सिंहासन बत्तीसी सत्ताईस: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
एक बार विक्रमादित्य से किसी ने कहा कि इंद्र के बराबर कोई राजा नहीं है। यह सुनकर विक्रमादित्य ने अपने वीरों को बुलाया और उन्हें साथ लेकर इंद्रपुरी पहुंचा। इंद्र ने उसका स्वागत किया और आने का कारण पूछा।  
[[सिंहासन बत्तीसी]] एक [[लोककथा]] संग्रह है। [[विक्रमादित्य|महाराजा विक्रमादित्य]] भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर [[प्रकाश]] डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।
 
==सिंहासन बत्तीसी सत्ताईस==
<poem style="background:#fbf8df; padding:15px; font-size:14px; border:1px solid #003333; border-radius:5px">
एक बार विक्रमादित्य से किसी ने कहा कि [[इंद्र]] के बराबर कोई राजा नहीं है। यह सुनकर विक्रमादित्य ने अपने वीरों को बुलाया और उन्हें साथ लेकर इंद्रपुरी पहुंचा। इंद्र ने उसका स्वागत किया और आने का कारण पूछा।  
''राजा ने कहा'': मैं आपके दर्शन करने आया हूं।  
''राजा ने कहा'': मैं आपके दर्शन करने आया हूं।  
''इंद्र ने प्रसन्न होकर उसे अपना मुकुट तथा विमान दिया और कहा'': जो तुम्हारे सिंहासन को बुरी निगाह से देखेगा, वह अंधा हो जायगा।
''इंद्र ने प्रसन्न होकर उसे अपना मुकुट तथा विमान दिया और कहा'': जो तुम्हारे सिंहासन को बुरी निगाह से देखेगा, वह अंधा हो जायगा।
 
राजा विदा होकर अपने नगर में आया।
राजा विदा होकर अपने नगर में आया। .......
 
राजा इन्द्रपुरी पहुंचा।
राजा इन्द्रपुरी पहुंचा।
पुतली कहानी सुना रही थी कि इतने में राजा भोज सिंहासन पर पैर रखकर खड़ा हो गया। खड़े होते ही वह अंधा हो गया और उसके पैर वहीं चिपक गये। उसने पैर हटाने चाहे, पर हटे ही नहीं। इस पर सब पुतलियां खिलखिलाकर हंस पड़ीं। राजा भोज बहुत पछताया।  
पुतली कहानी सुना रही थी कि इतने में राजा भोज सिंहासन पर पैर रखकर खड़ा हो गया। खड़े होते ही वह अंधा हो गया और उसके पैर वहीं चिपक गये। उसने पैर हटाने चाहे, पर हटे ही नहीं। इस पर सब पुतलियां खिलखिलाकर हंस पड़ीं। राजा भोज बहुत पछताया।  
''उसने पुतलियों से पूछा'': मुझे बताओ, अब मैं क्या करुं?  
''उसने पुतलियों से पूछा'': मुझे बताओ, अब मैं क्या करुं?  
''उन्होंने कहा'': विक्रमादित्य का नाम लो। तब भला होगा।  
''उन्होंने कहा'': विक्रमादित्य का नाम लो। तब भला होगा।  
राजा भोज ने जैसे ही विक्रमादित्य का नाम लिया कि उसे दिखने लगा और पैर भी उखड़ गये।
''पुतली बोली''; हे राजन्! इसलिए से मैं कहती हूं कि तुम इस सिंहासन पर मत बैठो, नहीं तो मुसीबत में पड़ोगे।
अगले दिन राजा उसकी ओर गया तो मनमोहनी नाम की अट्ठाईसवी पुतली ने उसे रोककर यह कहानी सुनायी:


राजा भोज ने जैसे ही विक्रमादित्य का नाम लिया कि उसे दीखने लगा और पैर भी उखड़ गये।
;आगे पढ़ने के लिए [[सिंहासन बत्तीसी अट्ठाईस]] पर जाएँ
 
</poem>
''पुतली बोली''; हे राजन्! इसलिए से मैं कहती हूं कि तुम इस सिंहासन पर मत बैठो, नहीं तो मुसीबत में पड़ोगे।


अगले दिन राजा उसकी ओर गया तो मनमोहनी नाम की अट्ठाईसवीं पुतली ने उसे रोककर यह कहानी सुनायी:
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{सिंहासन बत्तीसी}}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{सिंहासन बत्तीसी}}
[[Category:सिंहासन बत्तीसी]]  
[[Category:सिंहासन बत्तीसी]]  
[[Category:कहानी]]   
[[Category:लोककथाएँ]]   
[[Category:कथा साहित्य]]   
[[Category:कथा साहित्य]]   
[[Category:कथा साहित्य कोश]]
[[Category:कथा साहित्य कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 11:23, 26 February 2013

सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।

सिंहासन बत्तीसी सत्ताईस

एक बार विक्रमादित्य से किसी ने कहा कि इंद्र के बराबर कोई राजा नहीं है। यह सुनकर विक्रमादित्य ने अपने वीरों को बुलाया और उन्हें साथ लेकर इंद्रपुरी पहुंचा। इंद्र ने उसका स्वागत किया और आने का कारण पूछा।
राजा ने कहा: मैं आपके दर्शन करने आया हूं।
इंद्र ने प्रसन्न होकर उसे अपना मुकुट तथा विमान दिया और कहा: जो तुम्हारे सिंहासन को बुरी निगाह से देखेगा, वह अंधा हो जायगा।
राजा विदा होकर अपने नगर में आया।
राजा इन्द्रपुरी पहुंचा।
पुतली कहानी सुना रही थी कि इतने में राजा भोज सिंहासन पर पैर रखकर खड़ा हो गया। खड़े होते ही वह अंधा हो गया और उसके पैर वहीं चिपक गये। उसने पैर हटाने चाहे, पर हटे ही नहीं। इस पर सब पुतलियां खिलखिलाकर हंस पड़ीं। राजा भोज बहुत पछताया।
उसने पुतलियों से पूछा: मुझे बताओ, अब मैं क्या करुं?
उन्होंने कहा: विक्रमादित्य का नाम लो। तब भला होगा।
राजा भोज ने जैसे ही विक्रमादित्य का नाम लिया कि उसे दिखने लगा और पैर भी उखड़ गये।
पुतली बोली; हे राजन्! इसलिए से मैं कहती हूं कि तुम इस सिंहासन पर मत बैठो, नहीं तो मुसीबत में पड़ोगे।
अगले दिन राजा उसकी ओर गया तो मनमोहनी नाम की अट्ठाईसवी पुतली ने उसे रोककर यह कहानी सुनायी:

आगे पढ़ने के लिए सिंहासन बत्तीसी अट्ठाईस पर जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख