जिसकी जैसी भावना -महात्मा बुद्ध: Difference between revisions

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Revision as of 10:54, 13 January 2015

जिसकी जैसी भावना -महात्मा बुद्ध
विवरण इस लेख में महात्मा बुद्ध से संबंधित प्रेरक प्रसंगों के लिंक दिये गये हैं।
भाषा हिंदी
देश भारत
मूल शीर्षक प्रेरक प्रसंग
उप शीर्षक महात्मा बुद्ध के प्रेरक प्रसंग
संकलनकर्ता अशोक कुमार शुक्ला

एक बार बुद्ध कहीं प्रवचन दे रहे थे। अपनी देशना ख़त्म करते हुए उन्होंने आखिर में कहा, जागो, समय हाथ से निकला जा रहा है। सभा विसर्जित होने के बाद उन्होंने अपने प्रिय शिष्य आनंद से कहा, चलो थोड़ी दूर घूम कर आते हैं। आनंद बुद्ध के साथ चल दिए। अभी वे विहार के मुख्य द्वार तक ही पहुंचे थे कि एक किनारे रुक कर खड़े हो गये। प्रवचन सुनने आये लोग एक एक कर बाहर निकल रहे थे, इसलिए भीड़ सी हो गई थी। अचानक उसमें से निकल कर एक स्त्री गौतम बुद्ध से मिलने आयी। उसने कहा तथागत मैं नर्तकी हूँ। आज नगर के श्रेष्ठी के घर मेरे नृत्य का कार्यक्रम पहले से तय था, लेकिन मैं उसके बारे में भूल चुकी थी। आपने कहा, समय निकला जा रहा है तो मुझे तुरंत इस बात की याद आई। धन्यवाद तथागत !

उसके बाद एक डकैत बुद्ध की ओर आया। उसने कहा, तथागत मैं आपसे कोई बात छिपाऊंगा नहीं। मै भूल गया था कि आज मुझे एक जगह डाका डालने जाना था कि आज उपदेश सुनते ही मुझे अपनी योजना याद आ गई। बहुत बहुत धन्यवाद!

उसके जाने के बाद धीरे धीरे चलता हुआ एक बूढ़ा व्यक्ति बुद्ध के पास आया। वृद्ध ने कहा, तथागत! जिन्दगी भर दुनियावी चीजों के पीछे भागता रहा। अब मौत का सामना करने का दिन नजदीक आता जा रहा है, तब मुझे लगता है कि सारी जिन्दगी यूँ ही बेकार हो गई। आपकी बातों से आज मेरी ऑंखें खुल गईं। आज से मैं अपने सारे दुनियावी मोह छोड़कर निर्वाण के लिए कोशिश करना चाहता हूँ। जब सब लोग चले गये तो बुद्ध ने कहा, देखो आनंद! प्रवचन मैंने एक ही दिया, लेकिन उसका हर किसी ने अलग अलग मतलब निकाला। जिसकी जितनी झोली होती है, उतना ही दान वह समेट पाता है। निर्वाण प्राप्ति के लिए भी मन की झोली को उसके लायक होना होता है। इसके लिए मन का शुद्ध होना बहुत जरूरी है।

महात्मा बुद्ध से जुड़े अन्य प्रसंग पढ़ने के लिए महात्मा बुद्ध के प्रेरक प्रसंग पर जाएँ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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