सिक्के का मूल्य -महात्मा गाँधी: Difference between revisions

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Latest revision as of 10:53, 13 January 2015

सिक्के का मूल्य -महात्मा गाँधी
विवरण इस लेख में महात्मा गाँधी से संबंधित प्रेरक प्रसंगों के लिंक दिये गये हैं।
भाषा हिंदी
देश भारत
मूल शीर्षक प्रेरक प्रसंग
उप शीर्षक महात्मा गाँधी के प्रेरक प्रसंग
संकलनकर्ता अशोक कुमार शुक्ला

गाँधी जी देश भर में भ्रमण कर चरखा संघ के लिए धन इकठ्ठा कर रहे थ। अपने दौरे के दौरान वे उड़ीसा में किसी सभा को संबोधित करने पहुंचे। उनके भाषण के बाद एक बूढ़ी ग़रीब महिला खड़ी हुई, उसके बाल सफ़ेद हो चुके थे, कपडे फटे हुए थे और वह कमर से झुक कर चल रही थी, किसी तरह वह भीड़ से होते हुए गाँधी जी के पास तक पहुची।
”मुझे गाँधी जी को देखना है” उसने आग्रह किया और उन तक पहुच कर उनके पैर छुए।
फिर उसने अपने साड़ी के पल्लू में बंधा एक ताम्बे का सिक्का निकाला और गाँधी जी के चरणों में रख दिया। गाँधी जी ने सावधानी से सिक्का उठाया और अपने पास रख लिया। उस समय चरखा संघ का कोष जमनालाल बजाज संभाल रहे थे। उन्होंने गाँधी जे से वो सिक्का माँगा, लेकिन गाँधी जी ने उसे देने से मना कर दिया।
”मैं चरखा संघ के लिए हज़ारों रुपये के चेक संभालता हूँ”, जमनालाल जी हँसते हुए कहा ” फिर भी आप मुझ पर इस सिक्के को लेके यकीन नहीं कर रहे हैं।”
”यह ताम्बे का सिक्का उन हज़ारों से कहीं कीमती है,” गाँधी जी बोले।
”यदि किसी के पास लाखों हैं और वो हज़ार-दो हज़ार दे देता है तो उसे कोई फरक नहीं पड़ता। लेकिन ये सिक्का शायद उस औरत की कुल जमा-पूँजी थी। उसने अपना संसार धन दान दे दिया। कितनी उदारता दिखाई उसने… कितना बड़ा बलिदान दिया उसने! इसीलिए इस ताम्बे के सिक्के का मूल्य मेरे लिए एक करोड़ से भी अधिक है।”


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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