अरबी भाषा: Difference between revisions

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#'''मूल'''- इसमें आमतौर पर तीन व्यंजन होते हैं और यह शब्द को कुछ आधारभूत शाब्दिक अर्थ प्रदान करता है; और  
#'''मूल'''- इसमें आमतौर पर तीन व्यंजन होते हैं और यह शब्द को कुछ आधारभूत शाब्दिक अर्थ प्रदान करता है; और  
#'''प्रतिकृति'''- इसमें स्वर होते हैं तथा यह शब्द को व्याकरण की दृष्टि से अर्थ प्रदान करता है। इस प्रकार, मूल क त ब की प्रतिकृति इ-आ के जुड़ने से किताब (पुस्तक) बनता है, जबकि इसी मूल में आ-इ प्रतिकृति जोड़ने से कातिब (लिखने वाला या लिपिक) बनता है। इस भाषा में उपसर्ग पूर्वसर्ग और निश्चित उपपद का कार्य करते हैं।
#'''प्रतिकृति'''- इसमें स्वर होते हैं तथा यह शब्द को व्याकरण की दृष्टि से अर्थ प्रदान करता है। इस प्रकार, मूल क त ब की प्रतिकृति इ-आ के जुड़ने से किताब (पुस्तक) बनता है, जबकि इसी मूल में आ-इ प्रतिकृति जोड़ने से कातिब (लिखने वाला या लिपिक) बनता है। इस भाषा में उपसर्ग पूर्वसर्ग और निश्चित उपपद का कार्य करते हैं।
==धातु रूप==
==काल==
अरबी भाषा में क्रियाएँ नियमित धातु रूप में होती हैं। इसमें दो काल हैं:-
अरबी भाषा में क्रियाएँ नियमित धातु रूप में होती हैं। इसमें दो काल हैं:-
#'''पूर्णकाल'''- जो कि प्रत्यय लगाकर बनाया जाता है और जिसका उपयोग भूतकाल को दर्शाने में होता है तथा #'''अपूर्णकाल'''- जो कि उपसर्ग जोड़कर बनाया जाता है, कभी–कभी इसमें संख्या तथा लिंग को दर्शाने वाले प्रत्यय भी होते हैं तथा इसका उपयोग वर्तमान या भविष्य काल के लिए होता है।  
#'''पूर्णकाल'''- जो कि प्रत्यय लगाकर बनाया जाता है और जिसका उपयोग भूतकाल को दर्शाने में होता है तथा  
#'''अपूर्णकाल'''- जो कि उपसर्ग जोड़कर बनाया जाता है, कभी–कभी इसमें संख्या तथा लिंग को दर्शाने वाले प्रत्यय भी होते हैं तथा इसका उपयोग वर्तमान या भविष्य काल के लिए होता है।  
इन दो कालों के अलावा आज्ञासूचक रूप, कर्तृवाचक कृदंत, कर्मवाचक कृदंत और क्रियार्थक संज्ञा भी है। क्रियाओं को तीन पुरुषों, तीन वचनों (एकवचन, द्विवचन और बहुवचन) तथा दो लिंगों में बाँटा गया है। शास्त्रीय अरबी में द्विवचन रूप तथा प्रथम पुरुष में लिंग भेद नहीं हैं तथा आधुनिक बोलियों में सभी द्विवचन रूपों का लोप हो चुका है। शास्त्रीय भाषा में कर्मवाच्य के रूप भी हैं।
इन दो कालों के अलावा आज्ञासूचक रूप, कर्तृवाचक कृदंत, कर्मवाचक कृदंत और क्रियार्थक संज्ञा भी है। क्रियाओं को तीन पुरुषों, तीन वचनों (एकवचन, द्विवचन और बहुवचन) तथा दो लिंगों में बाँटा गया है। शास्त्रीय अरबी में द्विवचन रूप तथा प्रथम पुरुष में लिंग भेद नहीं हैं तथा आधुनिक बोलियों में सभी द्विवचन रूपों का लोप हो चुका है। शास्त्रीय भाषा में कर्मवाच्य के रूप भी हैं।
==संज्ञा के शब्द रूप==
==संज्ञा के शब्द रूप==
शास्त्रीय अरबी संज्ञाओं की शब्द रूप में तीन कारक है:-
शास्त्रीय अरबी संज्ञाओं की शब्द रूप में तीन कारक है:-

Revision as of 07:02, 7 August 2010

अरबी भाषा दक्षिण–मध्य (शामी) सेमिटिक भाषा है, जो उत्तरी अफ़्रीका, अधिकांश अरब प्रायद्वीप और मध्य–पूर्व के अन्य हिस्सों समेत एक व्यापक क्षेत्र में बोली जाती है। सिंध के विजेताओं की भाषा भी अरबी थी। क़ुरान जो कि इस्लाम का पवित्र धर्मग्रन्थ है उसकी भाषा भी अरबी है और यह संसार के सभी मुसलमानों की धार्मिक भाषा है। साहित्यिक अरबी या शास्त्रीय अरबी, असल में क़ुरान में पाई जाने वाली भाषा है। जिसमें समकालीन उपयोग के लिए कुछ ज़रूरी परिवर्तन किए गए हैं। यह समूचे अरब जगत में एक जैसी है। बोलचाल की अरबी में कई बोलियाँ शामिल हैं, जिसमें से कुछ तो एक–दूसरे के लिए अबोधगम्य हैं।

इतिहास

मध्यकाल में धार्मिक अध्ययनों के लिए अरबी का व्यापक उपयोग हुआ, यहाँ तक कि 18वीं शताब्दी में भी भारत के महानतम धर्मशास्त्रियों में से एक शाह वली अल्लाह ने अपने सबसे महत्वपूर्ण प्रबंध अरबी में लिखे। पहले इस भाषा का उपयोग इतिहास लेखन और मध्य–पूर्व के लिए भारत की वैज्ञानिक पुस्तकों के अनुवाद हेतु होता था।

अरबी भाषा का उच्चारण

अरबी भाषा का उच्चारण अंग्रेज़ी तथा यूरोप की अन्य भाषाओं से काफ़ी भिन्न है। इसमें कई विशेष कंठ से निकली ध्वनियाँ (ग्रसनी तथा युवुला जनित) और कंठ्य व्यंजन (जिनका उच्चारण एक साथ ग्रसनी के संकुचन और जीभ के पिछले हिस्से को उठाकर होता है) हैं।

स्वर

अरबी में तीन ह्रस्व और तीन दीर्घ स्वर होते हैं; जिसके बाद स्वर और एक दीर्घ स्वर आता है तथा कभी–कभार ही इसके बाद एक से अधिक व्यंजन आते हैं; इस भाषा में दो से अधिक व्यंजनों वाले शब्द समूहों नहीं होते। अरबी भाषा में शामी शब्द संरचना का पूर्ण विकास परिलक्षित होता है। अरबी भाषा के शब्द के दो हिस्से होते हैं:-

  1. मूल- इसमें आमतौर पर तीन व्यंजन होते हैं और यह शब्द को कुछ आधारभूत शाब्दिक अर्थ प्रदान करता है; और
  2. प्रतिकृति- इसमें स्वर होते हैं तथा यह शब्द को व्याकरण की दृष्टि से अर्थ प्रदान करता है। इस प्रकार, मूल क त ब की प्रतिकृति इ-आ के जुड़ने से किताब (पुस्तक) बनता है, जबकि इसी मूल में आ-इ प्रतिकृति जोड़ने से कातिब (लिखने वाला या लिपिक) बनता है। इस भाषा में उपसर्ग पूर्वसर्ग और निश्चित उपपद का कार्य करते हैं।

काल

अरबी भाषा में क्रियाएँ नियमित धातु रूप में होती हैं। इसमें दो काल हैं:-

  1. पूर्णकाल- जो कि प्रत्यय लगाकर बनाया जाता है और जिसका उपयोग भूतकाल को दर्शाने में होता है तथा
  2. अपूर्णकाल- जो कि उपसर्ग जोड़कर बनाया जाता है, कभी–कभी इसमें संख्या तथा लिंग को दर्शाने वाले प्रत्यय भी होते हैं तथा इसका उपयोग वर्तमान या भविष्य काल के लिए होता है।

इन दो कालों के अलावा आज्ञासूचक रूप, कर्तृवाचक कृदंत, कर्मवाचक कृदंत और क्रियार्थक संज्ञा भी है। क्रियाओं को तीन पुरुषों, तीन वचनों (एकवचन, द्विवचन और बहुवचन) तथा दो लिंगों में बाँटा गया है। शास्त्रीय अरबी में द्विवचन रूप तथा प्रथम पुरुष में लिंग भेद नहीं हैं तथा आधुनिक बोलियों में सभी द्विवचन रूपों का लोप हो चुका है। शास्त्रीय भाषा में कर्मवाच्य के रूप भी हैं।

संज्ञा के शब्द रूप

शास्त्रीय अरबी संज्ञाओं की शब्द रूप में तीन कारक है:-

  • कर्त कारक,
  • सम्बन्ध कारक और
  • कर्म कारक

आधुनिक बोलियों में संज्ञाओं को अब रूपित नहीं किया जाता। सर्वनाम प्रत्यय और प्रत्यय और स्वतंत्र शब्द, दोनों रूपों में उपयोग में लाए जाते हैं।  


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