कल्याण मित्र -महात्मा बुद्ध: Difference between revisions

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भगवान बुद्ध देव और मनुष्यों के शास्ता थे, परन्तु सबसे पहले वह मनुष्य थे। मनुष्य बढ़कर देवता बनता है, यह प्राचीन मान्यता थी, आज भी हम मनुष्यत्व के ऊपर देवत्तव की बात करते है, परन्तु बुद्ध ने इस क्रम को पलट दिया। उन्होंने कहा,
भगवान [[बुद्ध]] देव और मनुष्यों के शास्ता थे, परन्तु सबसे पहले वह मनुष्य थे। मनुष्य से बढ़कर देवता बनता है, यह प्राचीन मान्यता थी, आज भी हम मनुष्यत्व के ऊपर देवत्तव की बात करते है, परन्तु बुद्ध ने इस क्रम को पलट दिया। उन्होंने कहा,


“यह जो मनुष्यता है, वही देवताओं का सुगति प्राप्त करना कहलाती है।”
“यह जो मनुष्यता है, वही देवताओं का सुगति प्राप्त करना कहलाती है।”


देवता जब सुगति प्राप्त करता है, तब वह मनुष्य बनता है। देवताओं में विलास है, राग, द्वेष,ईर्ष्या और मोह भी वहां है। निर्वाण की साधना वहां नहीं हो सकती। इसके लिए देवताओं को मनुष्य बनना पड़ता है। मनुष्यों में ही देव पुरुष का आविर्भाव होता है, जिनको देवता नमस्कार करते है। मानवता धर्म का उपदेश देने वाले बुद्ध स्वयं मानवता के जीते जागते रुप थे। यहां उनके जीवन से संबंधित कुद प्रसंग दिये जाते हैं, जिनसे उनके व्यक्तित्व में बैठी हुई गहरी मानवता का दर्शन होता है।
देवता जब सुगति प्राप्त करता है, तब वह मनुष्य बनता है। देवताओं में विलास है, राग, द्वेष, ईर्ष्या और मोह भी वहां है। निर्वाण की साधना वहां नहीं हो सकती। इसके लिए देवताओं को मनुष्य बनना पड़ता है। मनुष्यों में ही देव पुरुष का आविर्भाव होता है, जिनको देवता [[नमस्कार]] करते है। मानवता धर्म का उपदेश देने वाले बुद्ध स्वयं मानवता के जीते जागते रुप थे। यहां उनके जीवन से संबंधित कुद प्रसंग दिये जाते हैं, जिनसे उनके व्यक्तित्व में बैठी हुई गहरी मानवता का दर्शन होता है।


भगवान का परिनिर्वाण होने वाला है। रात का पिछला पहर है। भिक्षु उनकी शैया को घेरे बैठे हैं। बुद्ध उन्हें उपदेश दे रहे हैं।
भगवान का परिनिर्वाण होने वाला है। रात का पिछला पहर है। भिक्षु उनकी शैया को घेरे बैठे हैं। बुद्ध उन्हें उपदेश दे रहे हैं और कह रहे हैं,
 
कह रहे हैं,


“भिक्षुओं, बुद्ध धर्म और संघ के विषय में कुछ शंका हो तो पूछ लो, पीछे मलाल मत करना कि भगवान हमारे सामने थे, पर हम उनसे कुछ पूछ न सके।”
“भिक्षुओं, बुद्ध धर्म और संघ के विषय में कुछ शंका हो तो पूछ लो, पीछे मलाल मत करना कि भगवान हमारे सामने थे, पर हम उनसे कुछ पूछ न सके।”
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“शायद भिक्षुओं, तुम मेरे गौरव के कारण नहीं पूछ रहे। जैसे मित्र मित्र से पूछता है, वैसे तुम मुझसे पूछो।”
“शायद भिक्षुओं, तुम मेरे गौरव के कारण नहीं पूछ रहे। जैसे मित्र मित्र से पूछता है, वैसे तुम मुझसे पूछो।”


बुद्ध अपने शिष्यों की समान भूमिका पर आ जाते है। उनकी यह विनम्रता। मनुष्य-धर्म की आधर-भूमि है। बुद्ध ने अपने को भिक्षुओं का ‘कल्याण मित्र’ कहा है, जो उनकी मानवीय सहदयता और विनम्रता को सूचित करता है।
बुद्ध अपने शिष्यों की समान भूमिका पर आ जाते है। उनकी यह विनम्रता मनुष्य-धर्म की आधार-भूमि है। बुद्ध ने अपने को भिक्षुओं का ‘कल्याण मित्र’ कहा है, जो उनकी मानवीय सहदयता और विनम्रता को सूचित करता है।


एक दूसरा दृश्य भी उसी समय का है। चन्द कर्मार पुत्र के यहां बुद्ध ने अंतिम भोजन किया था। उसके बाद ही उन्हें खून गिरने की कड़ी बीमारी हो गई थी, जो उनके शरीरांत का कारण बनी। बुद्ध को उसके ह्रदय का बड़ा ध्यान थ्ज्ञा। भक्त उपासक को यह अफसोस हो सकता था कि उसका भोजन करके ही भगवान का शरीर छूट गया। इसलिए आखिरी सांस लेने से पहले उन्होंने आनंद को आदेश दिया,
एक दूसरा दृश्य भी उसी समय का है। चन्द कर्मार पुत्र के यहां बुद्ध ने अंतिम भोजन किया था। उसके बाद ही उन्हें खून गिरने की कड़ी बीमारी हो गई थी, जो उनके शरीरांत का कारण बनी। बुद्ध को उसके ह्रदय का बड़ा ध्यान था। भक्त उपासक को यह अफसोस हो सकता था कि उसका भोजन करके ही भगवान का शरीर छूट गया। इसलिए आखिरी सांस लेने से पहले उन्होंने आनंद को आदेश दिया,


“आनंद चन्द कर्मारपुत्र की इस चिन्ता को दूर करना और कहना, आयुष्मन तूने बड्रा लाभ कमाया कि मेरे भोजन को करके तथागत परिनिर्वाण को प्रापत हुए।”
“आनंद चन्द कर्मारपुत्र की इस चिन्ता को दूर करना और कहना, आयुष्मन तूने बड़ा लाभ कमाया कि मेरे भोजन को करके तथागत परिनिर्वाण को प्रापत हुए।”


जिसके ह्रदय में अगाध करुणा थी, वह ऐसा क्यों न कहता?
जिसके ह्रदय में अगाध करुणा थी, वह ऐसा क्यों न कहता?
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Revision as of 06:17, 14 August 2014

कल्याण मित्र -महात्मा बुद्ध
विवरण इस लेख में महात्मा बुद्ध से संबंधित प्रेरक प्रसंगों के लिंक दिये गये हैं।
भाषा हिंदी
देश भारत
मूल शीर्षक प्रेरक प्रसंग
उप शीर्षक महात्मा बुद्ध के प्रेरक प्रसंग
संकलनकर्ता अशोक कुमार शुक्ला

भगवान बुद्ध देव और मनुष्यों के शास्ता थे, परन्तु सबसे पहले वह मनुष्य थे। मनुष्य से बढ़कर देवता बनता है, यह प्राचीन मान्यता थी, आज भी हम मनुष्यत्व के ऊपर देवत्तव की बात करते है, परन्तु बुद्ध ने इस क्रम को पलट दिया। उन्होंने कहा,

“यह जो मनुष्यता है, वही देवताओं का सुगति प्राप्त करना कहलाती है।”

देवता जब सुगति प्राप्त करता है, तब वह मनुष्य बनता है। देवताओं में विलास है, राग, द्वेष, ईर्ष्या और मोह भी वहां है। निर्वाण की साधना वहां नहीं हो सकती। इसके लिए देवताओं को मनुष्य बनना पड़ता है। मनुष्यों में ही देव पुरुष का आविर्भाव होता है, जिनको देवता नमस्कार करते है। मानवता धर्म का उपदेश देने वाले बुद्ध स्वयं मानवता के जीते जागते रुप थे। यहां उनके जीवन से संबंधित कुद प्रसंग दिये जाते हैं, जिनसे उनके व्यक्तित्व में बैठी हुई गहरी मानवता का दर्शन होता है।

भगवान का परिनिर्वाण होने वाला है। रात का पिछला पहर है। भिक्षु उनकी शैया को घेरे बैठे हैं। बुद्ध उन्हें उपदेश दे रहे हैं और कह रहे हैं,

“भिक्षुओं, बुद्ध धर्म और संघ के विषय में कुछ शंका हो तो पूछ लो, पीछे मलाल मत करना कि भगवान हमारे सामने थे, पर हम उनसे कुछ पूछ न सके।”

कोई शिष्य नहीं बोलता। भगवान तीन बार कहते हैं, पर कोई भिक्षु कुछ पूछने को नहीं उठता। भगवान को शंका होती है कि कहीं वे उनके गौरव का विचार करके पूछने में संकोच तो नहीं कर रहे! इसलिए वह कहते हैं,

“शायद भिक्षुओं, तुम मेरे गौरव के कारण नहीं पूछ रहे। जैसे मित्र मित्र से पूछता है, वैसे तुम मुझसे पूछो।”

बुद्ध अपने शिष्यों की समान भूमिका पर आ जाते है। उनकी यह विनम्रता मनुष्य-धर्म की आधार-भूमि है। बुद्ध ने अपने को भिक्षुओं का ‘कल्याण मित्र’ कहा है, जो उनकी मानवीय सहदयता और विनम्रता को सूचित करता है।

एक दूसरा दृश्य भी उसी समय का है। चन्द कर्मार पुत्र के यहां बुद्ध ने अंतिम भोजन किया था। उसके बाद ही उन्हें खून गिरने की कड़ी बीमारी हो गई थी, जो उनके शरीरांत का कारण बनी। बुद्ध को उसके ह्रदय का बड़ा ध्यान था। भक्त उपासक को यह अफसोस हो सकता था कि उसका भोजन करके ही भगवान का शरीर छूट गया। इसलिए आखिरी सांस लेने से पहले उन्होंने आनंद को आदेश दिया,

“आनंद चन्द कर्मारपुत्र की इस चिन्ता को दूर करना और कहना, आयुष्मन तूने बड़ा लाभ कमाया कि मेरे भोजन को करके तथागत परिनिर्वाण को प्रापत हुए।”

जिसके ह्रदय में अगाध करुणा थी, वह ऐसा क्यों न कहता?


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