... मेरा क्या है मैं तो सौ भी खा जाऊँगा"
"क्या ? सौ प्याज़ ?...[[भारतकोश सम्पादकीय 12 मई 2012|पूरा पढ़ें]]
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| [[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|बस एक चान्स !]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 12 मई 2012|काम की खुन्दक]] ·
| [[भारतकोश सम्पादकीय 28 अप्रॅल 2012|मैं तो एक भूत हूँ]]  
| [[भारतकोश सम्पादकीय 5 मई 2012|बस एक चान्स !]]  
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Revision as of 12:59, 19 May 2012

साप्ताहिक सम्पादकीय-आदित्य चौधरी

border|120px|right|link=भारतकोश सम्पादकीय 19 मई 2012

दोस्ती-दुश्मनी और मान-अपमान
      ऐसा कैसे हो सकता है कि न कोई मित्र है और न कोई शत्रु है ? न कोई मान है, न कोई अपमान है ! मित्र तो मित्र होता है, शत्रु तो शत्रु होता है। जो मित्र है, वह शत्रु कैसे हो सकता है और जो शत्रु है, वह मित्र कैसे हो सकता है ? ...पूरा पढ़ें

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