श्रीमद्भागवत माहात्म्य अध्याय 4 श्लोक 40-48: Difference between revisions
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पर धनार्थी को तो तभी सिद्धि मिलती है, जब उनके अनुष्ठान का विधि-विधान पूरा उतर जाय। श्रीकृष्ण की चाह रखने वाला सर्वथा गुणहीन हो और उसकी विधि में कुछ कमी रह जाय तो भी, यदि उसके | पर धनार्थी को तो तभी सिद्धि मिलती है, जब उनके अनुष्ठान का विधि-विधान पूरा उतर जाय। श्रीकृष्ण की चाह रखने वाला सर्वथा गुणहीन हो और उसकी विधि में कुछ कमी रह जाय तो भी, यदि उसके हृदय में प्रेम है तो, वही उसके लिये सर्वोत्तम विधि है । | ||
सकाम पुरुष को कथा की समाप्ति के दिन तक स्वयं सावधानी के साथ सभी विधियों का पालन करना चाहिये। (भागवत-कथा के श्रोता और वक्ता दोनों के ही पालन करने योग्य विधि यह है—) प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान करके अपना नित्यकर्म पूरा कर ले। फिर भगवान का चरणामृत पीकर पूजा के सामान से श्रीमद्भागवत की पुस्तक और गुरुदेव (व्यास) का पूजन करे। इसके पश्चात् अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक श्रीमद्भागवत की कथा स्वयं कहे अथवा सुने । दूध या खीर का मौन भोजन करे। नित्य ब्रम्हचर्य का पालन और भूमि पर शयन करे, क्रोध और लोभ आदि को त्याग दे । | सकाम पुरुष को कथा की समाप्ति के दिन तक स्वयं सावधानी के साथ सभी विधियों का पालन करना चाहिये। (भागवत-कथा के श्रोता और वक्ता दोनों के ही पालन करने योग्य विधि यह है—) प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान करके अपना नित्यकर्म पूरा कर ले। फिर भगवान का चरणामृत पीकर पूजा के सामान से श्रीमद्भागवत की पुस्तक और गुरुदेव (व्यास) का पूजन करे। इसके पश्चात् अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक श्रीमद्भागवत की कथा स्वयं कहे अथवा सुने । दूध या खीर का मौन भोजन करे। नित्य ब्रम्हचर्य का पालन और भूमि पर शयन करे, क्रोध और लोभ आदि को त्याग दे । | ||
प्रतिदिन कथा के अन्त में कीर्तन करे और कथा समाप्ति के दिन रात्रि में जागरण करे। समाप्ति होने पर ब्राम्हणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा से सन्तुष्ट करे । | प्रतिदिन कथा के अन्त में कीर्तन करे और कथा समाप्ति के दिन रात्रि में जागरण करे। समाप्ति होने पर ब्राम्हणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा से सन्तुष्ट करे । |
Latest revision as of 09:53, 24 February 2017
चतुर्थ (4) अध्याय
यदि दोनों विपरीत विचार के हों तो रसाभास हो जाता है, अतः फल की हानि होती है। किन्तु जो श्रीकृष्ण को चाहने वाले वक्ता और श्रोता है, उन्हें विलम्ब होने पर भी सिद्धि अवश्य मिलती है । पर धनार्थी को तो तभी सिद्धि मिलती है, जब उनके अनुष्ठान का विधि-विधान पूरा उतर जाय। श्रीकृष्ण की चाह रखने वाला सर्वथा गुणहीन हो और उसकी विधि में कुछ कमी रह जाय तो भी, यदि उसके हृदय में प्रेम है तो, वही उसके लिये सर्वोत्तम विधि है । सकाम पुरुष को कथा की समाप्ति के दिन तक स्वयं सावधानी के साथ सभी विधियों का पालन करना चाहिये। (भागवत-कथा के श्रोता और वक्ता दोनों के ही पालन करने योग्य विधि यह है—) प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान करके अपना नित्यकर्म पूरा कर ले। फिर भगवान का चरणामृत पीकर पूजा के सामान से श्रीमद्भागवत की पुस्तक और गुरुदेव (व्यास) का पूजन करे। इसके पश्चात् अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक श्रीमद्भागवत की कथा स्वयं कहे अथवा सुने । दूध या खीर का मौन भोजन करे। नित्य ब्रम्हचर्य का पालन और भूमि पर शयन करे, क्रोध और लोभ आदि को त्याग दे । प्रतिदिन कथा के अन्त में कीर्तन करे और कथा समाप्ति के दिन रात्रि में जागरण करे। समाप्ति होने पर ब्राम्हणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा से सन्तुष्ट करे । कथावाचक गुरु को वस्त्र, आभूषण आदि देकर गौ भी अर्पण करे। इस प्रकार-विधि-विधान पूर्ण करने पर मनुष्य को स्त्री, घर, पुत्र, राज्य और धन आदि जो-जो उसे अभीष्ट होता है, वह सब मनोवांछित फल प्राप्त होता है। परन्तु सकाम भाव बहुत बड़ी विडम्बना है, वह श्रीमद्भागवत की कथा में शोभा नहीं देता । श्रीशुकदेवजी के मुख से कहा हुआ यह श्रीमद्भागवतशास्त्र तो कलियुग में साक्षात् श्रीकृष्ण की प्राप्ति कराने वाला और नित्य प्रेमानन्द रूप फल प्रदान करने वाला है ।
॥ समाप्तमिदं श्रीमद्भागवत माहात्म्यम् ॥
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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