वीरेन्द्र खरे 'अकेला': Difference between revisions
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प्रकाशित कृतियों के अलावा ‘अकेला’ जी की बहुत सी रचनाएं वसुधा, वागर्थ, कथादेश, महकता आँचल, सृजन-पथ, राष्ट्रधर्म, कादम्बिनी जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में भी समय-समय पर प्रकाशित होकर प्रशंसित होती रही हैं । उन्होंने कवि-सम्मेलनों, मुशायरों, काव्य-गोष्ठियों तथा आकाशवाणी के माध्यम से भी काफी लोकप्रियता हासिल की है । देश की अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा उन्हें पुरस्कृत एवं सम्मानित भी किया गया है । | प्रकाशित कृतियों के अलावा ‘अकेला’ जी की बहुत सी रचनाएं वसुधा, वागर्थ, कथादेश, महकता आँचल, सृजन-पथ, राष्ट्रधर्म, कादम्बिनी जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में भी समय-समय पर प्रकाशित होकर प्रशंसित होती रही हैं । उन्होंने कवि-सम्मेलनों, मुशायरों, काव्य-गोष्ठियों तथा आकाशवाणी के माध्यम से भी काफी लोकप्रियता हासिल की है । देश की अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा उन्हें पुरस्कृत एवं सम्मानित भी किया गया है । | ||
अपनी ग़ज़लों के तीखे तेवरों के कारण वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ बुन्देलखण्ड के दुष्यंत कुमार कहे जाते हैं । उनकी ग़ज़लों में जीवन की सच्ची-तपती-सुलगती आग पूरी तेजस्विता के साथ विद्यमान है । वे देश और समाज में व्याप्त दुख-दर्दों, अभावों, असफलताओं, विसंगतियों और छल-छद्मों को अनूठे अंदाज़ में पेश कर अपने पाठकों में विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का हौसला भर देते हैं । ‘अकेला‘ जी की ग़ज़लों की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए प्रसिद्ध कवि डॉ. कुंअर बेचैन लिखते हैं-“ ‘अकेला’ जी की ग़ज़लें विविध विषयों पर होने के साथ साथ बहर आदि की दृष्टि से निष्कलंक हैं, उनमें सहज प्रवाह भी है और अमिट प्रभाव भी । ये ग़ज़लें ग़ज़ल की यशस्वी परम्परा में रहकर नए विषयों तथा नए प्रतीकों की खोज करती हैं । इनमें यथार्थ की सच्चाई और कल्पना की ऊँचाई दोनों के दर्शन होते हैं ।” इसी प्रकार ’अकेला’ जी की ग़ज़ल के प्रभाव का उद्घाटन करते हुए इस दौर के शहंशाहे ग़ज़ल डॉ. बशीर बद्र कहते हैं-“अकेला की ग़ज़ल वो लहर है जो ग़ज़ल के समन्दर में नई हलचल पैदा करेगी ।” पद्मश्री डॉ. गोपालदास ‘नीरज’ कहते हैं कि-“ अकेला के शेरों में यह ख़ूबी है कि वे खुद-ब-खुद होठों पर आ जाते हैं । ” चर्चित व्यंग्यकार माणिक वर्मा एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. देवव्रत जोशी ने भी अपनी अपनी टिप्पणियों में ‘अकेला’ को दुष्यत कुमार के बाद को उल्लेखनीय शायर निरूपित किया है। स्पष्ट है कि वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ ने हिन्दी ग़ज़ल को नए विषय, नई सोच, नए प्रतीक और सम्यक शिल्पगत कसावट देकर इस विधा की उल्लेखनीय सेवा की है और इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान क़ायम की है । | अपनी ग़ज़लों के तीखे तेवरों के कारण वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ बुन्देलखण्ड के दुष्यंत कुमार कहे जाते हैं । उनकी ग़ज़लों में जीवन की सच्ची-तपती-सुलगती आग पूरी तेजस्विता के साथ विद्यमान है । वे देश और समाज में व्याप्त दुख-दर्दों, अभावों, असफलताओं, विसंगतियों और छल-छद्मों को अनूठे अंदाज़ में पेश कर अपने पाठकों में विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का हौसला भर देते हैं । ‘अकेला‘ जी की ग़ज़लों की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए प्रसिद्ध कवि डॉ. कुंअर बेचैन लिखते हैं-“ ‘अकेला’ जी की ग़ज़लें विविध विषयों पर होने के साथ साथ बहर आदि की दृष्टि से निष्कलंक हैं, उनमें सहज प्रवाह भी है और अमिट प्रभाव भी । ये ग़ज़लें ग़ज़ल की यशस्वी परम्परा में रहकर नए विषयों तथा नए प्रतीकों की खोज करती हैं । इनमें यथार्थ की सच्चाई और कल्पना की ऊँचाई दोनों के दर्शन होते हैं ।” इसी प्रकार ’अकेला’ जी की ग़ज़ल के प्रभाव का उद्घाटन करते हुए इस दौर के शहंशाहे ग़ज़ल डॉ. बशीर बद्र कहते हैं-“अकेला की ग़ज़ल वो लहर है जो ग़ज़ल के समन्दर में नई हलचल पैदा करेगी ।” पद्मश्री डॉ. गोपालदास ‘नीरज’ कहते हैं कि-“ अकेला के शेरों में यह ख़ूबी है कि वे खुद-ब-खुद होठों पर आ जाते हैं । ” चर्चित व्यंग्यकार माणिक वर्मा एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. देवव्रत जोशी ने भी अपनी अपनी टिप्पणियों में ‘अकेला’ को दुष्यत कुमार के बाद को उल्लेखनीय शायर निरूपित किया है। स्पष्ट है कि वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ ने हिन्दी ग़ज़ल को नए विषय, नई सोच, नए प्रतीक और सम्यक शिल्पगत कसावट देकर इस विधा की उल्लेखनीय सेवा की है और इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान क़ायम की है । उनके कुछ अच्छे और चर्चित शेर ही यहां उदाहरणार्थ प्रस्तुत किये जा सकते हैं- | ||
अदावत दिल में रखते हैं मगर यारी दिखाते हैं | अदावत दिल में रखते हैं मगर यारी दिखाते हैं | ||
न जाने लोग भी क्या क्या अदाकारी दिखाते है | न जाने लोग भी क्या क्या अदाकारी दिखाते है | ||
हुआ सवेरा हमें आफ़ताब मिल ही गया | हुआ सवेरा हमें आफ़ताब मिल ही गया | ||
अँधेरी शब को करारा जवाब मिल ही गया | अँधेरी शब को करारा जवाब मिल ही गया | ||
झूठ-मक्कारी तजें नेता जी मुमकिन ही कहाँ | |||
नाचना, गाना-बजाना कैसे किन्नर छोड़ दे | नाचना, गाना-बजाना कैसे किन्नर छोड़ दे | ||
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कि जिन पर रोक है वो काम होते हैं धड़ल्ले से | कि जिन पर रोक है वो काम होते हैं धड़ल्ले से | ||
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पहले तेरी जेब टटोली जाएगी | |||
फिर यारी की भाषा बोली जाएगी | फिर यारी की भाषा बोली जाएगी | ||
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सारा दरिया है मिरे किस काम का | सारा दरिया है मिरे किस काम का | ||
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फिर ज़माने में कहीं रूसवा मेरी चाहत न हो | |||
करके वादा भूलने की तुझको भी आदत न हो | करके वादा भूलने की तुझको भी आदत न हो | ||
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माना वो क़ातिल है पर बेदाग़ बरी हो जाएगा | माना वो क़ातिल है पर बेदाग़ बरी हो जाएगा | ||
पैसा हो तो सब सम्भव है अपने देश महान में | पैसा हो तो सब सम्भव है अपने देश महान में | ||
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एक रूपे की तीन अठन्नी मांगेगी | एक रूपे की तीन अठन्नी मांगेगी | ||
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पर्चे ही लीक हों तो कुछ काम बन सकेगा | पर्चे ही लीक हों तो कुछ काम बन सकेगा | ||
हैं इम्तहान सर पे तैयारियाँ नहीं हैं | हैं इम्तहान सर पे तैयारियाँ नहीं हैं | ||
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पाँच सौ का धरा मेज़ पर | पाँच सौ का धरा मेज़ पर |
Revision as of 11:49, 6 April 2013
प्रगतिशील कवि वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ का जन्म 18 अगस्त सन् 1968 को छतरपुर (म.प्र.) के ठेठ देहाती आदिवासी बहुल पहाड़ों एवं जंगलों से घिरे छोटे से गांव किशनगढ़ में एक मध्यमवर्गीय कायस्थ परिवार में हुआ । अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से इतिहास में एम. ए. एवं बी. एड. करने के बाद वे लम्बे समय तक छतरपुर शहर के अशासकीय विद्यालयों में अध्यापन कार्य करते रहे साथ ही निःशक्तजनों की शिक्षा, प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए समर्पित एन. जी. ओ. ‘प्रगतिशील विकलांग संसार, छतरपुर के संचालन एवं व्यवस्था में सक्रिय भूमिका निभाते रहे । वर्तमान में ‘अकेला’ जी एक अध्यापक के रूप में शासन को अपनी सेवाएं दे रहे हैं साथ ही निःशक्तजनों की सेवा एवं लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं ।
‘अकेला’ जी को लेखन की प्रेरणा अपने पिता स्व. श्री पुरूषोत्तम दास जी से मिली । जो भजन-कीर्तन लिखने में काफी रूचि रखते थे यद्यपि उनकी कोई कृति प्रकाशित नहीं हुई । माता श्रीमती कमला देवी भी साहित्यिक-सांस्कृतिक रूचि की हैं। ‘अकेला’ जी ने सन्-1990 से ग़ज़ल-गीत लेखन की यात्रा शुरू की जो अनवरत जारी है । ग़ज़ल संग्रह ‘शेष बची चौथाई रात’ (1999-अयन प्रकाशन, दिल्ली) के प्रकाशन ने ग़ज़ल के क्षेत्र में उन्हें स्थापित किया और राष्ट्रीय ख्याति दिलाई । दूसरे ग़ज़ल-गीत संग्रह ‘सुब्ह की दस्तक’ (2006-सार्थक प्रकाशन दिल्ली) एवं तीसरे ग़ज़ल संग्रह ‘अंगारों पर शबनम’ (2012-अयन प्रकाशन, दिल्ली) ने उनकी साहित्यिक पहचान को और पुख़्तगी देते हुए उन्हें देश के प्रथम पंक्ति के हिन्दी ग़ज़लकारों के बीच खड़ा कर दिया है ।
प्रकाशित कृतियों के अलावा ‘अकेला’ जी की बहुत सी रचनाएं वसुधा, वागर्थ, कथादेश, महकता आँचल, सृजन-पथ, राष्ट्रधर्म, कादम्बिनी जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में भी समय-समय पर प्रकाशित होकर प्रशंसित होती रही हैं । उन्होंने कवि-सम्मेलनों, मुशायरों, काव्य-गोष्ठियों तथा आकाशवाणी के माध्यम से भी काफी लोकप्रियता हासिल की है । देश की अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा उन्हें पुरस्कृत एवं सम्मानित भी किया गया है ।
अपनी ग़ज़लों के तीखे तेवरों के कारण वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ बुन्देलखण्ड के दुष्यंत कुमार कहे जाते हैं । उनकी ग़ज़लों में जीवन की सच्ची-तपती-सुलगती आग पूरी तेजस्विता के साथ विद्यमान है । वे देश और समाज में व्याप्त दुख-दर्दों, अभावों, असफलताओं, विसंगतियों और छल-छद्मों को अनूठे अंदाज़ में पेश कर अपने पाठकों में विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का हौसला भर देते हैं । ‘अकेला‘ जी की ग़ज़लों की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए प्रसिद्ध कवि डॉ. कुंअर बेचैन लिखते हैं-“ ‘अकेला’ जी की ग़ज़लें विविध विषयों पर होने के साथ साथ बहर आदि की दृष्टि से निष्कलंक हैं, उनमें सहज प्रवाह भी है और अमिट प्रभाव भी । ये ग़ज़लें ग़ज़ल की यशस्वी परम्परा में रहकर नए विषयों तथा नए प्रतीकों की खोज करती हैं । इनमें यथार्थ की सच्चाई और कल्पना की ऊँचाई दोनों के दर्शन होते हैं ।” इसी प्रकार ’अकेला’ जी की ग़ज़ल के प्रभाव का उद्घाटन करते हुए इस दौर के शहंशाहे ग़ज़ल डॉ. बशीर बद्र कहते हैं-“अकेला की ग़ज़ल वो लहर है जो ग़ज़ल के समन्दर में नई हलचल पैदा करेगी ।” पद्मश्री डॉ. गोपालदास ‘नीरज’ कहते हैं कि-“ अकेला के शेरों में यह ख़ूबी है कि वे खुद-ब-खुद होठों पर आ जाते हैं । ” चर्चित व्यंग्यकार माणिक वर्मा एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. देवव्रत जोशी ने भी अपनी अपनी टिप्पणियों में ‘अकेला’ को दुष्यत कुमार के बाद को उल्लेखनीय शायर निरूपित किया है। स्पष्ट है कि वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ ने हिन्दी ग़ज़ल को नए विषय, नई सोच, नए प्रतीक और सम्यक शिल्पगत कसावट देकर इस विधा की उल्लेखनीय सेवा की है और इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान क़ायम की है । उनके कुछ अच्छे और चर्चित शेर ही यहां उदाहरणार्थ प्रस्तुत किये जा सकते हैं- अदावत दिल में रखते हैं मगर यारी दिखाते हैं न जाने लोग भी क्या क्या अदाकारी दिखाते है हुआ सवेरा हमें आफ़ताब मिल ही गया अँधेरी शब को करारा जवाब मिल ही गया
झूठ-मक्कारी तजें नेता जी मुमकिन ही कहाँ नाचना, गाना-बजाना कैसे किन्नर छोड़ दे .......................................................... किस क़दर है सुस्त सरकारी मुलाज़िम रोज़ ही इतवार पाना चाहता है ............................................................... सैकड़ों बार पार की है नदी वा रे काग़ज़ की नाव की बातें
दो क़दम काफिला चला भी नहीं लो अभी से पड़ाव की बातें ........................................................... फिर पुरानी राह पर आना पडे़गा उसको हिन्दी में ही समझाना पड़ेगा
गर्म है पॉकिट तुम्हारी बच के जाना लुट न जाना राह में थाना पड़ेगा ................................................................... भले चौके न हों दो एक रन तो आएँ बल्ले से कई ओवर गँवा कर भी खड़े हो तुम निठल्ले से
जो क़ानूनन सही हैं उनको करवाना पड़ा मुश्किल कि जिन पर रोक है वो काम होते हैं धड़ल्ले से ................................................................... पहले तेरी जेब टटोली जाएगी फिर यारी की भाषा बोली जाएगी
नैतिकता की मैली होती यह चादर दौलत के साबुन से धो जी जाएगी ...................................................................... सोच की सीमाओं के बाहर मिले प्रश्न थे कुछ और कुछ उत्तर मिले
हमको ऐ जनतंत्र तेरे नाम पर उस्तरे थामे हुए बंदर मिले .................................................... प्यास दो ही घूंट में बुझ जाएगी सारा दरिया है मिरे किस काम का .............................................................
फिर ज़माने में कहीं रूसवा मेरी चाहत न हो
करके वादा भूलने की तुझको भी आदत न हो ......................................................................................
माना वो क़ातिल है पर बेदाग़ बरी हो जाएगा
पैसा हो तो सब सम्भव है अपने देश महान में ............................................................................. एक रूपे की तीन अठन्नी मांगेगी इस दुनिया से लेना देना कम रखना ............................................................................... दो क़दम चलते हैं घंटों हांफते हैं देखिये साहिब हमारे रहबरों को ...................................................................... पर्चे ही लीक हों तो कुछ काम बन सकेगा हैं इम्तहान सर पे तैयारियाँ नहीं हैं ............................................................ पाँच सौ का धरा मेज़ पर जब वो देने लगा अफ़सरी ........................................................... आस गन्तव्य की क्षीर्ण पड़ने लगी पथ-प्रदर्शक को है अस्थमा बन्धुओ ......................................................... नेता, वकील, पंडित, मुल्ला, समाज-सेवक बदलेगा रूप आखिर शैतान और कितने .......................................................... हैं जुबानों की ताक में छुरियाँ ऐसी मुश्किल में कौन लब खोले ........................................................... छपी चापलूसी, तो सच्ची ख़बर थी जो तनक़ीद निकली, तो अख़बार झूठा ..................................................... सुब्ह से लाइन में लग जाना था ग़लती हो गई जब तलक नम्बर मेरा आया बचा कुछ भी नहीं । .............................................................. जन्म पर दावत सही, है मौत पर दावत मगर कैसे कैसे वाह री दुनिया तेरे दस्तूर हैं .................................................................... ये घातों पर घातें देखो/क़िस्मत की सौग़ातें देखो धरती को जन्नत कर देंगे/मक्कारों की बातें देखो ........................................................................
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