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(2) परमाणु संरचना
रंगो का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। रंगो से हमें विभिन्न स्थितियों का पता चलता है। हम अपने चारों तरफ अनेक प्रकार के रंगो से प्रभावित होते है। रंग, मानवी आँखों के [[वर्णक्रम]] से मिलने पर छाया सम्बंधी गतिविधियों से उत्पन्न होते हैं। मूल रूप से [[इंद्रधनुष]] के सात रंगों को ही रंगों का जनक माना जाता है, ये सात रंग [[लाल]], [[नारंगी]], [[पीला]], [[हरा]], [[आसमानी]], [[नीला]]  तथा [[बैंगनी]] हैं।


मानवी गुण धर्म के आभासी बोध के अनुसार लाल, नीला व हरा रंग होता है। रंग विभिन्न प्रकार की श्रेणियाँ एवं भौतिक विनिर्देश वस्तु, प्रकाश स्त्रोत इत्यादि के भौतिक गुणधर्म जैसे प्रकाश अन्तर्लयन, विलयन, समावेशन, परावर्तन जुडे होते हैं।
*परमाणु (Atom)- परमाणु, तत्त्व का वह छोटा से छोटा कण है, जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है परन्तु स्वतंत्र अवस्था में नही रह सकता है।
==मुख्य स्त्रोत==
अणु (Molecule)- तत्त्व तथा यौगिक का वह छोटा से छोटा कण है, जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है, अणु कहलाता है।
रंगो की उत्पत्ति का सबसे प्राकृतिक स्त्रोत सूर्य का प्रकाश है। सूर्य के प्रकाश से विभिन्न प्रकार के रंगो की उत्पत्ति होती है। प्रिज्म की सहायता से देखने पर पता चलता है कि सूर्य सात रंग ग्रहण करता है जिसे सूक्ष्म रूप अंग्रेजी भाषा में '''VIBGYOR''' और हिन्दी में "बैं नी आ ह पी ना ला" कहा जाता है। जो इस प्रकार हैं:-
*परमाणु भार (Atomic  weight)- किसी तत्त्व का परमाणु भार वह संख्या है, जो यह प्रदर्शित करता है कि तत्त्व का एक परमाणु, कार्बन-12 के परमाणु के 1/12 भाग द्रव्यमान अथवा हाइड्रोजन के 1.008 भाग द्रव्यमान से कितना गुना भारी है।
 
*अणु भार (Molecular weight)- किसी पदार्थ का अणु भार वह संख्या है, जो यह प्रदर्शित करती है कि उस पदार्थ का एक अणु कार्बन-12 के एक परमाणु  के 1/12 भाग से कितना गुना भारी है।
'''बैंगनी (violet), नील (indigo), आसमानी (blue or skyblue), हरा (green), पीला (yellow), नारंगी (orange) और लाल (red)'''
*मोल धारणा (Mole concept)- एक मोल किसी भी निश्चित सूत्र वाले पदार्थ की वह राशि है, जिसमें इस पदार्थ के इकाई सूत्र की संख्या उतनी है, जिनकी शुद्ध कार्बन-12 आइसोटोप के ठीक 12 ग्राम में परमाणुओं की संख्या है।
==रंग की आवृति व तरंगदैर्ध्य अंतराल==
*मोल इकाई का मान- मोल का मान 6.022 X1023  है। कार्बन के 12 ग्राम या एक मोल में 6.022 X1023  परमाणु हैं। 6.022 X1023  को आवोगाद्रो संख्या कहते हैं।
सूर्य से प्राप्त मुख्य रंग बैंगनी, नील, नीला, पीला, नारंगी व लाल है। प्रत्येक रंग की तरंगदैर्ध्य अलग होती है। रंगो की विभिन्न आवृतियों व तरंगदैर्ध्य को निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
*मोल संख्या एवं द्रव्यमान दोनों का प्रतीक है। सन् 1967 में मोल को इकाई के रूप में स्वीकार किया गया।
*20वीं शताब्दी में आधुनिक खोजों के परिणामस्वरुप जे॰ जे॰ थॉमसन, रदरफोर्ड, चैडविक आदि वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया कि परमाणु विभाज्य है तथा मुख्यतः तीन मूल कणों से मिलकर बना है, जिन्हें
इलेक़्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन कहते हैं।
प्रमुख मूल कणों के अभिलक्षण
{| class="wikitable" border="1"
{| class="wikitable" border="1"
|-
|-
! रंग
! मूल कण
! आवृति विस्तार
! प्रतीक
! तरंगदैर्ध्य विस्तार
! आवेश
|-
! द्रव्यमान (ग्राम)
| बैंगनी
! द्रव्यमान (amu)
| 6.73 - 7.6
! खोजकर्ता
| 3800 Å से 4460 Å
|-
| नीला
| 6.47 - 6.73
| 4460 Å से 4640 Å
|-
| आसमानी नीला
| 6.01 - 6.47
| 4640 Å से 5000 Å
|-
| हरा
| 5.19 - 6.01
| 5000 Å से 5780 Å
|-
|-
| पीला
| इलेक़्ट्रॉन
| 5.07 - 5.19
| -1e<sup>0</sup>
| 5780 Å से 5920 Å
| -1
| 9.1095X10-28g
| 0.0005486
| जे॰ जे॰ थॉमसन
|-
|-
| नारंगी
| प्रोटॉन
| 4.84 - 5.07
| 1p<sup>1</sup>
| 5920 Å से 6200 Å
| +1
| 1.6726X10-24g
| 1.0073335
| गोल्डस्टीन
|-
|-
| लाल
| न्यूट्रॉन
| 3.75 - 4.84
| 0n<sup>1</sup>
| 6200 Å से 7800 Å
| 0
| 1.6749X10-24g
| 1.008724
| चैडविक (1932)
|}
|}


==रंगों का नामकरण==
*परमाणु क्रमांक (Atomic number)- किसी तत्त्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या को परमाणु क्रमांक कहते हैं।
हर सभ्यता ने रंग को अपने लिहाज से गढ़ा है लेकिन इत्तेफाक से किसी ने भी ज्यादा रंगों का नामकरण नहीं किया। ज्यादातर भाषाओं में रंगों को दो ही तरह से बांटा गया है। पहला सफेद यानी हल्का और काला यानी चटक अंदाज लिए हुए।
*द्रव्यमान संख्या (Mass number)- किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रोनों की संख्याओं का योग उस परमाणु की द्रव्यमान संख्या कहलाती है। अर्थात्
*अरस्तु ने चौथी शताब्दी के ईसापूर्व में नीले और पीले की गिनती प्रारंभिक रंगो में की। इसकी तुलना प्राकृतिक चीजों से की गई जैसे सूरज-चांद, स्त्री-पुरूष, फैलना-सिकुड़ना, दिन-रात, आदि। यह तकरीबन दो हजार वर्षों तक प्रभावी रहा।
<blockquote>द्रव्यमान संख्या= प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या</blockquote>
*17-18वीं शताब्दी में न्यूटन के सिध्दांत ने इसे सामान्य रंगों में बदल दिया। 1672 में न्यूटन ने रंगो पर अपना पहला पेपर प्रस्तुत किया था जो बहुत विवादों में रहा।
*क्वाण्टम संख्या (Quantum Number)- स्पेक्ट्रम रेखाओं की सूक्ष्म प्रकृति समझाने तथा
*गोथे ने न्यूटन के सिद्धांत को पूरी तरह नकारते हुए '''थ्योरी ऑफ़ कलर्स (Theory Of Colours)''' नामक किताब लिखी। गोथे के सिद्धांत अरस्तु से मिलते हैं। गोथे ने कहा कि गहरे अंधेरे में से सबसे पहले नीला रंग निकलता है, यह गहरेपन को दर्शाता है। वहीं उगते हुए सूरज में से पीला रंग सबसे पहले निकलता है जो हल्के रंगों का प्रतिनिधित्व करता है।  
इलेक़्ट्रॉन की ठीक-ठीक स्थिति का वर्णन करने हेतु चार क्वाण्टम संख्याओं का प्रयोग किया जाता है, ये हैं-
*19 वीं शताब्दी में कलर थेरेपी का प्रभाव कम हुआ लेकिन 20वीं शताब्दी में यह नए स्वरूप में पैदा हुआ। आज के कई डॉक्टर कलर थेरेपी को इलाज का बढ़िया माध्यम मानकर इसका इस्तेमाल करते हैं।
(अ) मुख्य क़्वाण्टम संख्या (Principal Quantum number), 'n'- यह इलेक़्ट्रॉन के मुख्य ऊर्जा स्तर को प्रदर्शित करती है।
*रंग विशेषज्ञ मानते हैं कि हमें प्रकृति से सानिध्य बनाते हुए रंगों को कलर थेरेपी के बजाव जिन्दगी के तौर पर अपनाना चाहिए। रंगों को समझने में सबसे बड़ा योगदान उन लोगों ने किया जो [[विज्ञान]], [[गणित]], तत्व विज्ञान और [[धर्मशास्त्र]] के अनुसार काम करते थे।
(ब) दिगंशी क़्वाण्टम संख्या (Azimuthal Quantum number), 'l'- यह इलेक़्ट्रॉन कक्षक की आकृति को प्रकट करती है। 'l' का न्यूनतम मान शून्य तथा अधिकतम (n - 1) होता है।
*आस्टवाल्ड नामक वैज्ञानिक ने आठ आदर्श रंगो को विशेष क्रम से एक क्रम में संयोजित किया। इस चक्र को '''आस्टवाल्ड वर्ण चक्र''' कहते है। इस चक्र में प्रदर्शित किये गये आठ आदर्श रंगो को निम्न विशेष क्रम में प्रदर्शित किया जा सकता है-
(स) चुम्बकीय क़्वाण्टम संख्या (Magnetic Quantum number), 'm'- यह उप ऊर्जा स्तरों के कक्षकों को प्रदर्शित करती है। m का मान  l के मान पर निर्भर करता है। किसी l के लिए m का मान +l से लेकर -l तक होते है (शून्य सहित)।
**पीला                 
(द) चक्रण क़्वाण्टम संख्या (Spin Quantum number), 's'- यह इलेक़्टॉन के चक्रण की दिशा को प्रदर्शित करती है। किसी चुम्बकीय क़्वाण्टम संख्या (m) के लिए चक्रण क़्वाण्टम संख्या (s) का मान +1/2 और -1/2 होता है।  
**नारंगी
*पाऊली का अपवर्जन नियम (Pauli's  exclusion principle, 1925)- इसके अनुसार एक दिए गए परमाणु में किन्हीं दो इलेक़्ट्रॉनों के लिए चारों क़्वाण्टम संख्याओं का मान समान नहीं हो सकता। अतः यदि दो इलेक़्ट्रॉनों के n, l और m के मान एक ही हो, तो उनका चक्रण विपरित होगा।
**लाल                 
*हुण्ड का अधिकतम बहुलता का नियम (Hund's rule of maximum multiplicity)- इसके अनुसार इलेक़्ट्रॉन तब तक युग्मित नहीं होते जब तक कि रिक्त कक्षक प्राप्य हैं अर्थात् जब तक सम्भव है, इलेक़्ट्रॉन अयुग्मित रहते हैं।
**बैंगनी
*हाइजेनवर्ग का अनिश्चितता सिद्धान्त (Heisenberg's uncertaninty principle)- इसके अनुसार किसी कण की स्थिति (position) और वेग (velocity) का एक साथ यथार्थ निर्धारण असंभव है।
**नीला                 
*ऑफ़बाऊ नियम (Aufbau principle)-  इस नियम द्वारा तत्त्वों के इलेक़्ट्रॉनिक विन्यास लिखने के लिए विभिन्न परमाणु कक्षकों की ऊर्जा बढ़ने का क्रम इस प्रकार है-
**नीलमणी या [[आसमानी]]
1s<2s<2p<3s<3p<3p<4s<3d<4p<5s<4d<5p<6s<4f<5d<6p<7s
**[[समुद्री हरा]]         
*समस्थानिक (Isotopes)- समान परमाणु क्रमांक परन्तु भिन्न परमाणु द्रव्यमानों के परमाणुओं को समस्थानिक कहते हैं। समस्थानिकों में प्रोटॉन की संख्या समान होती है, किन्तु न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न होती है। जैसे-1H1, 1H2 तथा 1H3 समस्थानिक हैं।
**[[धानी]] या पत्ती हरा
*सबसे अधिक समस्थानिकों वाला तत्त्व पोलोनियम है।
==रंगो के प्रकार==
*समभारिक (Isobars)- समान परमाणु द्रव्यमान परन्तु भिन्न परमाणु क्रमांक के परमाणुओं को समभारिक कहते हैं। जैसे- 18Ar40, 18K40, 20Ca40  समभारिक है।
रंगो को तीन भागो में विभाजित किया जा सकता है-
*समन्यूट्रॉनिक (Isotone)- जिन परमाणुओं में न्यूट्रॉनों की संख्या समान होती है, उन्हें समन्यूट्रॉनिक कहते हैं। जैसे- 1H3 और 2He4 इन दोनों परमाणुओं के नाभिक में न्यूट्रॉनों की संख्या दो-दो है।
*प्राथमिक रंग या मूल रंग
*समइलेक़्ट्रॉनिक (Isoelectronic)- जिन आयनों और परमाणुओं के इलेक़्ट्रॉनिक विन्यास समान होते हैं, उन्हें समइलेक़्ट्रॉनिक कहते हैं। समइलेक़्ट्रॉनिक  परमाणुओं और आयनों में इलेक़्ट्रॉनों की संख्या समान होती है। जैसे- Ne, Na+, Mg++ और Al+++ समइलेक़्ट्रॉनिक हैं।
*द्वितीयक रंग
*विरोधी रंग या पूरक रंग
====प्राथमिक रंग या मूल रंग====
{{Main|प्राथमिक रंग}}
प्राथमिक रंग या मूल रंग वे है जो किसी मिश्रण के द्वारा प्राप्त नहीं किये जा सकते है। ये रंग निम्न है-
*लाल
*नीला
*हरा
====द्वितीयक रंग====
{{Main|द्वितीयक रंग}}
द्वितीयक रंग वे रंग होते है जो दो प्राथमिक रंगो के मिश्रण से प्राप्त किये जाते है। द्वितीयक रंग रानी, सियान व पीला है। इन्हे दो भागो में विभाजित किया जा सकता है-
*गर्म रंग
*ठंडे रंग
जिन रंगो में लाल रंग का प्रभाव माना जाता है उन्हें '''गर्म रंग''' कहा जाता है। गर्म रंग निम्न है-
**पीला
**लाल
**नारंगी
**बैंगनी
जिन रंगो में नीले रंग का प्रभाव माना जाता है उन्हें '''ठंड़े रंग''' कहा जाता है। ठंड़े रंग निम्न है-
**नीलमणी या आसमानी
**समुद्री हरा
**धानी या पत्ती हरा
 
====विरोधी रंग या पूरक रंग====
{{Main|विरोधी रंग}}
प्राथमिक व द्वितीयक रंगों के मिश्रण से जो रंग बनते है उन्हें विरोधी रंग कहा जाता है। आस्टवाल्ड वर्ण चक्र में प्रदर्शित किये गये आमने सामने के रंग विरोधी रंग कहलाते है। जैसे- नीले का विरोधी रंग पीला, नारंगी का आसमानी व बैंगनी का विरोधी रंग धानी है।
==रंगों का महत्व==
इन रंगों को देखकर ही हम स्थिति के बारे में पता लगाते है। इंद्रधनुष के रंगों की छटा हमारे मन को बहुत आकर्षित करता है। हम रंगों के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। रंगों के बिना हमारा जीवन ठीक वैसा ही है, जैसे प्राण बिना शरीर। बाल्यावस्था में बच्चे रंगों की सहायता से ही वस्तुओं को पहचानता है। युवक रंगों के माध्यम से ही संसार का सर्जन करता है। वृद्ध की कमजोर आँखें रंगो की सहायता से वस्तुओं का नाम प्राप्त करती है।
 
"प्रकृति की सुन्दरता अवर्णनीय है और इसकी सुन्दरता मे चार चांद लगाते है ये रंग। सूर्य की लालिमा हो या खेतों की हरियाली, आसमान का नीलापन या मेघों का कालापन, बारिश के बाद मे बिखरती इन्द्रधनुष की अनोखी छटा, बर्फ की सफेदी और ना जाने कितने ही खुबसुरत नज़ारे जो हमारे अंतरंग आत्मा को प्रफुल्लित करता है। इस आनंद का राज है रंगों की अनुभूति।  मानव जीवन रंगों के बिना उदास और सुना है। मुख्यत: सात रंगों की इस सृष्टि मे हर एक रंग हमारे जीवन पर असर छोड़ता है। कोई रंग हमें उत्तेजित करता है तो कोई रंग प्यार के लिये प्रेरित करता है। कुछ रंग हमें शांति का एहसास करता है तो कुछ रंग मातम का प्रतीक है। दूसरे शब्दों मे कह सकते है कि हमारे जीवन पर रंग का बहुत असर है। हर एक रंग अलग-अलग इंसान पर अलग-अलग तरीके से आन्दोलित करता है।<ref>{{cite web |url=http://ankauraap.com/colour.html |title=आप और आपका शुभ रंग|accessmonthday= 21|accessyear= जुलाई|authorlink= |last=सुन्दरानी|first=गुंजन |format= |publisher=अंक और आप|language=एच टी एम एल}}</ref>
====धार्मिक महत्व====
रंगो का महत्व हमारे जीवन में पौराणिक काल से ही रहा है। हमारे [[देवी]]-[[देवता|देवताओं]] को भी कुछ खास रंग विशेष प्रिय हैं। यहाँ तक कि ये विशेष रंगों से पहचाने भी जाते हैं।  
*लाल- माँ [[लक्ष्मी]] को लाल रंग प्रिय है। लाल रंग हमें आगे बढने की प्रेरणा देता है।
*पीला- भगवान [[कृष्ण]] को पीतांबरधारी भी कहते हैं, क्योंकि वे पीले रंग के वस्त्रों से सुशोभित रहते हैं।
*काला-[[शनिदेव]] को काला रंग प्रिय है। काला रंग तमस का कारक है।  
*सफेद- [[ब्रह्मा]] के वस्त्र सफेद हैं, जो इस बात को प्रमाणित करते हैं कि ब्रह्म, यानी ईश्वर सभी लोगों के प्रति समान भाव रखते हैं।  
*भगवा- संन्यासी भगवा वस्त्र पहनते हैं। भगवा रंग लाल और पीले रंग का मिश्रण है।
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>

Revision as of 12:01, 25 July 2010

(2) परमाणु संरचना

  • परमाणु (Atom)- परमाणु, तत्त्व का वह छोटा से छोटा कण है, जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है परन्तु स्वतंत्र अवस्था में नही रह सकता है।

अणु (Molecule)- तत्त्व तथा यौगिक का वह छोटा से छोटा कण है, जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है, अणु कहलाता है।

  • परमाणु भार (Atomic weight)- किसी तत्त्व का परमाणु भार वह संख्या है, जो यह प्रदर्शित करता है कि तत्त्व का एक परमाणु, कार्बन-12 के परमाणु के 1/12 भाग द्रव्यमान अथवा हाइड्रोजन के 1.008 भाग द्रव्यमान से कितना गुना भारी है।
  • अणु भार (Molecular weight)- किसी पदार्थ का अणु भार वह संख्या है, जो यह प्रदर्शित करती है कि उस पदार्थ का एक अणु कार्बन-12 के एक परमाणु के 1/12 भाग से कितना गुना भारी है।
  • मोल धारणा (Mole concept)- एक मोल किसी भी निश्चित सूत्र वाले पदार्थ की वह राशि है, जिसमें इस पदार्थ के इकाई सूत्र की संख्या उतनी है, जिनकी शुद्ध कार्बन-12 आइसोटोप के ठीक 12 ग्राम में परमाणुओं की संख्या है।
  • मोल इकाई का मान- मोल का मान 6.022 X1023 है। कार्बन के 12 ग्राम या एक मोल में 6.022 X1023 परमाणु हैं। 6.022 X1023 को आवोगाद्रो संख्या कहते हैं।
  • मोल संख्या एवं द्रव्यमान दोनों का प्रतीक है। सन् 1967 में मोल को इकाई के रूप में स्वीकार किया गया।
  • 20वीं शताब्दी में आधुनिक खोजों के परिणामस्वरुप जे॰ जे॰ थॉमसन, रदरफोर्ड, चैडविक आदि वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया कि परमाणु विभाज्य है तथा मुख्यतः तीन मूल कणों से मिलकर बना है, जिन्हें

इलेक़्ट्रॉन, प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन कहते हैं। प्रमुख मूल कणों के अभिलक्षण

मूल कण प्रतीक आवेश द्रव्यमान (ग्राम) द्रव्यमान (amu) खोजकर्ता
इलेक़्ट्रॉन -1e0 -1 9.1095X10-28g 0.0005486 जे॰ जे॰ थॉमसन
प्रोटॉन 1p1 +1 1.6726X10-24g 1.0073335 गोल्डस्टीन
न्यूट्रॉन 0n1 0 1.6749X10-24g 1.008724 चैडविक (1932)
  • परमाणु क्रमांक (Atomic number)- किसी तत्त्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या को परमाणु क्रमांक कहते हैं।
  • द्रव्यमान संख्या (Mass number)- किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रोनों की संख्याओं का योग उस परमाणु की द्रव्यमान संख्या कहलाती है। अर्थात्

द्रव्यमान संख्या= प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या

  • क्वाण्टम संख्या (Quantum Number)- स्पेक्ट्रम रेखाओं की सूक्ष्म प्रकृति समझाने तथा

इलेक़्ट्रॉन की ठीक-ठीक स्थिति का वर्णन करने हेतु चार क्वाण्टम संख्याओं का प्रयोग किया जाता है, ये हैं- (अ) मुख्य क़्वाण्टम संख्या (Principal Quantum number), 'n'- यह इलेक़्ट्रॉन के मुख्य ऊर्जा स्तर को प्रदर्शित करती है। (ब) दिगंशी क़्वाण्टम संख्या (Azimuthal Quantum number), 'l'- यह इलेक़्ट्रॉन कक्षक की आकृति को प्रकट करती है। 'l' का न्यूनतम मान शून्य तथा अधिकतम (n - 1) होता है। (स) चुम्बकीय क़्वाण्टम संख्या (Magnetic Quantum number), 'm'- यह उप ऊर्जा स्तरों के कक्षकों को प्रदर्शित करती है। m का मान l के मान पर निर्भर करता है। किसी l के लिए m का मान +l से लेकर -l तक होते है (शून्य सहित)। (द) चक्रण क़्वाण्टम संख्या (Spin Quantum number), 's'- यह इलेक़्टॉन के चक्रण की दिशा को प्रदर्शित करती है। किसी चुम्बकीय क़्वाण्टम संख्या (m) के लिए चक्रण क़्वाण्टम संख्या (s) का मान +1/2 और -1/2 होता है।

  • पाऊली का अपवर्जन नियम (Pauli's exclusion principle, 1925)- इसके अनुसार एक दिए गए परमाणु में किन्हीं दो इलेक़्ट्रॉनों के लिए चारों क़्वाण्टम संख्याओं का मान समान नहीं हो सकता। अतः यदि दो इलेक़्ट्रॉनों के n, l और m के मान एक ही हो, तो उनका चक्रण विपरित होगा।
  • हुण्ड का अधिकतम बहुलता का नियम (Hund's rule of maximum multiplicity)- इसके अनुसार इलेक़्ट्रॉन तब तक युग्मित नहीं होते जब तक कि रिक्त कक्षक प्राप्य हैं अर्थात् जब तक सम्भव है, इलेक़्ट्रॉन अयुग्मित रहते हैं।
  • हाइजेनवर्ग का अनिश्चितता सिद्धान्त (Heisenberg's uncertaninty principle)- इसके अनुसार किसी कण की स्थिति (position) और वेग (velocity) का एक साथ यथार्थ निर्धारण असंभव है।
  • ऑफ़बाऊ नियम (Aufbau principle)- इस नियम द्वारा तत्त्वों के इलेक़्ट्रॉनिक विन्यास लिखने के लिए विभिन्न परमाणु कक्षकों की ऊर्जा बढ़ने का क्रम इस प्रकार है-

1s<2s<2p<3s<3p<3p<4s<3d<4p<5s<4d<5p<6s<4f<5d<6p<7s

  • समस्थानिक (Isotopes)- समान परमाणु क्रमांक परन्तु भिन्न परमाणु द्रव्यमानों के परमाणुओं को समस्थानिक कहते हैं। समस्थानिकों में प्रोटॉन की संख्या समान होती है, किन्तु न्यूट्रॉन की संख्या भिन्न होती है। जैसे-1H1, 1H2 तथा 1H3 समस्थानिक हैं।
  • सबसे अधिक समस्थानिकों वाला तत्त्व पोलोनियम है।
  • समभारिक (Isobars)- समान परमाणु द्रव्यमान परन्तु भिन्न परमाणु क्रमांक के परमाणुओं को समभारिक कहते हैं। जैसे- 18Ar40, 18K40, 20Ca40 समभारिक है।
  • समन्यूट्रॉनिक (Isotone)- जिन परमाणुओं में न्यूट्रॉनों की संख्या समान होती है, उन्हें समन्यूट्रॉनिक कहते हैं। जैसे- 1H3 और 2He4 इन दोनों परमाणुओं के नाभिक में न्यूट्रॉनों की संख्या दो-दो है।
  • समइलेक़्ट्रॉनिक (Isoelectronic)- जिन आयनों और परमाणुओं के इलेक़्ट्रॉनिक विन्यास समान होते हैं, उन्हें समइलेक़्ट्रॉनिक कहते हैं। समइलेक़्ट्रॉनिक परमाणुओं और आयनों में इलेक़्ट्रॉनों की संख्या समान होती है। जैसे- Ne, Na+, Mg++ और Al+++ समइलेक़्ट्रॉनिक हैं।