User talk:डा.राजेंद्र तेला: Difference between revisions
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== पूजा-अर्चना == | |||
संसार का सृजन करने वाले एवं उसे चलाने वाले परमात्मा को भिन्न नामों से पुकारा जाता है अपनी अपनी आस्था और धर्म के अनुसार राम ,कृष्ण,शिव,जीसस क्राइस्ट,पैगम्बर मोहम्मद,गुरु नानक,गौतम बुद्ध ,महावीर ,जोराष्ट्र ,भिन्न भिन्न सम्प्रादायों के गुरुओं आदि के नामों से धर्मावलम्बी उन्हें याद करते उनका नमन व् अपने धार्मिक मूल्यों एवं आस्था के अनुसार | |||
उनकी पूजा करते हैं एवं सम्मान प्रकट करते है | |||
पर पूजा,अर्चना अर्थ हीन हो जाती है अगर हम उनके बताये रास्ते पर नहीं चलते . | |||
हमारे कार्य कलापों एवं व्यवहार में उनके द्वारा दी गयी शिक्षा अगर परिलक्षित नहीं होती हो तो ये अधर्म कहलायेगा | |||
अपने ईश या इष्ट को प्रसन्न करने के लिए पूजा ,अर्चना से अधिक आवश्यक है,उनके द्वारा स्थापित मूल्यों एवं सत्य मार्ग पर चलना . | |||
अन्यथा पूजा,म्रत्यु और अनहोनी से बचने के लिए उन्हें याद करने से अधिक नहीं होती है. | |||
मात्र दिखावा भर रह जाती है और स्वयं को धोखा देने के सामान होती है | |||
संसार का सृजन करने वाले एवं उसे चलाने वाला परमात्मा अगर है ,तो ध्यान रहना चाहिए वो सब देखता है | |||
ऐसा कार्य या व्यवहार जो उसे मान्य नहीं है ,उसकी दृष्टि से छुपा नहीं रहता | |||
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Revision as of 05:51, 20 November 2012
क्रोध
हर ज्ञानी,महापुरुष ने सदा एक ही बात कही है क्रोध नहीं करना चाहिए . ग्रन्थ साक्षी हैं ,देवताओं से लेकर महापुरुष,योगी और महाऋषी भी क्रोध से नहीं बच सके . क्रोध मनुष्य के स्वभाव का अभिन्न अंग है. परमात्मा द्वारा दी हुयी इस भावना का अर्थ असहमती की अभिव्यक्ति ही तो है पर उस में विवेक खोना ,जिह्वा एवं स्वयं पर से नियंत्रण खोना घातक होता है. इसकी परिणीति अनयंत्रित व्यवहार और कार्य में होती है .जिस से बहुत भारी अनर्थ हो सकता है ,सब को निरंतर ऐसा होते दिखता भी है. अतः क्रोध करना अनुचित तो है ही ,पर साथ में क्रोध आने पर,अपना विवेक बनाए रखना,जिह्वा और मन मष्तिष्क पर नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है. असहमती अवश्य प्रकट करनी चाहिए पर विवेक पूर्ण तरीके से . 15-11-2011-20 डा राजेंद्र तेला,"निरंतर
पूजा-अर्चना
संसार का सृजन करने वाले एवं उसे चलाने वाले परमात्मा को भिन्न नामों से पुकारा जाता है अपनी अपनी आस्था और धर्म के अनुसार राम ,कृष्ण,शिव,जीसस क्राइस्ट,पैगम्बर मोहम्मद,गुरु नानक,गौतम बुद्ध ,महावीर ,जोराष्ट्र ,भिन्न भिन्न सम्प्रादायों के गुरुओं आदि के नामों से धर्मावलम्बी उन्हें याद करते उनका नमन व् अपने धार्मिक मूल्यों एवं आस्था के अनुसार उनकी पूजा करते हैं एवं सम्मान प्रकट करते है पर पूजा,अर्चना अर्थ हीन हो जाती है अगर हम उनके बताये रास्ते पर नहीं चलते . हमारे कार्य कलापों एवं व्यवहार में उनके द्वारा दी गयी शिक्षा अगर परिलक्षित नहीं होती हो तो ये अधर्म कहलायेगा अपने ईश या इष्ट को प्रसन्न करने के लिए पूजा ,अर्चना से अधिक आवश्यक है,उनके द्वारा स्थापित मूल्यों एवं सत्य मार्ग पर चलना . अन्यथा पूजा,म्रत्यु और अनहोनी से बचने के लिए उन्हें याद करने से अधिक नहीं होती है. मात्र दिखावा भर रह जाती है और स्वयं को धोखा देने के सामान होती है संसार का सृजन करने वाले एवं उसे चलाने वाला परमात्मा अगर है ,तो ध्यान रहना चाहिए वो सब देखता है ऐसा कार्य या व्यवहार जो उसे मान्य नहीं है ,उसकी दृष्टि से छुपा नहीं रहता 15-11-2011-22 डा राजेंद्र तेला,"निरंतर