नाथूराम गोडसे: Difference between revisions
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महात्मा गाँधी की हत्या करने के कारण नाथूराम गोडसे को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई गई थी। नाथूराम गोडसे को 15 [[नवम्बर]] [[1949]] में [[अंबाला]] ([[हरियाणा]]) में फ़ाँसी दी गई और फ़ाँसी दिये जाने से कुछ ही समय पहले नाथूराम गोड़से ने अपने भाई दत्तात्रय को हिदायत देते हुए कहा था, कि <blockquote>“मेरी अस्थियाँ पवित्र [[सिन्धु नदी]] में ही उस दिन प्रवाहित करना जब सिन्धु नदी एक स्वतन्त्र नदी के रूप में भारत के [[तिरंगा|झंडे]] तले बहने लगे, भले ही इसमें कितने भी वर्ष लग जायें, कितनी ही पीढ़ियाँ जन्म लें, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करन”।<ref>{{cite web |url=http://mahashaktigroup.bharatuday.in/2008/02/blog-post_21.html |title=नाथुराम गोड़से का अस्थि कलश विसर्जन अभी बाकी है |accessmonthday=[[2 जूलाई]] |accessyear= [[2010]] |last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= |month= |format=एचटीएमएल |work= |publisher=महाशक्ति ग्रुप |pages= |language=हिन्दी |archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref></blockquote> | महात्मा गाँधी की हत्या करने के कारण नाथूराम गोडसे को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई गई थी। नाथूराम गोडसे को 15 [[नवम्बर]] [[1949]] में [[अंबाला]] ([[हरियाणा]]) में फ़ाँसी दी गई और फ़ाँसी दिये जाने से कुछ ही समय पहले नाथूराम गोड़से ने अपने भाई दत्तात्रय को हिदायत देते हुए कहा था, कि <blockquote>“मेरी अस्थियाँ पवित्र [[सिन्धु नदी]] में ही उस दिन प्रवाहित करना जब सिन्धु नदी एक स्वतन्त्र नदी के रूप में [[भारत]] के [[तिरंगा|झंडे]] तले बहने लगे, भले ही इसमें कितने भी वर्ष लग जायें, कितनी ही पीढ़ियाँ जन्म लें, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करन”।<ref>{{cite web |url=http://mahashaktigroup.bharatuday.in/2008/02/blog-post_21.html |title=नाथुराम गोड़से का अस्थि कलश विसर्जन अभी बाकी है |accessmonthday=[[2 जूलाई]] |accessyear= [[2010]] |last= |first= |authorlink= |coauthors= |date= |year= |month= |format=एचटीएमएल |work= |publisher=महाशक्ति ग्रुप |pages= |language=हिन्दी |archiveurl= |archivedate= |quote= }}</ref></blockquote> | ||
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Revision as of 09:43, 20 September 2010
नाथूराम गोडसे का असली नाम रामप्रसाद था। नाथूराम गोडसे मराठी थे। नाथूराम गोडसे बचपन से ही एक लड़की की तरह पले बढ़े थे और बचपन से ही नाक में बाईं तरफ नथ पहनने के कारण घर वाले उसे नाथू राम पुकारने लगे थे। नाथूराम गोडसे को लड़कियों की तरह पाले जाने के बावजूद नाथूराम को शरीर बनाने, कसरत करने और तैरने का शौक था। जब भी गाँव में गहरे कुएँ से खोए हुए बर्तन तलाशने होते या किसी बीमार को जल्द डॉक्टर के पास पहुँचाना होता तो नाथूराम को याद किया जाता था। पुणे से मराठी भाषा में अपना अखबार निकालने के पहले नाथूराम लकड़ी के काम और सिलाई में भी अपना हाथ आज़मा चुका था।
परिवार
नाथूराम गोडसे का जन्म 19 मई 1910 मुंबई- पुणे के बीच में एक रुढ़ीवादी ब्राह्माण परिवार में हुआ था। नाथूराम गोडसे के पिता विनायक गोडसे पोस्ट ऑफिस में काम करते थे। जब विनायक गोडसे के पहले 3 बेटे बचपन में ही चल बसे और एक बेटी जिंदा बची रह गई तो विनायक को लगा कि ऐसा किसी शाप की वजह से हो रहा है।[1] विनायक गोडसे ने मन्नत माँगी कि अगर अब लड़का होगा तो उसकी परवरिश लड़कियों की तरह ही होगी। नाथूराम की परवरिश लड़कियों की तरह करने की वजह एक मन्नत या अंधविश्वास से जुड़ी हुई थी। इसी वजह से नाथूराम को नथ पहननी पड़ी। नाथूराम गोडसे के घर वालों को लगता था कि नाथूराम के ऊपर देवी आती है।
देवी का ध्यान
बचपन से ही नाथूराम अपनी कुलदेवी की मूर्ति के सामने बैठकर ताँबे के एक श्रीयंत्र को बैठा घूरता रहता था। नाथूराम गोडसे जब भी कुलदेवी की मूर्ति के सामने बैठकर घूरता तो उसके बाद उसे कुछ तस्वीरें या कुछ लिखा हुआ दिखता था। वह ध्यान कि अवस्था में चला जाता था। घर वालों का मानना है कि जब भी वह ध्यान कि अवस्था में होते थे तब उनके मुँह से खुद देवी जवाब देती थी। नाथूराम गोडसे के घर वालों को यकीन था कि नाथूराम गोडसे को कुछ दैवीय शक्तियाँ मिली हुई हैं। घर वाले उससे सवाल पूछते थे जिनके जवाब देवी के जवाब माने जाते थे, जो नाथूराम के जरिए बोलती हुई मानी जाती थीं।
महात्मा गाँधी की हत्या
30 जनवरी सन् 1948 ई. की शाम को जब गाँधी जी एक प्रार्थना सभा में भाग लेने जा रहे थे, तब हिन्दू कट्टरपंथी नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर महात्मा गाँधी की हत्या कर दी थी। नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की हत्या करने के 150 कारण न्यायालय के सामने बताये थे। नाथूराम गोडसे ने जज से आज्ञा प्राप्त कर ली थी कि वे अपने बयानों को पढ़कर सुनाना चाहते है और उन्होंने वो 150 बयान माइक पर पढ़कर सुनाए थे।[2]
फ़ाँसी की सज़ा
महात्मा गाँधी की हत्या करने के कारण नाथूराम गोडसे को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई गई थी। नाथूराम गोडसे को 15 नवम्बर 1949 में अंबाला (हरियाणा) में फ़ाँसी दी गई और फ़ाँसी दिये जाने से कुछ ही समय पहले नाथूराम गोड़से ने अपने भाई दत्तात्रय को हिदायत देते हुए कहा था, कि
“मेरी अस्थियाँ पवित्र सिन्धु नदी में ही उस दिन प्रवाहित करना जब सिन्धु नदी एक स्वतन्त्र नदी के रूप में भारत के झंडे तले बहने लगे, भले ही इसमें कितने भी वर्ष लग जायें, कितनी ही पीढ़ियाँ जन्म लें, लेकिन तब तक मेरी अस्थियाँ विसर्जित न करन”।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ लड़कियों की तरह हुई थी गोडसे की परवरिश (हिन्दी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 1 जुलाई, 2010।
- ↑ नाथुराम गोडसे और गाँधी-----भाग १ (हिन्दी) (एचटीएमएल) सत्यार्थवेद ब्लॉग स्पॉट। अभिगमन तिथि: 2 जूलाई, 2010।
- ↑ नाथुराम गोड़से का अस्थि कलश विसर्जन अभी बाकी है (हिन्दी) (एचटीएमएल) महाशक्ति ग्रुप। अभिगमन तिथि: 2 जूलाई, 2010।